बड़े नहीं बल्कि छोटे खेतों से मिलता है ज्यादा उत्पादन, IIT बॉम्बे की रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा

बड़े नहीं बल्कि छोटे खेतों से मिलता है ज्यादा उत्पादन, IIT बॉम्बे की रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा

भारतीय कृषि की उत्पादकता को लेकर आईआईटी बॉम्बे ने एक चौंकाने वाली दावा किया है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि भारत में बड़े खेत छोटे खेतों के मुकाबले कम उत्पादक हैं. स्टडी में पता लगा है कि प्रति एकड़ उपज के मामले में छोटे कृषि फार्म आमतौर पर बड़े फार्मों की तुलना में अधिक उत्पादक होते हैं.

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क‍िसान तक
  • नोएडा,
  • Sep 17, 2025,
  • Updated Sep 17, 2025, 2:24 PM IST

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (IIT बॉम्बे) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि प्रति एकड़ उपज के मामले में छोटे कृषि फार्म आमतौर पर बड़े खेतों की तुलना में अधिक उत्पादक होते हैं. यह बात एक अध्ययन में सामने आई, जिसके लिए शोधकर्ताओं ने हैदराबाद स्थित अर्द्ध शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) के 1975 से 2014 तक के चार दशकों के डेटा सेट से प्राप्त ग्राम-स्तरीय अध्ययनों का आकलन किया.

खाद्य सुरक्षा के लिए छोटे किसान बेहद महत्वपूर्ण

आईआईटी बॉम्बे के शैलेश जे मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक सार्थक गौरव ने कहा कि विकासशील देशों में खेतों के आकार और कृषि उत्पादकता के बीच संबंध पर कई दशकों से बहस चल रही है. हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण स्थिरता के लिए छोटे किसान अभी भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन एकल-फसल और उच्च इनपुट लागत के कारण वे लगातार कमजोर होते जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमारा मानना ​​है कि आगे बढ़ने का रास्ता छोटे किसानों की क्षमता को मजबूत करना है, ताकि उन्हें उपयुक्त प्रौद्योगिकियों, किफायती ऋण और विश्वसनीय विस्तार सेवाओं तक पहुंच में सुधार किया जा सके.

क्यों ज्यादा उत्पादक हैं छोटे खेत 

आईआईटी बॉम्बे और हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि छोटे खेत, खासकर शुरुआती वर्षों (1975-84) में, अधिक उत्पादक थे. पहले के अध्ययनों में खेत के आकार और उत्पादकता के बीच इस विपरीत संबंध के लिए विभिन्न स्पष्टीकरण दिए गए हैं और सबसे आम स्पष्टीकरण यह था कि छोटे किसान बड़े भूस्वामियों की तुलना में कहीं अधिक गहन पारिवारिक श्रम लगाते हैं, अधिक ध्यान देते हैं और प्रति इकाई अधिक उर्वरक डालते हैं.

हालांकि, नए अध्ययन में पाया गया कि उन शुरुआती सालों में भी, उत्पादकता का पैमाना छोटे खेतों की ओर उतना झुका नहीं था जितना पहले सोचा गया था. छोटे खेतों का विपरीत लाभ, वास्तव में, सांख्यिकीय रूप से नगण्य था, जब टीम ने प्रत्येक भूखंड में लगने वाले श्रम और उर्वरक की मात्रा को नियंत्रित किया. गौरव ने बताया कि श्रम और गैर-श्रम दोनों प्रकार की सामग्री, जैसे बीज, उर्वरक और मशीनरी का भूमि उत्पादकता के साथ एक मजबूत सकारात्मक संबंध है. इससे पता चलता है कि केवल भूमि का आकार ही मायने नहीं रखता, बल्कि यह भी मायने रखता है कि उस भूमि पर कितनी प्रभावी ढंग से खेती की जाती है.

व्यापक मशीनीकरण के बावजूद भी ये हाल

इस अध्ययन से यह भी पता चला कि हाल के सालों में व्यापक मशीनीकरण के बावजूद, यह विपरीत पैटर्न कमजोर तो हुआ है, लेकिन पूरी तरह से उलटा नहीं हुआ है. प्रोफेसर ने कहा कि हमें उम्मीद थी कि बढ़ते कृषि मशीनीकरण और बाजारों तक बेहतर पहुंच के साथ, बाद के सालों में यह संबंध सकारात्मक हो सकता है. लेकिन 2014 तक भी, यह संबंध नगण्य सकारात्मक ही रहा था और पूरी तरह से उलटा नहीं हुआ था. यह निरंतरता हमें इस बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताती है कि अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों जैसे क्षेत्रों में संरचनात्मक परिवर्तन कितने असमान या धीमे हो सकते हैं.

अध्ययन में कहा गया है कि ऐसे देश में, जहां 2 हेक्टेयर से कम भूमि वाले छोटे किसान देश की कृषि आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं, नए निष्कर्षों के खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन, स्थिरता, कृषि नीतियों और कृषि क्षेत्र में भूमि सुधार जैसे पहलुओं पर दूरगामी प्रभाव होंगे.

किसानों की सामूहिक क्षमता में सुधार की जरूरत

गौरव ने जोर देकर कहा कि बाजारों और इनपुट तक पहुंचने के लिए छोटे किसानों की सामूहिक क्षमता में सुधार को प्राथमिकता देने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा कि हमने जो चुनौतियां देखीं, उनमें से कई सिर्फ़ खेतों के आकार से संबंधित नहीं थीं, बल्कि इनपुट और आउटपुट बाजारों से कमजोर जुड़ाव और ज्ञान या बुनियादी ढांचे तक सीमित पहुंच से संबंधित थीं. छोटे किसानों को सामूहिक या उत्पादक समूहों में संगठित करने में मदद करने से वे संसाधनों को एकत्रित कर सकेंगे, कृषि-पारिस्थितिकी पद्धतियों को अपना सकेंगे और बेहतर कीमतों पर बातचीत कर सकेंगे. (सोर्स- PTI)

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