देश में तेजी से घट रहा तिलहन का रकबा: विदेशों से आयात को राजी मगर किसानों को MSP नहीं दे पा रही सरकार

देश में तेजी से घट रहा तिलहन का रकबा: विदेशों से आयात को राजी मगर किसानों को MSP नहीं दे पा रही सरकार

तिलहन की खेती में कमी के कारण पिछले साल खाद्य तेल के आयात पर भारत ने लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया था. हाल ही में आए कृषि मंत्रालय के आंकड़ों में दिख रहा है कि खरीफ 2025-26 सीजन में तिलहन फसलों का कुल रकबा घटकर 194.63 लाख हेक्टेयर रह गया है.

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स्वयं प्रकाश निरंजन
  • नोएडा,
  • Sep 30, 2025,
  • Updated Sep 30, 2025, 1:26 PM IST

कृषि मंत्रालय ने 26 सितंबर 2025 तक खरीफ फसलों के अंतर्गत रकबे की जो रिपोर्ट साझा की है उसमे तिलहन फसलों के आंकड़े चिंताजनक दिखाई दे रहे हैं. पहले से ही घट रहा तिलहन फसलों का रकबा और नीचे जाता दिख रहा है. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, खरीफ 2025-26 सीजन में तिलहन फसलों का कुल रकबा घटकर 194.63 लाख हेक्टेयर रह गया है, जबकि पिछले साल यह 200.52 लाख हेक्टेयर था. यानी तिलहन की खेती का क्षेत्रफल इस बार सीधा-सीधा करीब 10.52 लाख हेक्टेयर कम हुआ है. 

सोयाबीन के रकबे में सबसे बड़ी गिरावट

कृषि मंत्रालय की इस रिपोर्ट में 26.09.2025 तक खरीफ फसलों के अंतर्गत तिलहन फसलों के क्षेत्र कवरेज में जो सबसे ज्यादा कमी सोयाबीन में देखी गई है. सोयाबीन का रकबा पिछले साल के 129.55 लाख हेक्टेयर से घटकर इस साल 127.19 लाख हेक्टेयर रह गया. यानी करीब 9.10 लाख हेक्टेयर की कमी. इसी तरह मूंगफली का रकबा भी 1.65 लाख हेक्टेयर घटा है. सूरजमुखी, तिल (सेसमम) और अन्य तिलहन फसलों में भी मामूली गिरावट दर्ज की गई है. ये आंकड़े चिंता इसलिए भी बढ़ाते हैं क्योंकि भारत पहले ही विदेशों से खरीदकर अपने खाद्य तेल की जरूरत पूरी कर रहा है. अब तिलहन का रकबा घटने के कारण भारत का खाद्य तेल का खर्चा और अधिक बढ़ेगा.

दाम ना मिलने से किसान छोड़ रहे तिलहन फसलें

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में महाराष्ट्र के नासिक के एक किसान, मधुकर लोंढे बताते हैं कि उन्होंने अपने सोयाबीन के रकबे को 6 एकड़ से घटाकर 1 एकड़ कर दिया है, और बाकी खेत में मक्का बोया है, जिससे उन्हें अपनी 5 दुधारू गायों के लिए चारा प्राप्त करने में अतिरिक्त लाभ मिलता है. इस रिपोर्ट में रॉयटर्स ने जिस क्षेत्र के लगभग दो दर्जन किसानों से बात की, उन्होंने बताया कि उन्होंने भी ऐसा ही कदम उठाया है.  लोंढे ने कहा कि सोयाबीन की कीमतें बहुत कम थीं, इसलिए मैं पिछले दो सालों में अपनी लागत भी नहीं निकाल पाया. पिछले साल मक्के का प्रदर्शन मेरे लिए बेहतर रहा, इसलिए मैंने इसे ज़्यादा उगाने का फैसला किया है." 

साफ है कि तिलहन फसलों का रकबा घटने की सबसे बड़ी वजह किसानों को उनकी फसलों का उचित दाम ना मिल  पाना है. किसानो को अपनी तिलहन फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं मिल पा रहा है. खासकर सोयाबीन, जिसे किसानों को अक्सर MSP से नीचे बाजार में बेचना पड़ता है. सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने हाल ही में सोयाबीन की कीमतों में लगातार जारी गिरावट को लेकर सरकार से खाद्य तेल के आयात पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाने का आग्रह किया है. SOPA ने कहा कि सोयाबीन खली और तेल की कीमतों में गिरावट के कारण चालू विपणन वर्ष (अक्टूबर-सितंबर 2024-सितंबर 2025) के दौरान सोयाबीन का दाम 4,892 रुपये प्रति क्विंटल के MSP से नीचे बना हुआ है.

सिर्फ सोयाबीन खरीदने में जाएंगे 5,000 करोड़

नए विपणन वर्ष 2025-26 के लिए सोयाबीन की एमएसपी तो बढ़कर 5,328 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है, मगर आयात शुल्क में कमी और खली की जगह सस्ते डीडीजीएस के इस्तेमाल के कारण तेल और खली की कीमतें कम बनी हुई हैं. SOPA अध्यक्ष ने कहा कि मौजूदा फसल की स्थिति को देखते हुए, इस बात की प्रबल संभावना है कि सरकार को एक बार फिर सोयाबीन की खरीद करनी पड़ सकती है, जिस पर 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा. SOPA ने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखे पत्र में कहा कि शून्य या बहुत कम शुल्क पर आयात की अनुमति देने की दीर्घकालिक नीति ने देश की तिलहन अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचाया है. SOPA के अध्यक्ष ने कहा कि सस्ते तेल आयात और मंद कीमतों के प्रतिकूल प्रभाव के कारण इस खरीफ सीजन में सोयाबीन के रकबे में 5 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है. 

1.5 लाख करोड़ का तेल खरीद रही सरकार

भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक देश है. घरेलू उत्पादन की कमी पहले से ही बड़ी चुनौती है, और अब तिलहन रकबा घटने से तेल आयात पर देश का खर्च और बढ़ेगा. मौजूदा समय में भारत अपनी जरूरत का लगभग 60% से अधिक खाद्य तेल आयात करता है, जिस पर हर साल लाखों करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा खर्च होता है. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तिलहन की खेती में कमी के कारण पिछले वर्ष खाद्य तेल के आयात पर 17 बिलियन डॉलर (लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये) से अधिक खर्च किया था. 

भारत का खाद्य तेल का आयात दो दशक पहले के 4.4 मिलियन टन (44 लाख टन) से बढ़कर 2023-24 में 16 मिलियन टन (160 लाख टन) हो गया है, जिससे भारत इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल जैसे वनस्पति तेलों और अर्जेंटीना, ब्राजील,रूस और यूक्रेन से सोया तेल और सूरजमुखी तेल का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि बढ़ती और समृद्ध होती आबादी द्वारा तले हुए खाद्य पदार्थों और मिठाइयों की बढ़ती मांग के कारण खाद्य तेल की खपत में प्रतिवर्ष 3%-4% की निरंतर वृद्धि हो रही है. अगर भारत ने तिलहन फसलों के घटते रकबे पर ऐसी ही लापरवाही बरतना जारी रखा तो खाद्य तेल आयात पर ये खर्चा और भी तेजी से बढ़ता जाएगा.

योजना और मिशन मोड नहीं, MSP चाहिए  

खाद्य तेलों की वैश्विक आपूर्ति में कमी को देखते हुए, भारत के अतिरिक्त आयात से कीमतें और भी बढ़ जाएंगी. भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2030-31 तक घरेलू खाद्य तेल उत्पादन को वर्तमान 12.7 मिलियन टन (127 लाख टन) से बढ़ाकर 25.45 मिलियन टन (250 लाख टन) करना है, जो देश की अनुमानित डिमांड का 72% पूरा करने के लिए पर्याप्त है. मगर कृषि अर्थशास्त्रियों की मानें तो सरकार ऐसे कितने ही हवा-हावई टारगेट बना ले, कितने ही कार्यक्रम बना ले या फिर प्रेजेंटेशन दिखा ले, मगर तिलहन का रकबा बढ़ाने का एकमात्र और स्थायी समाधान है तिलहन फसलों का दाम. किसानों को जब तक तिलहन फसलों का उचित एमएसपी नहीं मिलेगा, सरकार पूरी मशीनरी लगाकर भी देश का तिलहन रकबा नहीं बढ़ा सकती. 

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