मनी के पौधे 'मनी-मनी' शौक का सफर बना करोड़ों का कारोबार, हरियाली से रचा इतिहास

मनी के पौधे 'मनी-मनी' शौक का सफर बना करोड़ों का कारोबार, हरियाली से रचा इतिहास

शौक बड़ी चीज होते है.आज से करीब 35 साल पहले शुरू किया नर्सरी. आज 2 करोड़ रुपए का सलाना है टर्नओवर. पटना के एके मनी नर्सरी कारोबार से बना रहे अपनी अलग पहचान.

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अंक‍ित शर्मा
  • Noida,
  • Jul 10, 2025,
  • Updated Jul 10, 2025, 7:12 PM IST

पटना. बिहार के किशनगंज जिले के एके मनी ने अपने पेड़-पौधों के प्रति प्रेम को ऐसा रूप दिया कि आज वे नर्सरी व्यवसाय की दुनिया में एक बड़ा नाम बन चुके हैं. उन्होंने जब इस क्षेत्र में कदम रखा था तब यह सिर्फ शौक था. लेकिन आज वही शौक 2 करोड़ रुपये सालाना टर्नओवर वाला कारोबार बन गया है. उनकी मेहनत और नवाचार ने उन्हें बिहार के नर्सरी उद्योग में अग्रणी बना दिया है.

1988 में रखी थी नींव, अब देशभर में भेजते हैं पौधे

एके मनी ने 1988 में पटना में अपनी नर्सरी की नींव रखी थी. उस दौर में नर्सरी का चलन बहुत कम था. पढ़ाई के लिए किशनगंज से पटना आए मनी ने पढ़ाई पूरी करते हुए पौधों की दुनिया में गहराई से कदम रखा. उन्होंने "फ्लोरा पेरेनिया" नाम से नर्सरी की शुरुआत की और पारंपरिक पौधों से आगे बढ़कर कैक्टस, फ्लावर बॉब जैसी दुर्लभ प्रजातियों को भी लोगों तक पहुंचाया. आज उनकी नर्सरी से देशभर में पौधों की आपूर्ति होती है.

पिता प्रोफेसर, बेटा हरियाली का कारोबारी

ए. के. मनी के पिता एक प्रोफेसर थे.जहां एक ओर परिवार को उम्मीद थी कि मनी शिक्षा या किसी सरकारी सेवा में जाएंगे. वहीं उन्होंने प्रकृति के साथ जीवन जोड़ने का रास्ता चुना. एक दिन उनके घर के बाहर लगे फूलों को देखकर एक दुकानदार ने पौधों की मांग की. मनी ने 250 रुपये में पौधे बेच दिए. यह वही दौर था जब एक समोसा 50 पैसे में मिलता था. उस अनुभव ने उनके भीतर कारोबारी चिंगारी जलाई और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

पत्नी बनीं सच्ची भागीदार

मनी की सफलता के पीछे उनकी पत्नी की अहम भूमिका है. एमबीए पास उनकी पत्नी नर्सरी के संचालन, प्रबंधन और विपणन से लेकर हर बड़े निर्णय में उनकी साथी हैं. मनी बताते हैं कि उनकी व्यावसायिक सफलता में पत्नी की समझ और समर्पण ने बहुत योगदान दिया है.

संगठन से जोड़ी व्यवसाय से जुड़ी ऊर्जा

एके मनी ने केवल अपना कारोबार खड़ा नहीं किया. बल्कि "बिहार नर्सरी मैन एसोसिएशन" के जरिए राज्यभर के नर्सरी व्यवसायियों को एकजुट किया. वे इस क्षेत्र में नवाचार और तकनीकी सहयोग के लिए लगातार प्रयासरत हैं. उनका मानना है कि हरियाली केवल लाभ का जरिया नहीं. बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है.

जज्बा बना मिसाल

आज एके मनी की गिनती उन लोगों में होती है जिन्होंने अपने जुनून को पहचानकर उसे व्यवसाय में बदला. उनकी कहानी बताती है कि करियर की राह केवल नौकरी से नहीं गुजरती. बल्कि जुनून. मेहनत और इनोवेशन से भी एक नया रास्ता निकाला जा सकता है. उनकी नर्सरी सिर्फ पेड़ों की दुकान नहीं. एक विचार है. एक प्रेरणा है जो युवाओं को आत्मनिर्भरता और प्रकृति से जुड़ने का संदेश देती है.

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