
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड (ASRB) के डेटा डिलीट कांड में कई चौंकाने वाले पहलू शामिल हैं. पहले मुख्य सर्वर और फिर डेटा रिकवरी सेंटर (DRC) दोनों का डेटा डिलीट होना अपने आप में न सिर्फ हैरान करने वाला है बल्कि गंभीर सवाल भी खड़े कर रहा है. सवाल यह है कि आईसीएआर और एएसआरबी का कोर डेटा उड़ने के बावजूद एफआईआर क्यों नहीं करवाई गई. मार्च में डेटा उड़ा तो जांच कमेटी इतने लंबे समय बाद जुलाई में क्यों बनी. आईटी और साइबर मामले से जुड़े इस केस की जांच क्रॉप साइंस के विशेषज्ञ को क्यों दी गई और मेन सर्वर का डेटा डिलीट होने के बाद तुरंत बैकअप क्यों नहीं लिया गया? इन सवालों का जवाब कोई भी अधिकारी देने को तैयार नहीं है? इसलिए इसमें साजिश वाले एंगल को हवा दी जा रही है.
पूरे मामले को लेकर हमने ICAR के महानिदेशक डॉ. एमएल जाट से बात की. 'किसान तक' से बातचीत में डॉ. जाट ने स्वीकार किया कि सर्वर से डाटा डिलीट होने के केस में कोई एफआईआर दर्ज नहीं करवाई गई है. डीजी ने यह भी माना कि पहले दिल्ली में डेटा डिलीट हुआ फिर कुछ दिन बाद हैदराबाद में. एक साथ डेटा नहीं उड़ा था. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चार लोगों पर एक्शन लिया गया है और डेटा रिकवर करने की कोशिश जारी है. जाट ने कहा कि जांच अभी चल रही है ताकि यह पता चले कि डेटा जानबूझकर डिलीट किया गया या फिर जो कुछ भी हुआ वह एक एक्सीडेंट है. उन्होंने कहा कि अब तक की जांच के बाद ऐसा लगता है कि अलर्ट और मेंटेनेंस को लेकर जरूरी बातों को नजरअंदाज किया गया. हालांकि, घटनाक्रम को देखें तो डॉ. जाट के दावों के उलट ऐसा नहीं लगता कि यह सिर्फ मेंटेनेंस या लापरवाही का मामला है.
ताज्जुब की बात यह है कि मार्च में डेटा डिलीट हुआ और उस मामले को आईसीएआर और कृषि मंत्रालय के अधिकारी कई महीने तक दबाकर बैठे रहे. जब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पता चला तो उन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए जुलाई 2025 में छह सदस्यीय एक जांच कमेटी के गठन का आदेश दिया. लेकिन ICAR के मैनेजमेंट ने जो कमेटी बनाई उसमें बाहर के किसी एक्सपर्ट को शामिल नहीं किया गया. आईसीएआर के अधिकारी ही कमेटी में रखे गए.
इस कमेटी को प्राइमरी डेटा सेंटर और उसके बैकअप सेंटर में डेटा डिलीट होने के कारणों की जांच करने, डेटा सुरक्षा बढ़ाने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के उपायों की सिफारिश करने का जिम्मा सौंपा गया था. इस मामले को लेकर पीएमओ ने भी संज्ञान लिया था, जिसके बाद आईसीएआर के डीजी ने पूरे मामले से अवगत करवाया.
इस जांच कमेटी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सर्वर पर पहला थ्रेट इस साल 28 फरवरी को आया था. बताया गया है कि इसके बाद मार्च में डेटा डिलीट हुआ. फिर कुछ दिन बाद हैदराबाद के बैकअप सर्वर में भी वही डेटा डिलीट हो गया, जो प्राइमरी सर्वर में हुआ था. इसीलिए मामले में कई सवाल खड़े हो रहे हैं. पहला यह कि अगर सर्वर पर कोई थ्रेट था तो फिर उसके बाद डेटा सुरक्षित रखने के लिए क्या किया गया? डेटा डिलीट होने के बाद तुरंत उसका बैकअप क्यों नहीं लिया गया? क्यों आईसीएआर के लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे.
दरअसल, बैकअप सर्वर या डेटा रिकवरी सेंटर (DRC) इसलिए बनाया जाता है ताकि प्राइमरी सर्वर पर कोई आंच आए तो भी डेटा का नुकसान न हो. प्राइमरी सर्वर में डेटा उड़ते ही बैकअप सर्वर की सुरक्षा और कड़ी कर दी जाती है. अगर किसी संस्थान के प्राइमरी सर्वर का डेटा किसी वजह से उड़ता है तो या तो तुरंत उसे उसी सर्वर से रिट्रीव (Retrieve) करने की कोशिश होती है या फिर इस काम में नाकाम होने के बाद बैकअप सर्वर से उसे तुरंत प्राइमरी में लिया जाता है.
ऐसा लगता है कि यहां यह दोनों काम नहीं किया गया, इसीलिए एएसआरबी और आईसीएआर का बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील डेटा चला गया. जब छोटे से छोटे संस्थान में इस डेटा सुरक्षिमत रखने के लिए इसी तरह की प्रक्रिया का पालन किया जाता है तो 10,000 करोड़ रुपये के सालाना बजट वाले संस्थान में ऐसा क्यों नहीं किया गया?
अगर दिल्ली में डेटा डिलीट होने के बाद एफआईआर दर्ज हो गई होती तो फिर शायद हैदराबाद का बैकअप सर्वर सुरक्षित रहता. क्योंकि जांच शुरू होते ही सक्रियता बढ़ जाती. इतने महत्वपूर्ण संस्थान का डेटा डिलीट होने के पीछे कोई साइबर-अटैक था या फिर 'साजिश' अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है. इसकी एक वजह यह भी है कि आईटी और साइबर मामले से जुड़ी यह जांच आईसीएआर के लोगों ने ही की, जिसका नेतृत्व संस्थान के उस डिप्टी डायरेक्टर जनरल के हाथों में था जो आईटी या साइबर मामलों का नहीं बल्कि क्राप साइंस का विशेषज्ञ है.
आईसीएआर कृषि क्षेत्र की तरक्की के लिए काम करने वाली भारत की सबसे बड़ी और पुरानी संस्था है. जबकि एएसआरबी कृषि वैज्ञानिकों की भर्ती करने का काम करता है. इस मामले को वेणुगोपाल बदरवाड़ा उठा रहे हैं, जो आईसीएआर गवर्निंग बॉडी के पूर्व सदस्य हैं. उनका कहना है कि डेटा अपने आप नहीं उड़ा बल्कि इसे जानबूझकर उड़ाया गया है. इस मामले के तार भर्तियों से जुड़े लगते हैं.
बदरवाड़ा का कहना है कि जो डेटा उड़ा उसमें भर्ती, साइंटिस्ट रिकॉर्ड, रिसर्च प्रोजेक्ट और कम्युनिकेशन से जुड़े बेहद संवेदनशील दस्तावेज शामिल थे. डेटा डिलीट होने के बाद कृषि वैज्ञानिकों की चयन प्रक्रिया से जुड़ी सभी डिजिटल फाइलें गायब हैं. जिनमें एलिजिबिलिटी असेसमेंट, मार्कशीट, इंटरव्यू, इवैल्यूएशन रिपोर्ट और विजिलेंस नोट्स शामिल होते हैं.
जब एएसआरबी और आईसीएआर का डेटा डिलीट कांड हुआ तब डॉ. हिमांशु पाठक यहां महानिदेशक थे, जो अब हैदराबाद स्थित अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) के महानिदेशक हैं. आईसीएआर में 18 अप्रैल 2025 को डॉ. एमएल जाट ने नए महानिदेशक के तौर पर काम संभाला. आईसीएआर और एएसआरबी के डेटा का मुख्य सर्वर दिल्ली स्थिौत इंडियन एग्रीकल्चरल स्टैटिस्टिक्स रिसर्च इंस्टिट्यूट (IASRI) में जबकि बैकअप सर्वर हैदराबाद स्थित नेशनल एकेडमी ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च मैनेजमेंट (NAARM) में है.
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