केंद्र सरकार ने बीते दिनों ही गन्ने से इथेनॉल बनाने पर लगी रोक को हटा दिया है. कुल जमा गन्ने से इथेनॉल बनाने का रास्ता साफ हो गया है. इथेनॉल... मौजूदा वक्त की जरूरत है. केंद्र सरकार को साल 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल समिश्रण का लक्ष्य हासिल करना है, लेकिन लक्ष्य के गणित और इथेनॉल के लिए गन्ने पर निर्भरता कई सवाल भी छोड़ रही है. सवाल ये है कि अगर इथेनॉल बनाने के लिए गन्ने की भूमिका अहम होने जा रही है तो पानी बचाने की मुहिम का क्या होगा. क्योंकि गन्ने की खेती पर खर्च होने वाला पानी चिंता का विषय है. आज की बात इसी पर...जानेंगे कि इथेनॉल का गणित क्या है. गन्ने की खेती पर कितना पानी खर्च होता है. गन्ने से इथेनॉल नहीं बनेगा तो कौन सी फसल इसका विकल्प बन सकती है.
इथेनॉल को भविष्य के ईंधन के तौर पर देखा जा रहा है. असल में दुनियाभर में जीवाश्म आधारित ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल का प्रयोग कम करने पर चर्चा हो रही है. इसके पीछे पर्यावरण से जुड़े कारणों के साथ ही बजट से जुड़ी चिंताएं अहम है. नवंबर 2022 में ग्लासगो में हुए COP 26 सम्मेलन में भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए साल 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन यानी 100 फीसदी हरित ऊर्जा हासिल करने का लक्ष्य रखा है. तो वहीं साल 2030 तक हरित ईंधन की हिस्सेदारी 30 से 50 फीसदी तक करनी है. इसी कड़ी में पेट्रोल में इथेनॉल का समिश्रण किया जा रहा है.
जुलाई 2024 तक पेट्रोल में 15.8 फीसदी इथेनॉल समश्रिण का लक्ष्य पूरा हो गया है, जबकि 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल का समिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसी तरह भविष्य में पेट्रोल में 80 फीसदी तक इथेनॉल का समिश्रण की रुपरेखा बुनी गई है. ऐसे में इथेनॉल बनाने के लिए गन्ना पसंदीदा फसल बना हुआ है. आलम ये है कि शुगर मिल्स में चीनी से इथेनॉल बनाने के लिए ढांचा तक विकसित कर दिया गया है.
खेती में पानी का प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति जानता है. कुल जमा खेती में भूजल के बढ़ते प्रयोग ने कई चिंताएं भी पैदा की हैं. मसलन, सिंचाई के लिए भूजल के प्रयोग से कई राज्यों के कई क्षेत्रों में पानी का स्तर बेहद ही नीचे चला गया है, जो भविष्य की खेती के लिए चिंता का कारण भी बना हुआ है. खेती में भूजल के गिरते स्तर के पीछे गन्ने की भी भूमिका अहम है. असल में एक एकड़ में गन्ने की खेती में 200 लाख लीटर से अधिक पानी की जरूरत होती है. कुल जमा ये माना जाता है कि एक टन गन्ना 3 लाख लीटर तक पानी सोख लेता है. वहीं एक लीटर इथेनॉल के लिए 2500 से 2800 लीटर पानी की जरूरत है. अगर इस नजरिए से देखें तो गन्ने से इथेनॉल बनाना बेहद ही महंगा सौदा है.
पेट्रोल में इथेनॉल का समश्रिण 20 फीसदी का लक्ष्य हासिल करने के लिए 1 हजार करोड़ लीटर इथेनॉल की जरूरत है. इसके लिए सरकार फिलहाल गन्ने पर निर्भर है, लेकिन गन्ने की खेती पर खर्च होने वाला पानी और उसके बाद इथेनॉल बनाने पर पानी का खर्च कई चिंताएं पैदा करता है. ऐसे में इथेनॉल के लिए गन्ने का विकल्प तलाशने की आवश्यकताएं दिखाई पड़ती है. इसके लिए काम जारी है. मक्के को इथेनॉल के लिए तैयार किया जा रहा है. तो वहीं दुनिया में ब्राजील और अमेरिका में भी इथेनॉल के लिए मक्के को प्राथमिकता दी जाती है. इसके पीछे का मुख्य कारण मक्के की खेती पर पानी का कम खर्च और मक्के से इथेनॉल बनाने में पानी का सीमित खर्च अहम है.
असल में मक्के से इथेनॉल बनाने के लिए 1500 लीटर पानी की जरूरत होती है. इसी तरह ज्वार भी इथेनॉल बनाने के लिए प्रयोग हो सकता है, जिससे इसे इथेनॉल बनाने में 1500 लीटर पानी खर्च होता है, जो गन्ने की तुलना पर बेहद कम है.
गन्ने से इथेनॉल बनाने की मुहिम में शुगर मिल्स और किसानों का फायदा बढ़ा है. मसलन, इथेनॉल से होने वाली कमाई के बाद शुगर मिल्स ने किसानों को समय पर भुगतान करना शुरू कर दिया है. इसी तरह गन्ने की FRP में भी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन ये भी सच है कि गन्ने से इथेनॉल बनाने की योजना को लंबे समय तक संचालित नहीं किया जा सकता है. ऐसे में किसानों के लिए भी जरूरी है कि भविष्य की खेती के लिए पानी बचाने की मुहिम पर ध्यान केंद्रित करते हुए वह इथेनॉल से लाभ कमाने के लिए दूसरी फसलों को उगाने की योजना पर काम करें. इस तरह से इथेनॉल इंडस्ट्री भी दूसरी फसलों की तरफ शिफ्ट होगी.