भारत में मानसून हर साल नई उम्मीदें और चुनौतियाँ लेकर आता है. जहां समय पर हुई बारिश किसानों की फसलों को जीवन देती है तो वही बहुत ज्यादा बारिश और बाढ़ उनकी मेहनत पर पानी फेर देती है. बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में फसलों का नुकसान, खेतों की मिट्टी की उपजाऊ क्षमता पर असर और पशुधन की हानि जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं. इस बार भी देश के कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा में आई बाढ़ ने किसानों की आजीविका पर गहरा संकट खड़ा कर दिया है.
बाढ़ का सबसे बड़ा और सीधा असर खड़ी फसलों पर पड़ता है. धान, मक्का, मूंगफली, बाजरा और सब्जियों जैसी फसलें लंबे समय तक पानी में डूबने से सड़ जाती हैं. कई बार पूरी की पूरी फसल नष्ट हो जाती है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. छोटे और सीमांत किसान, जिनकी आजीविका सिर्फ एक फसल पर निर्भर होती है, सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.
बाढ़ का पानी खेतों से उपजाऊ मिट्टी बहा ले जाता है. इसके साथ ही कई जगहों पर गाद और बालू की मोटी परत जम जाती है. इससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है और अगली फसल की तैयारी कठिन हो जाती है. किसानों को खेतों को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए अतिरिक्त मेहनत और लागत लगानी पड़ती है.
खेतों में लंबे समय तक पानी भरा रहने के कारण बुवाई का समय निकल जाता है. खरीफ की फसल समय पर न बो पाने से पूरा फसल चक्र प्रभावित होता है. इसका सीधा असर रबी की फसलों पर भी पड़ता है, जिससे किसानों की सालभर की आमदनी घट जाती है.
बाढ़ से सिर्फ फसल ही नहीं, पशुधन भी प्रभावित होता है. बड़ी संख्या में पशुओं की मौत हो जाती है या वे बीमार पड़ जाते हैं. जिन पशुओं को बचा लिया जाता है, उनके लिए चारा और हरे चारे की व्यवस्था करना बड़ी चुनौती बन जाती है. पशुपालन पर निर्भर किसानों के लिए यह दोहरी मार होती है.
बाढ़ के बाद खेतों में पानी जमा रहने से कीट और फसली रोग तेजी से फैलते हैं. धान की फसल में तना छेदक, पत्ती लपेटक और फफूंदी जैसी बीमारियां आम हो जाती हैं. सब्जियों में भी रोग फैलने से उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है.
फसल नष्ट होने से किसानों की आमदनी रुक जाती है जबकि कर्ज और खर्च का बोझ बढ़ जाता है. बाजार में उनकी स्थिति कमजोर हो जाती है. कई बार उन्हें साहूकारों या बैंकों से लिया कर्ज चुकाने के लिए मजबूरी में जमीन तक बेचनी पड़ जाती है.
विशेषज्ञों का मानना है कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत करना, आपदा के बाद तुरंत बीज और खाद उपलब्ध कराना, फसल बीमा योजना को प्रभावी बनाना और मिट्टी की जांच कर सुधारात्मक कदम उठाना जरूरी है. साथ ही सरकार द्वारा राहत पैकेज और मुआवजे की राशि समय पर किसानों तक पहुंचना भी बेहद अहम है.
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