खेती में लगातार हो रहे बदलाव और मौसम की मार को देखते हुए कृषि क्षेत्र में कई नए काम किए जा रहे हैं. ऐसे में अब कृषि वैज्ञानिक भी खेती में अधिक उपज के लिए अनाजों की नई किस्मों को तैयार कर रहे हैं, जो कम पानी, गर्मी पाला या अन्य चुनौतियों में भी अच्छा उत्पादन दे सकें. इसी दिशा में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय इंस्टीट्यूट इंदौर ने गेहूं की एक नई और उन्नत किस्म को विकसित किया है. इस किस्म का नाम पूसा गेहूं क्रांति (HI-1669) है. ये किस्म न सिर्फ उच्च उपज देने वाली है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को झेलने में भी सक्षम हैं. ऐसे में आइए जानते हैं इसकी खासियत क्या-क्या है.
ICAR द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पूसा गेहूं क्रांति (HI-1669) समय पर बुवाई और सिंचित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त किस्म है, जो कि बुवाई के करीब 119 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. बात करें इस किस्म से होने वाली पैदावार की तो, किसान इस किस्म से प्रति हेक्टेयर औसतन 59 क्विंटल तक पैदावार ले सकते हैं. इसके साथ ही गेहूं की इस किस्म की खासियत यह है कि ये तना रस्ट और पत्ती रस्ट रोग के प्रति प्रतिरोधी है. इसके साथ ही ये किस्म करनाल बंट, पत्ती झुलसा और ध्वज कंड रोग के प्रति कीटों के प्रति सहनशील है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय इंस्टीट्यूट इंदौर द्वारा विकसित की गई गेहूं पूसा गेहूं क्रांति (HI-1669) की खेती कई राज्यों में की जा सकती है. इस किस्म की खेती के लिए उत्तर भारत के राज्य, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभाग), पश्चिमी उत्तर प्रदेश और झांसी संभाग जैसे राज्यों में इस किस्म की खेती की जा सकती है. ये किस्म उन इलाकों में बेहतर उपज देती है जहां सिंचाई का उचित साधन हों.
गेहूं की खेती के लिए सही समय का चुनाव करना बेहद जरूरी है. इसकी खेती के लिए नवंबर का महीना सबसे सही माना जाता है. विशेष रूप से अक्टूबर के आखिरी दिनों से लेकर नवंबर के तीसरे हफ्ते तक इसकी खेती करना बेस्ट माना जाता है. अगर किसान इस समय इस किस्म की बुवाई करते हैं तो काफी अच्छी पैदावार मिलेगी. ध्यान देने वाली बात है कि इसकी बुवाई से पहले किसान ये जरूर जांच लें कि खेत की मिट्टी में नमी पर्याप्त मात्रा में हो और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो.