राजस्थान में सरकार ने न्यूनतम मजदूरी में इज़ाफा किया है. अब हर एक तरह के मजदूर को 26 रुपये प्रतिदिन की बढ़ोतरी के हिसाब से मजदूरी मिलेगी. यह बढ़ी हुई दरें एक जनवरी 2023 से प्रभावी होंगी. इस संबंध में प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी मंजूरी दे दी है. सीएम ने निर्णय के बाद कहा कि इस निर्णय से श्रमिकों को आर्थिक एवं सामाजिक सम्बल मिलेगा. साथ ही महंगाई के समय में उन्हें आर्थिक रुप से थोड़ी राहत भी मिलेगी. वहीं, जानकारों का कहना है कि इस साल राजस्थान में चुनाव भी होने हैं तो ऐसे में कांग्रेस सरकार का यह निर्णय ग्रामीण स्तर पर उन्हें फायदा दे सकता है.
हालांकि मजदूरी बढ़ाना एक रुटीन काम है, लेकिन चुनाव से महज दो महीने पहले यह निर्णय क्या कांग्रेस को कोई फायदा दे पाएगा?
राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद अब अब अकुशल यानी अनस्किल्ड लेबर को 285 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलेगी. इसे 26 रुपये बढ़ाकर 259 से 285 रुपये किया गया है. इस तरह अकुशल श्रमिक को महीने में 7410 रुपये मजदूरी मिलेगी.
इसी तरह अर्द्धकुशल श्रमिक को 271 रुपये की बजाय 297 रुपये प्रतिदिन या 7722 रुपये प्रतिमाह मजदूरी दी जाएगी. वहीं, कुशल यानी स्किल्ड श्रमिक को 283 रुपये के स्थान पर 309 रुपये प्रतिदिन या 8034 रुपये हर महीने दिए जाएंगे.
इसी तरह उच्च कुशल श्रमिक यानी हाइ स्किल्ड लेबर को 333 रुपये के स्थान पर 359 रुपये रोजाना या 9334 रुपये प्रतिमाह मजदूरी मिलेगी. सीएम ने कहा कि मजदूरों और कामगारों के आर्थिक हित को देखते हुए इन बढ़ी हुई दरों को एक जनवरी, 2023 से प्रभावी किया गया है.
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श्रम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी मिनिमम वेज एक्ट, 1948 के तहत की गई है. इसमें 56 नियोजनों में न्यूनतम मजदूरी की वर्तमान में प्रभावी दरों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जुलाई, 2021 से दिसम्बर, 2022 तक हुई 687 अंकों की वृद्धि के अनुसार बढ़ोतरी के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है.
इसके तहत 26 रुपये प्रतिदिन न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा गया था. बता दें कि न्यूनतम मजदूरी की दरों में पिछली वृद्धि सात रूपये प्रतिदिन की दर से एक जुलाई, 2021 को की गई थी.
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इस साल के अंत में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं. वहीं, प्रदेश में अधिकतर मजदूर या तो दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं या फिर जयपुर, भिवाड़ी, अलवर, जोधपुर जैसे शहरों में आते हैं. इसीलिए चुनावी मौसम में कांग्रेस को इसका फायदा भी मिल सकता है.
ऐसा इसीलिए भी क्योंकि अगले महीने सितंबर और अक्टूबर में फसल कटाई का वक्त भी होता है और अधिकतर प्रवासी मजदूर खेती के काम के लिए अपने गांवों की ओर लौटते हैं और फिर दिवाली जैसे त्योहारों के बाद ही लौटते हैं. इसीलिए संभावना है कि वे चुनावों तक भी गांव में रुक जाएं, लेकिन सवाल है कि क्या इसका फायदा चुनाव में वोटों के तौर पर मिल पाएगा?