भारत में इस बार चारे की कमी है. इस कमी के चलते पशु चारे से लेकर पशु आहार तक में 20 फीसद से अधिक महंगाई देखी जा रही है. इस कमी के कई प्रभाव देखे जा रहे हैं. सबसे खास है दूध-दही के दाम में उछाल. इसके अलावा चारे और दाने के रेट बढ़ने से डेयरी किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है. किसानों की लागत अधिक आ रही है और मुनाफा घट रहा है. केरल से ऐसी खबर आई कि वहां के डेयरी किसान पशुपालन और दूध के बिजनेस से नाता तोड़ रहे हैं क्योंकि चारे और दाने पर जिस तरह से खर्च बढ़ा है, उस हिसाब से दूध से मुनाफा नहीं हो रहा.
आखिर ऐसा क्या हुआ जो भारत जैसे कृषि प्रधान देश में चारे और दाने की कमी हो गई? इसके बारे में विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस के डेयरी एक्सपर्ट गुरु प्रसाद सिंह कहते हैं, देश में पहले पशुओं के चारे की खेती खूब होती थी. तरह-तरह की घास उगाई जाती थी जिससे पशुओं के भोजन का काम चलता था. लेकिन उन चारों का उत्पादन अब कम हो गया है.
'दि प्रिंट' के साथ बातचीत में गुरु प्रसाद सिंह आगे कहते हैं, अब पुआल जला दिया जाता है जिसे हम पराली के नाम से जानते हैं. पहले ऐसा नहीं होता था. चारे की कमी के पीछे एक अन्य बड़ी वजह ये है कि अब गेहूं की बौनी प्रजाति बोई जा रही है. पहले गेहूं के पौधे बड़े होते थे जिससे उपज निकालने के बाद प्रचूर मात्रा में भूसा मिल जाया करता था. अब धीरे-धीरे ये ट्रेंड कम हो रहा है.
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गुरु प्रसाद सिंह ने बताया, कंबाइन मशीन से धान की कटाई होने से भले ही कम चारा निकले, लेकिन कुछ न कुछ जरूर मिल जाता है. यह पशुओं के काम आ जाता है. लेकिन पराली जलाने से इसकी संभावना बिल्कुल ही खत्म हो जाती है. पराली जलाने से फसलों के सभी अवशेष जल जाते हैं. ऐसे में चारा कहां से मिलेगा.
इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुख्य वैज्ञानिक और प्रोजेक्ट मैनेजर एके रॉय भी कुछ इसी तरह का विचार रखते हैं. वे कहते हैं कि फसलों की बौनी प्रजाति आने से भी चारे की घोर कमी देखी जा रही है. एके रॉय बताते हैं, ज्वार, गेहूं और मक्का की नई उच्च उपज वाली बौनी किस्मों में अनाज की मात्रा अधिक है लेकिन पुआल नहीं है, जिसके कारण सूखे चारे के उत्पादन में गिरावट आई है.
राज्यवार ब्योरा देखें तो दिल्ली में 100 परसेंट, महाराष्ट्र में 98 परसेंट, गुजरात में 63 परसेंट सूखे चारे की कमी बताई जाती है. ये ऐसे राज्य हैं जहां चारे की सबसे अधिक कमी देखी जा रही है. जहां तक हरे चारे की बात है, तो झारखंड में सबसे अधिक कमी देखी जा रही है. देश के उन 10 राज्यों में झारखंड का नाम है जहां पशुपालन बड़े स्तर पर होता है. झारखंड में 67 परसेंट तक हरे चारे की कमी देखी जा रही है. इसके बाद उत्तराखंड में 55 फीसद और ओडिशा में 44.8 परसेंट तक हरे चारे की कमी है.
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इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुख्य वैज्ञानिक एके रॉय कहते हैं, हरे चारे की कमी इसलिए हो रही है क्योंकि जंगल और चारागाह का रकबा लगातार घट रहा है. इससे पशुओं में पोषक तत्वों की कमी देखी जा रही है. हरे चारे पर्याप्त मात्रा में मिलते तो पशुओं को कुपोषण का शिकार नहीं होना पड़ता और इसके लिए कंसेनट्रेट्स पर प्रति किलो 20 रुपये तक खर्च नहीं करना पड़ता.