प्याज किसानों का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा. उनकी हालत ऐसी हो गई है कि बीच सड़क पर उपज फेंकने की नौबत आ गई है. मंडी में इतना भाव भी नहीं मिलता जिससे कि वे ट्रक या ट्रैक्टर का ढुलाई निकाल सकें. लागत तक के लिए किसान तरस गए हैं. दूसरी ओर, बाजार में खुदरा दाम कम होने का नाम नहीं ले रहा. खुदरा व्यापारी की कमाई कम होने का नाम नहीं ले रही है. महाराष्ट्र की मंडियों में किसानों से बात करें तो उनकी आंखों में आंसू हैं जबकि व्यापारियों की आंखों में चमक. व्यापारी कहते हैं कि उन्हें प्याज की खरीद पर कोई नुकसान नहीं बल्कि असली घाटा किसानों को है क्योंकि अधिक उत्पादन होने से प्याज के दाम गिर गए हैं.
व्यापारी सस्ते में प्याज खरीद कर बाजारों में 25-30 रुपये किलो तक बेच रहे हैं. बाजार में उपभोक्ता हैं जो महंगे दाम पर प्याज खरीद रहे हैं. दूसरी ओर सरकारी संगठन हैं जो प्याज के व्यापार से कमाई कर रहे हैं जिनमें नेफेड और एनसीसीएफ शामिल हैं. कुल मिलाकर कहें तो किसान और उपभोक्ता परेशान हैं जबकि बाजार, व्यापार और सरकार, तीनों की मौज है.
'आजतक' की टीम ने महाराष्ट्र की कई मंडियों का दौरा किया. मंडियों में जो हाल दिखा, उसे कतई ठीक नहीं कह सकते. किसान बताते हैं कि उन्होंने पूरी तैयारी से प्याज की खेती की. इस बीच बेमौसम बारिश ने बहुत क्षति पहुंचाई. आधा प्याज खराब हो गया. बाकी बचा प्याज मंडी लेकर पहुंचे तो नमी का बहाना बनाकर व्यापारियों ने अच्छा रेट देने से मना कर दिया. नागपुर मंडी में प्याज बेचने पहुंचे अकोला के किसान शेख सत्तार ने बताया कि भीगा प्याज पहले ही खराब हो चुका था. एक दो गाड़ी अच्छा प्याज बचा था जिसे बेचने के लिए वे कलमना एपीएमसी मंडी पहुंचे थे. लेकिन व्यापारियों ने 10 रुपये किलो से अधिक रेट देने से मना कर दिया. वे प्याज से भरी गाड़ी को लौटाकर ले भी नहीं जा सकते क्योंकि इससे उनका नुकसान और भी डबल हो जाता. लिहाजा उन्होंने औने-पौने दाम पर प्याज बेचना ही मुनासिब समझा.
वर्धा से आने वाले किसान प्रभाकर राव कहते हैं कि उन्हें मंडी में प्याज का भाव 10 रुपये भी नहीं मिल रहा जबकि बाहर खुदरा में तो और भी हालत खराब है. किसानों का प्याज 6-7 रुपये किलो भी नहीं बिक रहा है. बारिश के चलते माल भी खराब हुआ है. इतने कम रेट पर प्याज बिकने से ट्रॉली का खर्च भी नहीं निकल रहा. दूसरी ओर, व्यापारी अगर सस्ते में प्याज भी खरीद लेते हैं तो तुरंत पैसा नहीं देते. पैसे के लिए इंतजार करना होता है. उन्होंने यह भी बताया कि खराब मौसम की वजह से किसानों का 40 फीसद प्याज पहले ही सड़ चुका है.
नासिक के वडनेर गांव के किसान सोमनाथ जाधव कहते हैं कि अभी जो दाम मिल रहे हैं उससे वे नाराज हैं. प्याज का भाव कम से कम 3 हजार रुपये होना चाहिए था लेकिन 1100 रुपये का भाव मिल रहा है. इसमें तो 300 रुपये गाड़ी-भाड़ा में जाता है. बोरी का खर्च अलग से लगता है. ऐसे में 600-700 रुपये से क्या होगा. सोमनाथ यह भी बताते हैं कि एक एकड़ में 40 परसेंट प्याज बारिश से खराब हो गया है. वे तो यह भी कहते हैं कि अगर नेफेड, NCCF प्याज खरीदी कर रहा है तो बाजार में दाम क्यों नहीं बढ़ रहे.
नासिक के ही किसान निवृत्ति पोरजे ने बताया कि एक बीघा प्याज लगाने में 50 हजार रुपये का खर्च आया है. इतना कुछ करने के बाद हजार-1100 रुपये क्विंटल का भाव मिल रहा है. इससे तो लागत भी नहीं निकल रही है. ने कहते हैं, कम से कम 3000 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल का दाम मिलना चाहिए.
दूसरी ओर, व्यापारी हैं जो दाम कम मिलने को लेकर टेंशन में हैं. हालांकि उनकी टेंशन घाटे को लेकर नहीं है बल्कि कम फायदे को लेकर है. उन्हें इस बात की चिंता है कि जितना मुनाफा होना चाहिए, उतना मुनाफा नहीं हो रहा है. किसान से लेकर आम उपभोक्ता तक का सवाल है कि जब किसान को 6-7 रुपये किलो मिल रहा है और उपभोक्ता को 30 रुपये किलो भाव चुकाना पड़ रहा है तो आखिर पैसा कहां जा रहा है. जवाब है बिचौलिये और व्यापारी. व्यापारी भले ही एक्सपोर्ट बैन या सरकारी पाबंदियों का रोना रोएं, लेकिन वे किसानों की तरह फटेहाली में नहीं हैं.
नागपुर मंडी में प्याज खरीद-बिक्री करने वाले आढ़ती हरीश राजू बताते हैं कि इस बार प्याज की बंपर आवक हुई है जिससे दाम गिर गए हैं. वे बताते हैं कि जिस साल फसल अच्छी होती है, आवक अधिक होती है, उस साल रेट कम रहते हैं. यही वजह है कि इस बार किसानों को दाम कम मिल रहे हैं. वैसे प्याज के व्यापारियों को कोई नुकसान नहीं है क्योंकि आवक लगातार बनी हुई है. लोगों को भी अच्छा प्याज खाने को मिल रहा है. हालांकि किसानों को अच्छा दाम नहीं मिल रहा क्योंकि उपज बहुत अधिक है.
अब सवाल है कि किसानों के प्याज का पैसा आखिर किसके पास जा रहा है? इस पर प्याज एक्सपर्ट अनिल घनवत कहते हैं, किसान प्याज के आंसू रो रहा है, मगर कमाई व्यापारी और सरकार की हो रही है, ऐसा कहना ठीक नहीं है. इस पूरे बिजनेस में व्यापारी ज्यादा नहीं कमा रहे क्योंकि मंडी में व्यापारी भले सस्ते में प्याज खरीदें, लेकिन दूसरे राज्यों में उसे भेजने पर बहुत खर्च होता है. इसी तरह प्याज से सरकार भी नहीं कमा रही बल्कि नेफेड, एनसीसीएफ जैसे संगठन के कर्मचारी कमा रहे हैं. इसी तरह एफपीओ की भी कमाई अच्छी हो रही है. वे किसानों से खरीदते हैं और बड़े व्यापारियों को बेचकर कमाते हैं. इसके साथ ही प्याज की ढुलाई करने वाले ट्रांसपोर्टर भी कमा रहे हैं.
घनवत बताते हैं कि नासिक में ट्रांसपोर्टेशन का एक बड़ा बिजनेस बन गया है जो मुंबई से गोवा प्याज भेजने का काम करता है. यहां किसानों से कम दाम पर प्याज खरीदा जाता है और उसे महंगे रेट पर गोवा में बेचा जाता है.
घनवत बताते हैं कि सरकार की कमाई नहीं हो रही, लेकिन इस पूरे मामले के लिए सरकार ही दोषी है. जब मर्जी एक्सपोर्ट रोक देना, स्टॉक लिमिट लगा देना, एमईपी लगा देना, एक्सपोर्ट ड्यूटी चस्पा कर देना. इन सभी गलत नीतियों से किसानों को घाटा हो रहा है और उपभोक्ता को अधिक दाम देना पड़ रहा है. प्याज के मामले में सरकार को अपना दखल बिल्कुल बंद करना चाहिए.