भारत में मॉनसून ने दस्तक दे दी है, पर उत्तर भारत के लोग अभी भी मॉनसून के आने का इंतजार कर रहे हैं. किसानों से लेकर आम लोगों तक सभी को हर साल मॉनसून के इस मौसम का बेसब्री से इंतजार होता है. लोग मौसम विभाग के लेटेस्ट अपडेट भी लगातार चेक करते रहते हैं ताकि उन्हें बारिश से जुड़े अपडेट मिलते रहें. ये जमाना नया है इसलिए हमारे पास मौसम विभाग की भविष्यवाणी पहुंचती रहती हैं. IMD का ट्विटर हैंडल है. टीवी पर वेदर अपडेट टेलीकास्ट होते हैं. वेबसाइट और खबरों में भी मौसम से जुड़ी खबरें प्रमुखता से प्रकाशित होती रहती हैं. मगर क्या आपने कभी सोचा है जब ये सब नहीं था तब मौसम का अंदाजा लोग कैसे लगाते थे?
अगर आपको लगता है कि इन सब चीजों के आने से पहले कभी मौसम के बारे में भविष्यवाणियां नहीं की गईं तो आप गलत हो सकते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में बगैर सेटेलाइट और अत्याधुनिक यंत्रों के ही बुजुर्ग जानकार मौसम को लेकर भविष्यवाणी करते रहते हैं. आखिर किस आधार पर होती थीं वो भविष्यवाणियां औऱ कितनी सच होती थीं अब जान लीजिए ये दिलचस्प कहानी-
डॉ. दीपक आचार्य की किताब जंगल लैबोरेटरी की मानें तो पुराने समय के लोग पेड़-पौधों की पैदावार और जीव जंतुओं के व्यवहार को देखकर ही मौसम या मॉनसून के बारे में बता दिया करते थे. गांव में रहने वाले बुजुर्गों की ऐसी कई भविष्यवाणियों और उनके तथ्यों को विज्ञान भी गंभीरता से लेता है. आधुनिक विज्ञान इसे बायोलॉजिकल इंडिकेटर के रूप में मानता है. यानी ऐसी जैविक घटनाएं जिन्हें बतौर सूचक माना जाता है.
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महुए के पेड़ को देखकर आदिवासी बुजुर्ग मौसम के पूर्वानुमान की बात बड़े ही रोचक तरीके से बताते हैं. मसलन उनका मानना है कि जिस वर्ष गर्मियों में महुए के पेड़ पर खूब सारी पत्तियां आती हैं यानी पेड़ खूब हरा-भरा हो तो अनुमान लगाया जाता है कि मॉनसून बहुत अच्छा रहेगा.
गर्मियों के दिनों में बांस की पत्तियों में हरापन देखा जाना यानी बांस में हरियाली दिखाई देना बुरे मॉनसून की खबर लाता है. वहीं ऐसा भी माना जाता है जब बांस की पत्तियां हरी हो तब सूखा पड़ता है.
ऐसा माना जाता है कि बेर का पेड़ फलों से लदालद हो तो पातालकोट घाटी के आदिवासी बताते हैं कि उस साल सामान्य मॉनसून रहने की संभावना रहती है. वहीं अगर घास गर्मियों में खूब हरी-भरी दिखाई दे तो मॉनसून सामान्य से बेहतर होता है.