यूपी का इटावा जिला चंबल और यमुना नदियों के बीच में बसा हुआ है. इटावा के बड़े भूभाग में चंबल का बीहड़ और कृषि का क्षेत्र बना हुआ है. इटावा जिले में बड़ी मात्रा में कृषि भूमि क्षेत्र होने की वजह से यहां खरीफ, रबी और जायद की फसलें होती हैं. खरीफ की फसलों में धान, मक्का, बाजरा प्रमुख तौर पर उगाए जाते हैं. रबी की फसलों में गेहूं, आलू, सरसों की बड़ी तादाद में पैदावार होती है. जायद की फसलों में मूंग, उड़द और मूंगफली की खेती भी की जाती है. इन उपजों को बेचकर किसान अच्छी कमाई करते हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि किस आधार पर उपजों की क्वालिटी देखी जाती है. उपजों की क्वालिटी जानने का आखिर पैमाना क्या होता है जिसे देखकर किसानों को पैसे मिलते हैं.
उत्तर प्रदेश में गेहूं की कई किस्में पैदा की जाती हैं. इटावा की बात करें तो यहां गेहूं की किस्म 2967 सबसे अधिक प्रचलित है जिसकी पैदावार लगभग दो लाख मीट्रिक टन होती है. इसमें किसान अपनी पैदावार का तिहाई हिस्सा सरकार (खासकर एफसीआई) और निजी आढ़तियों को बेचता है.
इटावा की भौगोलिक स्थिति में कुछ क्षेत्र धान का भी है जहां पर विशेष तौर से हाइब्रिड धान और 6444 किस्म का धान पैदा होता है. प्रमुख धान की किस्मों में एक बासमती 1509 वेरायटी भी जिसकी बड़े पैमाने पर पैदावार ली जाती है. इसके अलावा इटावा में मक्का, बाजरा की भी पैदावार होती है जिसमें हाइब्रिड किस्में सबसे अधिक प्रचलित हैं. कुछ क्षेत्रों में आलू की पैदावार बड़ी तादाद में व्यावसायिक तरीके से की जाती है जिसमें 3797 किस्म खूबसूरती और स्वाद के लिए मानी जाती है.
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इटावा के खाद्य विपणन अधिकारी लाल मणि पांडेय का कहना है कि सरकारी खरीद प्रमुख तौर पर गेहूं, धान, बाजरा, मक्का और सरसों की होती है. खरीद से पहले इन उपजों की क्वालिटी देखी जाती है. फिर उसी क्वालिटी के आधार पर उपज का दाम लगाया जाता है. धान की क्वालिटी तभी अच्छी मानी जाती है जब इसमें 17 परसेंट से अधिक नमी नहीं हो. खरीद से पहले यह भी देखा जाता है कि धान काला न हो, सिकुड़ा न हो. धान का दाम अच्छा तभी मिलता है जब उसका दाना पूरी तरह से भरापूरा हो. दाना जितना भरा पूरा होगा, दाम उतना ही अधिक मिलेगा.
गेहूं की क्वालिटी पता करने का पैमाना अलग है. गेहूं की खरीद के लिए उसकी चमक प्रमुख तौर पर देखी जाती है. गेहूं में पर 12 फीसद से अधिक की नमी नहीं होनी चाहिए. साथ ही गेहूं की चमक अच्छी होनी चाहिए. हालांकि बारिश में चमक कम हो जाती है, लेकिन फिर भी खरीद में इसमें कुछ छूट दी जाती है. यह भी देखा जाता है कि गेहूं का दाना टूटा न हो और चमक अधिक बनी रहे.
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इस समय गेहूं में 80 परसेंट तक चमक की छूट की गई है क्योंकि बरसात में गेहूं का रंग बदल गया है. ऐसी विशेष परिस्थितियों में किसानों को रियायत दी जाती है. ऐसी ही स्थिति बाजरा के साथ भी देखी जाती है. बाजरा का दाम अच्छा चाहिए तो उसका दाना बड़ा होना चाहिए और चमक बरकरार रहनी चाहिए. नमी कम हो और बाजरे में किसी और अनाज की मिलालट नहीं होनी चाहिए.