देश खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनने का सपना देख रहा है. इसके पीछे वजह ये है कि भारत खाद्य तेलों की अपनी घरेलू जरूरतों का 70 फीसदी विदेशों से आयात करता है. मसलन, इस आयात में बड़ी रकम विदेशों में जाती है. खाद्य तेलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के इस सपने के बीच देश में एक बार जीएम सरसों का जिन्न बाहर आया है. तो वहीं इसी बीच देश के किसानों ने अपनी मेहनत से ये साबित करने की कोशिश की है कि भारत खाद्य तेलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है. इसकी बानगी ये है कि इस साल देश में सरसों का बेहतर उत्पादन हुआ है तो वहीं देश के खेतों में सूरजमुखी की वापसी भी हुई है, लेकिन किसानों की इस मेहनत पर बाजार भारी पड़ रहा है. सीधे कहें तो मांग के बावजूद तिलहनी फसलें बाजार में फेल हो रही है, मसलन तिलहनी फसलों की सरकारी खरीद बेहद ही बदहाल है तो बाजार में तिलहनी फसलों को भाव ही नहीं मिल रहा है, जबकि मौजूदा समय में बाजार में खाद्य तेलों के दाम कोरोना के बाद से नई ऊचांइयों पर हैं.
खाद्य तेलों के ऊंचे दाम के बीच बाजार में तिलहनी फसलों की मांग भी है. इसके बावजूद देश में उगाई गई सरसों, सूरजमुखी और सोयाबीन जैसी तिलहनी फसलें बाजार में फेल हो रही है. इस पूरे मामले को किसान तक ने समझने की कोशिश की है. आइए ये मामला समझने की कोशिश करते हैं.
देश में तिलहनी फसलों की बदहाली को समझने का सबसे लेटेस्ट उदाहरण हरियाणा में बीते दिनों हुई सूरजमुखी क्रांति है. असल में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में बीते दिनों किसानों ने जीटी रोड जाम कर दिया था. किसानों की मांग सूरजमुखी को वापिस MSP में शामिल करने की थी और MSP के तहत सूरजमुखी के लिए प्रति क्विंटल 6400 रुपये दिए जाएं. इसे पूरे मामले को समझें तो हरियाणा सरकार ने सूरजमुखी को भावांतर योजना में शामिल कर दिया था, जिसके तहत सूरजमुखी को बाजार भाव में बेचने के बाद किसानों को प्रति क्विंटल एक हजार रुपये देने का फैसला लिया गया था. इसको लेकर किसान नाराज हो गए और किसानों ने जीटी रोड जाम कर दिया.
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इस मामले को लेकर हरियाणा सरकार ने अखबार में विज्ञापन भी छपवाया. हरियाणा सरकार ने दावा किया प्रदेश के बाजारों में सूरजमुखी काे दाम सबसे बेहतर 4900 रुपये क्विंटल मिल रहा है. जबकि अन्य राज्यों में सूरजमुखी के दाम 3500 रुपये से लेकर 4000 रुपये क्विंटल तक हैं. विज्ञापन में इस दावे के साथ हरियाणा सरकार ने कहा था कि वह भावांतर योजना से 1000 रुपये अतिरिक्त किसानों को दे रही, जिससे उन्हें प्रति क्विंटल 5900 रुपये का दाम मिल रहा है, लेकिन किसान नहीं मानें और आंदोलन जारी रहा और किसान सूरजमुखी के MSP के हिसाब से 6400 रुपये क्विंटल मांगते रहे. वहीं इस मामले में किसानों और प्रशासन के बीच जो समझौता हुआ, उसके तहत भावांतर योजना के तहत दी जाने वाली राशि MSP की जितनी देने पर सहमति बनी और किसानों ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया.
तिलहनी फसलों की बदहाली का दूसरा उदाहरण सरसाें है. इस बार रबी सीजन में ही जीएम सरसों के पर्यावरण संबंधी ट्राॅयल को मंजूरी दी गई. तो वहीं इसके सामांतर किसानों ने देश में सरसों के उत्पादन पर ध्यान दिया. नत्तीजतन, देश में सरसों का रिकाॅर्ड उत्पादन हुआ. इसके पीछे एक वजह ये भी थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पिछले साल किसानों को सरसों के बेहतर दाम मिले थे, लेकिन इस साल सरसों को उत्पादन तो बेहतर हुआ, लेकिन सरसों को बाजार में बेहतर भाव नहीं मिला.
बेशक सरसों को MSP पर खरीदने की व्यवस्था हैं, जिसके तहत इस साल सरसों का MSP 5450 रुपये क्विंटल है. MSP ij खरीद के लिए राज्य सरकार की तरफ से व्यवस्था भी की गई है, लेकिन MSP पर सरसों की खरीद में कई राज्य फिसड्डी साबित हो रहे हैं. वहीं इस बीच सरसों का बाजार भाव 4000 से 4500 रुपये क्विंटल है, जो MSP की तुलना 1000 से 1500 रुपये क्विंटल कम है. सरसों की MSP पर खरीद की बदहाली की बात करें तो राजस्थान का उदाहरण सबसे अव्वल नजर आता है. राजस्थान में देश का सबसे अधिक सरसों उगाया जाता है, लेकिन MSP में सरसों खरीद में राजस्थान सबसे फिसड्डी है. राजस्थान में दो महीने तक सरकारी केंद्रों में इस वजह से सरसों की खरीद नहीं हुई कि केंद्रो पर बारदाना नहीं था. नतीजतन किसानों को मंडी पर पहुंचकर भी वापस आना पड़ा तो कई मंडियों पर आज भी किसानों के माल लदे ट्रैक्टर खड़े होने के मामले सामने आ रहे हैं. सरसों की बदहाली को ऐसे समझा जा सकता है कि एक तरफ जहां MSP पर सरसों की सरकारी खरीद बेहद ही पिछड़ी है तो वहीं दूसरी तरफ बाजार में भाव बेहद कम है. ऐसे में किसान परेशान हैं.
तिलहनी फसलों की बदहाली का तीसरा मामला सोयाबीन से जुड़ा है. देश में सोयाबीन के दामों में बीते दिनों गिरावट दर्ज की गई है. सोयाबीन का MSP 4500 रुपये क्विंटल है, लेकिन बीते दिनों महाराष्ट्र की कई मंडियों में सोयाबीन के दाम 3000 से 4000 रुपये क्विंटल पहुंच गए हैं.
तिलहनी फसलों के साथ हो रहे इस खेल को समझाते हुए राष्ट्रीय तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर कहते हैं कि केंद्र सरकार विदेशों से आयात होने वाले खाद्य तेलों की इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती कर रही है. व्यापारियों को विदेशों से आने वाले खाद्य तेल सस्ते पड़ रहे हैं, इस वजह से व्यापारी देश के किसानों ने तिलहनी फसलें खरीदने के बजाय विदेशों से तिलहनी फसल खरीदना पसंद कर रहे हैं. ठक्कर कहते हैं कि देश के आम आदमी को सस्ता खाद्य तेल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से खाद्य तेलों से इंपोर्ट ड्यूटी कम गई है. साथ ही ठक्कर कहते हैं कि सरकार अपनी नीति स्पष्ट नहीं कर पा रही है कि उसे किसानों को फायदा पहुंचाना है या आम आदमी को सस्ता खाद्य तेल उपलब्ध कराना है. सरकार को अपनी रणनीति स्पष्ट करनी चाहिए कि भारत को खाद्य तेलों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्या करना चाहिए. वहीं इसके जवाब में राष्ट्रीय किसान महापंचायत के राष्ट्रीय रामपाल जाट कहते हैं कि सरकार को आम जन को सस्ता खाद्य तेल उपलब्ध कराने के लिए इसे खाद्य सुरक्षा अधिनियम में रखना चाहिए.
देश में तिलहनी फसलों की बदहाली का आलम गुरुवार को केंद्र सरकार की तरफ से जारी आदेश में समझा जा सकता है. केंद्र सरकार ने गुरुवार को जारी आदेश में सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के आयात में लगने वाली इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती की है. जिसके बाद रिफाइंड सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के आयात में इंपोर्ट ड्यूटी 17.50 फीसदी से घटकर 12.50 फीसदी रह गई है तो वहीं कच्चे खाद्य तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी 5 फीसदी रह गई है.
भारतीय तिलहनी फसलों की बदहाली के पीछे इंपोर्ट ड्यूटी में कटौती बड़ा कारण है, लेकिन इसके लिए विशेषज्ञ पाम ऑयल का भी बड़ा विलेन मानते हैं. राष्ट्रीय तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर कहते भारत के पारंपरिक खाद्य तेलों पर भारी पड़ते पाम ऑयल के ट्रेंड पर चिंता जताते हैं तो वहीं राष्ट्रीय किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट पाम ऑयल पर बैन लगाने की मांग करते हैं. जाट कहते हैं कि ताड़ के पेड़ाें से लगने वाले रस में गंध और ना ही स्वाद है, लेकिन समिश्रण के नाम पर पाम ऑयल काे खाद्य तेलों में मिलाया जा रहा है, जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए तो नुकसानदायक है ही. साथ ही इस समिश्रण के फार्मूले से सरसों समेत अन्य तिलहनी फसलें उगाने वाले किसानों को नुकसान हो रहा है. जाट कहते हैं कि पाम ऑयल को बैन किया जाना चाहिए.
साथ ही रामपाल जाट देश में सबसे अधिक सरसों उत्पादित करने वाले राजस्थान में सरसों की सरकारी खरीद की बदहाली पर भी चिंता जताते हैं. जाट कहते हैं कि एक तरफ केंद्र सरकार इंपोर्ट ड्यूटी कम कर विदेशों से आने वाले खाद्य तेलाें को बढ़ावा दे रही है ताे वहीं दूसरी तरफ राजस्थान जैसे प्रदेश में ही सरसों की सरकारी खरीद बदहाली झेल रही है. वह दो धुर विरोधी राजनीति विचार वाली दलों की सरकारों के तिलहनी फसलों पर एक विचार पर भी चिंता जताते हैं.