
अगर आपसे कहा जाए कि दुनिया की सबसे ज़्यादा उत्पादक खेती छोटे-छोटे खेतों में होती है तो शायद आप सोचेंगे कि ये कैसे संभव है? लेकिन जापान का यही सच है. जापान में एक किसान के पास औसतन सिर्फ 1.2 हेक्टेयर जमीन होती है, यानी भारत के औसत किसान से भी कम. फिर भी चावल, सब्ज़ियां और फल के प्रति हेक्टेयर उत्पादन में जापान दुनिया के टॉप देशों में आता है. अब सवाल है कि इतनी छोटी जमीन पर जापानी इतनी अच्छी पैदावार कैसे हासिल कर रहे हैं, ये हम आपको विस्तार से बताते हैं.
जापान में चावल मुख्य फसल है. 2021-2023 के बीच वहां चावल की औसत पैदावार 6.78 से 6.90 टन प्रति हेक्टेयर रही है. जबकि तुलना करें तो भारत में चावल की औसत पैदावार लगभग 2.7 से 3.1 टन प्रति हेक्टेयर ही है जापान में खेती को जमीन का इस्तेमाल नहीं, जमीन का मैनेजमेंट माना जाता है. हर खेत का मिट्टी का डेटा रिकॉर्ड होता है, जिसमें नमी, पोषक तत्व और पीएच वैल्यू जैसी जरूरी चीजों का एक दम सटीक डाटा होता है और इसलिए वहां के किसान किसान अंदाजे से नहीं बल्कि सटीक डेटा देखकर फैसला लेते हैं. बीज कब बोना है, कितना पानी देना है और कौन-सी फसल सबसे बेहतर रहेगी, यानी जापानी किसान एक इंच जमीन भी बिना प्लान के खाली नहीं छोड़ते.
जापानी किसान एक इंच जमीन भी बिना प्लान के खाली नहीं छोड़ते. जापान के पहाड़ी इलाकों में तो सीढ़ीदार खेत होते हैं, जहां सीढ़ी की तरह छोटे-छोटे खेत बनाए जाते हैं, ऐसे ही शहरी क्षेत्रों में जगह की कमी के कारण, फसलों को खड़ी परतों में उगाया जाता है इससे अंदाजा लगाएं कि जपान में जमीन का कितना अच्छा इस्तेमाल होता है. अब एक चीज ये भी है कि जापान के छोटे खेतों में बड़े ट्रैक्टर से नहीं बल्कि बहुत स्मार्ट तकनीक से खेती होती है. वहां के किसान ड्रोन से फसल की निगरानी करते हैं, सेंसर से मिट्टी और पानी की जांच करते हैं, ऑटोमैटिक सिंचाई सिस्टम है और AI आधारित फसल प्रेडिक्शन करते हैं. लेकिन सबसे जरूरी बात ये है कि यह तकनीक किसान के बजट के हिसाब से डिजाइन की गई है. हर चीज महंगी नहीं होती. कई बार सिर्फ सही समय पर सही पानी या सही खाद उपज को दोगुना कर देती है.
छोटे किसान महंगी और विशिष्ट फल या सब्जियां उगाते हैं, जिससे उन्हें अच्छे दाम मिलते हैं, जैसे टोक्यो के लिए प्रीमियम फल. जापान में एक चीज है मियाबाकी तकनीक. इस विधि से पौधों की जड़ें मजबूत बनती हैं, कम पानी और खाद में तेजी से विकास होता है, जिससे कम समय में अधिक उत्पादन मिलता है. ऐसे ही मासानोबू तकनीक में सूखे खेत में बीज बोकर और सिंचाई को नियंत्रित करते हैं,इससे जड़ों को मजबूत किया जाता है, जिससे पैदावार बढ़ती है और खरपतवार कम होते हैं.
जापान में किसान एक ही फसल को सालों तक सुधारते रहते हैं, जैसे वहां की चावल की किस्में जो कम पानी में ज्यादा दाना, बेहतर स्वाद, और ज्यादा कीमत वाली होती है. जापान में सोच ये नहीं होती कि ज्यादा उगाओ, बल्कि ये होती है कि बेहतर उगाओ और बेहतर बेचो. इसीलिए जापान का किसान कम जमीन में भी अच्छी कमाई कर लेता है.
इसके अलावा जापान में किसान अकेला नहीं होता. छोटे किसान मिलकर कोऑपरेटिव बनाते हैं. जहां बीज, मशीन, स्टोरेज और मार्केटिंग, सब कुछ साझा होता है. इससे उन किसानों की लागत कम होती है और मुनाफा बढ़ता है. हालांकि हमारे देश में भी ये सहकारिता वाला मॉडल चलता है, मगर सभी जानते हैं कि कितने ही किसान सहकारिता सिस्टम में सहभागिता रखते हैं और यही गलती जापान के किसान बिल्कुल नहीं करते.
भारत के पास जमीन ज्यादा है लेकिन उत्पादकता कम. जापान से भारत के किसान ये सीख सकते हैं कि डेटा-आधारित खेती करें अंदाजे से नहीं. छोटे किसानों केलिए सस्ती टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराई जाए. क्वालिटी फसल पर जोर दिया जाना चाहिए ना कि सिर्फ क्वांटिटी पर. इसके साथ ही मजबूत किसान कोऑपरेटिव मॉडल बनाया जाए और हर किसान की उसमें भागीदारी भी हो. इसके साथ ही हर इलाके के हिसाब से अलग-अलग फसल प्लान बनें. अगर भारत जापान की तरह छोटे खेतों को बोझ नहीं बल्कि ताकत माने, तो खेती फिर से मुनाफे का सौदा बन सकती है. खेती में जीत जमीन के आकार से नहीं, सोच के आकार से मिलती है.
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