बकरी के दूध और मीट ही नहीं उसकी मेंगनी से भी हर महीने एक बड़ी इनकम होती है. अगर आपका खेत है और उसमे आप चारा या फिर दूसरी फसल उगाते हैं तो यह सोने पर सुहागा भी हो सकता है. केन्द्री य बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट का मानना है कि गोबर और दूसरी खाद के मुकाबले बकरी की मेंगनी से बनी खाद अच्छी मानी जाती है. यूपी के एक बकरी पालक का मानना है कि बकरी की मेंगनी लेने के लिए किसान उनके यहां बुकिंग तक कराते हैं.
साइंटिस्ट का कहना है कि बकरी की मेंगनी को सीधे भी बेचा जा सकता है और उसकी कम्पोस्ट और वर्मी वर्मी कम्पोस्ट बनाकर भी बेचा जा सकता है. इसके अलावा बहुत सारे पशु पालक ऐसे भी हैं जो अपनी जमीन पर पशु का चारा उगाते हैं तो उस खेत में बकरी की मेंगनी का इस्तेमाल खाद के रूप में करते हैं. वहीं बकरी की मेंगनी ऑर्गनिक खेती का भी एक अच्छा स्त्रोत है.
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सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ ने किसान तक को बताया कि फसल चारे की हो या फिर कोई और दूसरी, खाद के रूप में उसे नाइट्रोजन, पोटेशियम और फॉस्फोरस की जरूरत होती है. वहीं बकरी की मेंगनी में तीन फीसद नाइट्रोजन, दो फीसद पोटेशियम और एक फीसद फॉस्फोररस होता है. मेंगनी की कुछ और खासियत यह भी हैं कि यह मिट्टी में मौजूद भौतिक और रसायनिक गुणों में पॉजिटिव बदलाव लाती है. इतना ही नहीं मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाती है. जबकि दूसरी खाद में यह गुण बिल्कु ल भी नहीं हैं या कम हैं. डॉ. आरिफ ने बताया कि हम संस्थान में बकरी पालन की ट्रेनिंग लेने के लिए आने वाले किसानों को ऑर्गेनिक चारा उगाने के बारे में बता रहे हैं.
इतना ही नहीं हम खुद भी अपने संस्थान के खेतों में ऑर्गेनिक चारा उगा रहे हैं. ऑर्गनिक चारे के लिए मेंगनी के इस्तेामाल पर कई साल से हमारी रिसर्च चल रही है. इसके अलावा हमने ऑर्गनिक चारे के लिए जीवामृत, नीमास्त्रह और बीजामृत बनाया है. गुड़, बेसन और देशी गाय के गोबर-मूत्र में मिट्टी मिलाकर जीवामृत बनाया जा रहा है. ये सभी चीजें मिलकर मिट्टी में पहले से मौजूद इकोफ्रेंडली बैक्टीरिया को और बढ़ा देती हैं. इसी का फायदा चारे को मिलता है.
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मथुरा, यूपी के बकरी पालक राशिद ने किसान तक को बताया कि अगर किसी बकरी फार्म में 200 बकरी हैं तो यह तय मान लें कि 25 से 30 दिन में एक ट्राली मेंगनी जमा हो जाती है. अगर मेंगनी की इस ट्राली को बेचा जाए तो यह 1200 रुपये से लेकर 1400 रुपये तक की बिक जाती है. वहीं अगर हम इसे वर्मी कम्पोोस्टा बनाकर बेचते हैं तो यह आठ से 10 रुपये किलो तक बिकती है. वर्मी कम्पोेस्टर बनाने में थोड़ी मेहनत जरूरत लगती है, लेकिन इससे मुनाफा अच्छाच हो जाता है.
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