करनाल में अटल किसान-मजदूर कैंटीन की अनोखी पहल, 500 ग्राम प्‍लास्टिक के बदले मिलता है भरपेट खाना

करनाल में अटल किसान-मजदूर कैंटीन की अनोखी पहल, 500 ग्राम प्‍लास्टिक के बदले मिलता है भरपेट खाना

करनाल की अटल किसान मजदूर कैंटीन ने 500 ग्राम वेस्ट प्लास्टिक लाने वालों को भरपेट भोजन देने की अनोखी पहल शुरू की है. महिलाएं स्व-सहायता समूह के साथ स्वच्छता और पोषण का संदेश फैलाते हुए गरीब और जरूरतमंद लोगों को पौष्टिक खाना उपलब्ध करा रही हैं.

Karnal Atal CanteenKarnal Atal Canteen
कमलदीप
  • Karnal,
  • Sep 19, 2025,
  • Updated Sep 19, 2025, 7:21 PM IST

करनाल में अटल किसान मजदूर कैंटीन ने अब एक और अलग शुरुआत की है. यहां महिलाओं का एक समूह 500 ग्राम वेस्ट प्लास्टिक के बदले में भरपेट खाने की थाली दे रहा है. यह कैंटीन स्वच्छता को लेकर एक अलग मिसाल पेश कर रही है, जहां किसान, मजदूर और जरूरतमंद गरीब लोग आधा किलो वेस्ट प्लास्टिक देकर भरपेट खाना खाकर अपनी भूख मिटाते हैं. अटल किसान मजदूर कैंटीन में मौजूद सुमन डांगी ने बताया इस कैंटीन की शुरुआत किसानों और मजदूरों के लिए की गई थी. लेकिन, अब इसमें एक नई शुरुआत की गई है. 500 ग्राम वेस्ट प्लास्टिक लेकर आओ और भर पेट खाना खाओ.

जरूरतमंद और गरीब तबके के लोग करते हैं भोजन

सुमन ने बताया 10 रुपये की प्लेट, जो हम किसान मजदूर को देते हैं. वही प्लेट 500 ग्राम वेस्ट प्लास्टिक के बदले में हम उन्हें देते हैं. जो जरूरतमंद व्यक्ति 500 ग्राम प्लास्टिक लेकर आते हैं. उन्होंने बताया बजुर्ग, बच्चे और गरीब तबके के लोग वेस्ट प्लास्टिक लेकर आते हैं. सुमन बताती हैं कि स्वच्छता को देखते हुए हमने भी एक कदम उठाया है. जगह-जगह पर प्लास्टिक बिखरी रहती थी, जिसके बाद हमने एक विचार किया और मेरे साथ जुड़ी महिलाओं और हमारे सीनियर ने बहुत सहयोग किया.

थाली में होती हैं इतनी चीजें

साथ-साथ सरकार की और से भी हमे पूरा सहयोग मिल रहा है. जिनके कारण हमें आजीविका मिली और आज हम सभी काम कर रहे हैं. साफ सफाई के साथ लोगों का पेट भी भर रहा है. उन्होंने बताया यहां खाने में रोजाना दो सब्जी, चावल, रोटी, लस्सी, सिर्फ 10 रुपए में मिलती है और 500 ग्राम वेस्ट प्लास्टिक लाने वालों को भरपेट खाना खिलाया जाता है. उन्होंने बताया कि किसानों और मजदूरों के लिए अटल किसान मजदूर कैंटीन की शुरुआत 2019 में की गई थी. लोग यहां आते हैं और भरपेट खाना खाते हैं और खुश होकर जाते हैं. लोगों को यहां गर्मा गर्म खाना मिलता है. 

ऐसे हुई प्‍लास्टिक के बदले थाली की शुरुआत

सुमन बताती है यहां मंडी में कुछ बच्चे आते थे और यहां पर लोगो से पैसे मांगते थे, ताकि खाना खा सके. हमने उन बच्चो को कहा आप लोगो से पैसे मांगने की बजाए जो इधर-उधर वेस्ट प्लास्टिक पड़ा रहता है. उसे लेकर आओ और यहां आकर खाना खाओ. उसी से हमने ये प्लानिंग की और 500 ग्राम प्लास्टिक लेकर आने वाले लोगों के लिए खाना खिलाने की बात आई. करनाल के गांव भूसली की महिला सुमन डांगी के अनोखे प्रयास ने स्वच्छता के प्रति लोगों की सोच में बदलाव लाया है.

जब पूरी दुनिया अर्थ डे पर पर्यावरण की रक्षा और सामुदायिक भागीदारी की बात कर रही है, तब एकता महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य सुमन डांगी ने प्लास्टिक कचरे को सामाजिक बदलाव का साधन बना दिया है. उन्होंने एक अनोखा मॉडल शुरू किया, जिसमें लोग 500 ग्राम रीसाइक्लेबल प्लास्टिक के बदले पौष्टिक भोजन प्राप्त करते हैं. अब तक 15 सौ किलो से ज़्यादा प्लास्टिक इक्कठा कर कबाड़वालों को बेचा गया है और इससे तीन हजार से अधिक थाली परोसी जा चुकी हैं.

6 मह‍िला स्‍व-सहायता समूह कर रहे काम

आपको बता दें कि सुमन एक महिला स्व-सहायता समूह द्वारा संचालित अटल किसान मजदूर कैंटीन में काम करती हैं. वह अपने साथ पांच से छह स्व-सहायता समूहों की महिलाओं के रोजगार का साधन बनी हुई हैं. यहां उन्होंने एक ऐसी पहल शुरू की है जिसने प्लास्टिक कचरे की समस्या को एक समाधान में बदल दिया है. अब कचरा एक बोझ नहीं, बल्कि गरिमा, पोषण और स्वच्छता का जरिया बन चुका है.

उनका यह कार्य स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण की उस सोच का सटीक उदाहरण है, जिसमें स्थानीय समाधान, सामुदायिक भागीदारी और विकेंद्रीकृत प्रयासों को प्राथमिकता दी जाती है. सुमन की कैंटीन इस सोच को ज़मीन पर उतारती है. यह दिखाती है कि एक छोटी सी पहल भी बड़ा असर डाल सकती है. अब इस सोच को और आगे ले जाने के लिए अपने प्रदेश में चल रही कैंटीन में इस तरह के प्रयास की शुरुआत करना चाहती हैं, ताकि अपने शहर के साथ-साथ पूरे भारत को प्लास्टिक कचरे से मुक्त किया जा सके.

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