पहाड़ों पर आई आपदा का बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग और अंधाधुंध निर्माण, एक्सपर्ट ने बताए बचाव के उपाय

पहाड़ों पर आई आपदा का बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग और अंधाधुंध निर्माण, एक्सपर्ट ने बताए बचाव के उपाय

उत्तरकाशी के धराली में बड़ा हादसा हुआ जहां बादल फटने से एक पूरा गांव बह गया. पहाड़ों में ऐसी घटनाएं अब ज्यादा देखी जा रही हैं. इसके बारे में एक्सपर्ट बताते हैं कि कारण क्या है. ग्लोबल वॉर्मिंग के अलावा नदी नालों पर अतिक्रमण भी इसकी वजह है.

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विकास शर्मा
  • Shimla,
  • Aug 06, 2025,
  • Updated Aug 06, 2025, 8:51 PM IST

पहाड़ों पर हर साल मॉनसून सीजन के दौरान आ रही आपदा को लेकर नए नियम, कानून और नए सिरे से योजना बनाने की जरूरत है. नसीहत के तौर पर बहुत सी चीजों को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है. नदी नालों के आसपास निर्माण कार्य को लेकर भी नीति बनाए जाने की जरूरत है. ये बात कही मौसम वैज्ञानिक डॉ एस एस रंधावा ने. इस साल हिमाचल के बाद अब उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक बड़ा हादसा हुआ है. यहां दो जगहों पर बादल फटे और फ्लैश फ्लड में धराली गांव पूरी तरह से नक्शे से गायब हो गया है जिससे हिमालयन रीजन में रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों की चिंता भी बढ़ गई है. इन घटनाओं के होने का सबसे बड़ा कारण वैज्ञानिक अभी खोज रहे हैं लेकिन फिर भी 2 बड़े कारण जिनमें पहला ग्लोबल वार्मिंग और दूसरा हिमालयन रीजन में टोपोग्राफी हैं क्योंकि हिमालयन रीजन अभी अपनी यंग स्टेज पर है.

हिमाचल प्रदेश काउंसिल फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड इनवायरमेंट (HIMCOSTE) के पूर्व प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ एस एस रंधावा कहते हैं कि उत्तरकाशी में हुआ वो एक दुखद घटना है. डॉ रंधावा ने हैरानी जताते हुए बताया कि जब घटना की वजह जाने की कोशिश की जा रही है तो मौसम विभाग यानी आईएमडी ने जानकारी दी है कि धराली गांव और उसके आसपास के गांव में इतनी बारिश नहीं रिकॉर्ड हुई थी. लेकिन फिर भी फ्लैश फ्लड आया और पूरा गांव का नामोनिशान ही मिट गया. अगर भारी बारिश कारण नहीं है तो इसके पीछे जरूर कोई और कारण हो सकता है क्योंकि धराली गांव और ये पूरा इलाका एक डी ग्लेशियटेड वैली है. 

आपदा की असली वजह क्या है?

डॉ रंधावा ने कहा, ये इलाका पहले ग्लेशियर से ढका हुआ था. ये पूरे इलाके अल्लुवियल फैन पर डिपॉजिट हुए हैं. कभी ग्लेशियर ने वहां पर डिपॉजिट किए हैं जिसके ऊपर आबादी बसी हुई है. इसके साथ ही इस पूरी वैली में पीछे ग्लेशियर भी हैं. घटना के कारणों का पता लगाने के लिए अब स्टडी करना बेहद जरूरी है. डॉ रंधावा ने आशंका जताई कि वैली में पहाड़ों पर जरूर कोई ग्लेशियर लेक या झील बनी होगी. क्या उस झील में से ये सैलाब आया है? अगर कोई ग्लेशियर लेक नहीं थी तो फिर कोई वहां पर लैंडस्लाइड हुआ है. लैंडस्लाइड की वजह से वहां पर कोई टेंपरेरी लेक बनी है, ब्लॉकेज हुआ है. उसमें कुछ समय के लिए पानी रुका हुआ था. 

उन्होंने कहा कि अगर ये भारी बारिश के कारण नहीं हुआ तो जरूर वहां नदी में ऊपरी हिस्से में बड़ी चट्टानें पानी के रास्ते में अवरोध बनी हुई थीं. जब फ्लैश फ्लड आया तो सारा मलबा अपने साथ लेकर नीचे की ओर आया और आपदा के रूप में अब नदी किनारे बसे गांव और घरों को अपने साथ बहा ले गया.

दरकते पहाड़ों ने बढ़ाई चिंता

वहीं पहाड़ों पर हर साल समर मॉनसून सीजन में बादल फटने, फ्लैश फ्लड या भूस्खलन में हो रही बढ़ोतरी को लेकर भी डॉ एस एस रंधावा ने चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि इसके बहुत सारे कारण हैं. सबसे बड़ा कारण तो क्लाइमेट चेंज है. इसमें सबसे ज्यादा बेहद खराब मौसम की गतिविधियां मिलेंगी. इसकी वजह से बहुत ज्यादा बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं. इसके साथ ही बहुत ज्यादा बारिश होना, नदी नालों में बहुत सारा पानी जमा होना और बड़े पत्थर या चट्टानों का पानी के साथ नीचे आने जैसी घटनाएं हो रही हैं.

बादल फटने की घटना के पीछे मॉनसून की हवाएं और उनमें तापमान का कम ज्यादा होना कारण है. तापमान बढ़ने से वाष्प बनने की घटना बढ़ रही है. जो हवाएं आ रही हैं वो ज्यादा मॉइश्चर लेकर आती हैं. इससे पहाड़ों की टोपोग्राफी हवाओं को ऊपरी भाग की ओर यानी अपलिफ्ट करती हैं. इससे जल्दी बादल बनते हैं. इसके बाद तापमान में ठंडक से बादल भारी हो जाते हैं जिसके कारण ये एक ही जगह पर फट जाते हैं. कई बार बहुत ज्यादा भारी बारिश भी देखने को मिलती है. कुल मिलाकर बादल फटने के पीछे सबसे पड़ा कारण यही है.

अंधाधुंध निर्माण से बचना जरूरी

हिमालय में सबसे नए पहाड़ हैं. हिमालय के पहाड़ दो टेक्टोनिक प्लेट से टकराने से बने थे, इंडियन प्लेट और यूरेशियंस प्लेट. जब ये प्लेटें आपस में टकराईं तो कहीं पहाड़ बने तो कहीं खाई बनी. अभी बहुत ही नए होने के कारण अभी भी प्लेटें टकराती हैं और अस्थिर भी हैं. जब भी यहां भारी बारिश होती है तो नमी बेहद ज्यादा होती है और पानी का दबाव बढ़ता है. इसकी वजह से भूस्खलन जैसी घटनाएं हो रही हैं. अब देखा जा रहा है कि लंबे समय से नदी किनारों पर बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहा है. जहां कभी नदी का रास्ता था आज वहां लोग घर बना रहे हैं. जब मॉनसून सीजन आता है तो बादल फटने और फ्लैश फ्लड में बड़ा नुकसान हो रहा है.

पहाड़ में हमारे पास सीमित जगह होती है. अगर विकास भी करना है तो हमें बहुत ज्यादा प्लानिंग की जरूरत है. सबसे पहले हमें निर्माण कार्यों को पहचानने की जरूरत है कि कौन सा बहुत ज्यादा जरूरी है. अभी निचले इलाकों में नदी के किनारों में चैनेलाइजेशन करने की जरूरत है ताकि अगर पानी आता है तो नुकसान को कम किया जा सके. अगर निर्माण कार्य करना है तो उसका नियम बहुत सख्त बनाना होगा. नदी नालों के रास्तों का अतिक्रमण ठीक नहीं है.

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