महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले की वरोरा तहसील के सुसा गांव में हुई एक अनोखी शादी की चारो तरफ खूब चर्चा हो रही है. जहां आजकल शादी का मतलब है भारी खर्च, सजावट, डीजे, बैंड और दहेज है, वहीं महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के एक छोटे से गांव सुसा में एक अनोखी और प्रेरणादायी शादी का आयोजन किया गया. इस शादी में दूल्हे ने न सिर्फ खर्च बचाया बल्कि उन पैसों से गांव के शिवार (खेतों तक जाने वाली कच्ची सड़क को शिवार कहते हैं) में 2000 फीट लंबा रास्ता भी बना डाला, इतना ही नहीं उसने अपने रिश्तेदारों को भारी भरकम तोहफे देने की बजाय उनसे तोहफे में पेड़ मांगा.
चंद्रपुर से 90 किलोमीटर दूर सुसा गांव के युवा और प्रगतिशील किसान श्रीकांत एकुडे ने जब शादी करने का फैसला किया तो उनके मन में एक ही विचार था, शादी दिखावे के लिए नहीं, बल्कि बदलाव के लिए होनी चाहिए. यवतमाल जिले के सुसा गांव के श्रीरंग गणपत एकुडे के बेटे श्रीकांत और मोझर गांव के गोपीकिसन गरमडे की बेटी अंजलि की शादी तय हुई. दूल्हा श्रीकांत एकुडे उच्च शिक्षित हैं. उन्होंने एम.एस.सी. (कृषि) तक की पढ़ाई की है और वे इस क्षेत्र के प्रगतिशील किसान भी हैं.
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जब उन्होंने शादी करने का फैसला किया, तो उनकी एक ही शर्त थी कि शादी सादे तरीके से की जाए और लड़की और उसका परिवार इसके लिए तैयार हो. चंद्रपुर जिले के प्रगतिशील किसान और कृषि भूषण पुरस्कार से सम्मानित सुरेश गरमडे की देख-रेख में यह शादी तय हुई. जब सुरेश गरमडे ने यह प्रस्ताव अंजलि के परिवार के सामने रखा, तो उन्होंने चर्चा के बाद सहमति दे दी. वर-वधू के बीच आपसी बातचीत और समझ के जरिए इस शादी में आधुनिक सोच को अपनाया गया. दोनों परिवारों ने तय किया कि शादी में न दहेज होगा, न सजावट, न लाइट, न डीजे-बैंड, न गहने और न ही कोई भव्य दावत होगी. इसके बजाय, वे इस पैसे को सामाजिक कल्याण में खर्च करेंगे. और इसी सोच के साथ 28 अप्रैल को उनका प्रेरणादायक विवाह हुआ, जिसमें दिखावे की हर परंपरा को अलग रखा गया और समाज और प्रकृति के लिए एक मिसाल कायम की गई.
श्रीकांत ने तय किया कि शादी से मिलने वाले पैसों से वह गांव में खेतों तक जाने वाली सड़क बनवाएंगे. बारिश के मौसम में खेतों तक जाने वाली सड़कें बहुत खराब हो जाती हैं, जिससे न सिर्फ किसानों बल्कि मवेशियों का भी वहां पहुंचना मुश्किल हो जाता है. श्रीकांत ने शादी का खर्च बचाकर अपने खर्चे से गांव में 2000 फीट लंबी शिवार सड़क बनवा दी, जो अब बारिश के मौसम में भी किसानों और उनके मवेशियों के लिए उपयोगी साबित होगी.
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इतना ही नहीं, जब उपहार की बात आई तो श्रीकांत ने रिश्तेदारों से अनुरोध किया कि वे फ्रिज, टीवी या बर्तन या बड़े उपहार नहीं तो फलदार पौधे ही उपहार में दें और रिश्तेदारों ने इस रचनात्मक विचार को खुले दिल से स्वीकार कर लिया. शादी में कुल 90 से अधिक फलदार और औषधीय पौधे उपहार में दिए गए. इसमें विदर्भ में उगाए जाने वाले फलों के साथ-साथ स्टारफ्रूट, वाटर एप्पल, चकोतरा, शहतूत, लीची, रबर जैसे पौधे शामिल हैं, जबकि चारोली केवट, बेल, महुआ जैसे जंगली फलों के पौधे, जिनमें 36 से अधिक प्रजातियां शामिल हैं. इन सभी पौधों को योजनाबद्ध तरीके से खेत में लगाया गया, यह न केवल पर्यावरण के लिए वरदान होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हरियाली की विरासत भी है.
आज जब कई लोग कर्ज लेकर शादियों में लाखों खर्च कर रहे हैं, इस युवा किसान ने दिखा दिया है कि असली निवेश दिखावे में नहीं बल्कि समाज के विकास में है. आज श्रीकांत और अंजलि की यह शादी न केवल विदर्भ बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गई है.
श्रीकांत कहते हैं, “किसानों को सबसे पहले अपने बारे में और अपनी खेती की तरक्की के बारे में सोचना चाहिए. जब सरकार और सामाजिक व्यवस्था किसानों की परवाह नहीं करती तो किसानों को खुद आगे आकर अपनी समस्याओं का समाधान करना चाहिए. इसी सोच के साथ मैंने खेतों में सड़कें बनवाईं. साथ ही मेरे मन में सवाल था कि क्या आने वाली पीढ़ी को जंगल और उसके फलों को देखने और चखने को मिलेगा, इसी सोच के साथ मैंने रिश्तेदारों की मदद से अपने खेत में फलों का जंगल बनाने का फैसला किया. मुझे खुशी है कि मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों ने इसका समर्थन किया. मुझे उम्मीद है कि यह विवाह प्रथा समाज में एक नई सोच लाएगी.”
चंद्रपुर के इस प्रेरणादायक विवाह ने एक नई दिशा दिखाई है, जहां विवाह सिर्फ दो दिलों का बंधन नहीं बल्कि समाज और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का बंधन भी होना चाहिए. (विकास राजूरकर का इनपुट)