
भारत के कृषि क्षेत्र से जुड़ी ताज़ा सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक देश की खेती लगातार मजबूती की ओर बढ़ रही है. उत्पादन, आय, तकनीक और योजनाओं के स्तर पर कई सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं. सरकार का जोर न सिर्फ पैदावार बढ़ाने पर है, बल्कि किसानों की लागत कम करने, बाजार से जोड़ने और जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने पर भी है.
वर्ष 2023-24 में कृषि क्षेत्र का सकल मूल्य वर्धन (GVA) 23.67 लाख करोड़ रुपये आंका गया, जिसमें 2.7% की वृद्धि दर्ज हुई. वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 24.76 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जिसमें 4.6% की वृद्धि देखी जा रही है. यह संकेत है कि कृषि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही है. सरकार के अनुसार 2024-25 में देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 3577.32 लाख टन रहने का अनुमान है. यह पिछले साल के 3322.98 लाख टन से 7.65% ज्यादा है. यानी करीब 254 लाख टन की अतिरिक्त पैदावार, जो किसानों की मेहनत और बेहतर नीतियों का नतीजा है.
बीज, मजदूरी, कीटनाशक और उर्वरकों की बढ़ती लागत किसानों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. इसे देखते हुए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग कई केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के जरिए किसानों को आर्थिक और तकनीकी सहायता दे रहा है, ताकि खेती की लागत को संतुलित किया जा सके. किसानों को बेहतर दाम दिलाने के लिए सरकार राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) को मजबूत कर रही है. यह एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जो देशभर की मंडियों को जोड़ता है. इससे किसानों और व्यापारियों को पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी बाजार मिलता है और बिचौलियों पर निर्भरता घटती है.
जलवायु बदलाव के असर को देखते हुए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन को राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के तहत लागू किया जा रहा है. इसका उद्देश्य खेती को बदलते मौसम के अनुरूप ढालना और जोखिम कम करना है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) उच्च उपज, जलवायु-अनुकूल और पोषणयुक्त फसल किस्मों के विकास पर काम कर रही है. साथ ही, उत्पादन और संरक्षण तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिए प्रशिक्षण, फील्ड डेमो, किसान मित्र कार्यक्रम और सोशल मीडिया का उपयोग किया जा रहा है.
पीएम-किसान योजना के तहत पात्र किसानों को सालाना 6,000 रुपये सीधे उनके बैंक खातों में दिए जाते हैं. पारदर्शिता के लिए आधार, ई-केवाईसी, भूमि सीडिंग और पीएफएमएस जैसे तकनीकी उपाय लागू किए गए हैं. सरकार ने सैचुरेशन अभियानों के जरिए करोड़ों नए किसानों को इस योजना से जोड़ा है. प्रति बूंद अधिक फसल (PDMC) योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई को बढ़ावा दिया जा रहा है. छोटे किसानों को 55% और अन्य किसानों को 45% तक सब्सिडी दी जाती है, जिससे पानी की बचत और उत्पादन दोनों बढ़ते हैं.
सरकार डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन के जरिए एग्रीस्टैक, सैटेलाइट निगरानी, एआई आधारित सलाह और कीट निगरानी सिस्टम विकसित कर रही है. इससे किसानों को समय पर सटीक जानकारी और सलाह मिल सकेगी. इसके साथ ही सरकार ने 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (FPO) के गठन की योजना लागू की है. प्रत्येक एफपीओ को प्रबंधन खर्च, इक्विटी अनुदान और 2 करोड़ रुपये तक की ऋण गारंटी की सुविधा दी जा रही है, जिससे किसान संगठित होकर बेहतर मोलभाव कर सकें.
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