दुनिया में कई भयंकर युद्ध हुए हैं. कहीं दो देशों के बीच तो कहीं दो राज्यों के बीच कई दिनों और महीनों तक जंग चलती रही. इस दौरान दोनों तरफ से सैनिक मारे गए. अधिकतर ये लड़ाइयाँ राज्य की सीमा बढ़ाने के लिए होती थीं. इन युद्धों का कारण अन्य राज्यों पर कब्जा करना था. तो कई युद्ध ऐसे भी थे जिनके बारे में आज भी यह समझ नहीं आता कि आखिर वह युद्ध क्यों हुआ. करीब 375 साल पहले भी इसी तरह का एक युद्ध हुआ था. ये युद्ध एक तरबूज की वजह से हुआ था. जिसमें हजारों जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
यह दुनिया की इकलौती ऐसी लड़ाई थी जो एक फल के लिए हुई थी. इस युद्ध को इतिहास में मतीरा की राड़ के नाम से जाना जाता है. वो इसलिए क्योंकि राजस्थान में तरबूज को कहीं-कहीं मतीरा कहा जाता है, जबकि झगड़े को राड़ कहा जाता है.
हालांकि इतिहास में इस लड़ाई का खुलकर जिक्र नहीं मिलता है. लेकिन आज भी राजस्थान के लोगों के बीच मतीरे की राड़ की कहानी व्यापक रूप से कही जाती है. ऐसा कहा जाता है कि युद्ध में बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था जबकि नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया था.
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यह अजीब सा युद्ध 1644 में लड़ा गया था. कहा जाता है कि बीकानेर राज्य का सिलवा गांव और नागौर राज्य का जखनिया गांव आपस में सटे हुए थे. बीकानेर राज्य की सीमा में एक तरबूज का पौधा उग आया, जबकि उसका एक फल नागौर राज्य की सीमा में चला गया. रियासत के लोग कहते थे कि अगर तरबूज का पौधा उनकी सीमा में है, तो फल उनका है, जबकि नागौर रियासत के लोग कहते थे कि अगर फल उनकी सीमा में आता है, तो वह उनका है. जिसके बाद दोनों रियासतों के बीच झगड़ा हुआ और कुछ ही समय में यह झगड़ा खूनी युद्ध में बदल गया.
ऐसा कहा कहा जाता है कि इस युद्ध के मुखिया रामचन्द्र थे. जबकि नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह है कि युद्ध शुरू हो चुका था लेकिन दोनों रियासतों के राजा को इसकी भनक तक नहीं थी. वहीं जब उन्हें इस युद्ध के बारे में पता चला तो उन्होंने मुगल दरबार से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग की. हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी. कहा जाता है कि इस युद्ध में नागौर की हार हुई थी, लेकिन दोनों रियासतों के हजारों सैनिक मारे गए थे.