इमली के बारे में तो सुना है, ये कचंपुली क्या होती है? जानिए इसकी विशेषताएं 

इमली के बारे में तो सुना है, ये कचंपुली क्या होती है? जानिए इसकी विशेषताएं 

मालाबार इमली को देसी भाषा में काचमपुली के नाम से जाना जाता है. इसकी उत्पत्ति भारत और म्यांमार में हुई. यह कोंकण से लेकर केरल तक पश्चिमी घाट में व्यापक रूप से पाया जाता है. इसका उपयोग पारंपरिक भोजन में मसाले के रूप में भी किया जाता है. इसके बीज भी खाए जाते हैं. इतना ही नहीं, इसका उपयोग मलहम, साबुन, मिठाई, सौंदर्य प्रसाधन और सब्जियों में किया जाता है.

Kachampuli TamarindKachampuli Tamarind
प्राची वत्स
  • Noida,
  • Nov 27, 2023,
  • Updated Nov 27, 2023, 2:54 PM IST

बात जब भी कुछ खट्टा या मीठा खाने की होती है तो सबसे पहले इमली का ख्याल आता है. खास कर भारत में इमली का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है. इतना ही नहीं इसका इस्तेमाल कई प्रकार के खानो में किया जाता है. इमली एंटीऑक्सिडेंट, फ्लेवोनोइड और विटामिन सी और ए जैसे खनिजों का एक पावरहाउस है. जो शरीर के साथ-साथ त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है. यह आपके शरीर में फ्री रेडिकल्स को बनने से रोकता है और त्वचा को बेहतर बनाता है. हृदय रोगों के खतरे को कम करने में इमली बहुत फायदेमंद हो सकती है. यो तो थे इमली के फायदे. ऐसे में आज हम बात करेंगे कचंपुली के बारे में. तो आइए जानते हैं क्या है कचंपुली और इसकी विशेषताएं.

क्या है ये कचंपुली?

मालाबार इमली को देसी भाषा में कचंपुली के नाम से जाना जाता है. इसकी उत्पत्ति भारत और म्यांमार में हुई. यह कोंकण से लेकर केरल तक पश्चिमी घाट में व्यापक रूप से पाया जाता है. इसका फल आसानी से खाया जा सकता है. लेकिन इसका स्वाद इतना खट्टा होता है कि इसे कच्चा नहीं खाया जा सकता. इन्हें सुखा कर इसका इस्तेमाल किया जाता है. वहीं, केरल और कर्नाटक में नींबू या इमली की जगह भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.

क्या है इस फल की खासियत

इसका उपयोग पारंपरिक भोजन में मसाले के रूप में भी किया जाता है. इसके बीज भी खाए जाते हैं. इतना ही नहीं, इसका उपयोग मलहम, साबुन, मिठाई, सौंदर्य प्रसाधन और सब्जियों में किया जाता है. तने से निकाले गए गोंद का उपयोग अच्छा वार्निश बनाने में किया जाता है. ये पेड़ जंगली इलाकों और पिछवाड़े में पाए जाते हैं. भारत में मालाबार इमली के बागान लगभग न के बराबर हैं. फलों को जंगलों या घरेलू बगीचों से एकत्र किया जाता है और बाजार में बेचा जाता है.

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कितने रुपये बिकता है ये फल

अनुमान है कि लगभग 2500 टन सूखा छिलका जंगलों और अन्य क्षेत्रों से एकत्र किया जाता है. मालाबार इमली उष्णकटिबंधीय जलवायु परिस्थितियों में अच्छी तरह से बढ़ती है. अभी तक भारत में इसकी कोई वैरायटी जारी नहीं की गई है. इस फल को पकने में 110-125 दिन का समय लगता है. पकने की अवस्था में इस फल का रंग हल्का पीला हो जाता है. साथ ही यह फल मुलायम भी हो जाता है. ये फल जुलाई-अगस्त माह में पकते हैं. इन फलों की कीमत 300-800 रुपये प्रति किलो की दर से बेचे जाते हैं. तमिलनाडु में इस फल के सिरके की काफी मांग है और यह 800-1600 रुपये प्रति लीटर की दर से बिकता है.

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