हरियाणा और पंजाब के बासमती निर्यातक संघों ने निर्यात अनुबंध रजिस्ट्रेशन पर फीस 30 रुपये से बढ़ाकर 70 रुपये प्रति टन करने के फैसले का विरोध जताया है. संगठनों का कहना है कि अगर 2024-25 के स्तर पर ही निर्यात जारी रहा तो एपीडा 2025-26 में करीब 31 करोड़ रुपये इकट्ठा करेगा, जो पिछले साल की तुलना में 73 फीसदी ज्यादा होगा. लेकिन यह शुल्क न तो टैक्स है और न ही सेस, इसलिए इसके इस्तेमाल की कोई निगरानी नहीं होती.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने पंजाब में आई हालिया बाढ़ का उदाहरण दिया और कहा कि प्रदेश में कई इलाकों में बाढ़ का पानी उतरने के बाद खेतों में रेत जमा हो गई थी और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (BEDF) की राशि वहां खर्च नहीं हुई.
निर्यातक संघों ने कहा कि मार्च 2025 तक BEDF के पास लगभग 25 करोड़ रुपये का फंड जमा है. 2005 में बोर्ड ने तय किया था कि जब तक फंड 10 करोड़ रुपये से कम न हो, तब तक योगदान न लिया जाए. इसके बाद 2005 से 2012 तक योगदान बंद रहा और 2013 में 50 रुपये प्रति टन लगाया गया, जिसे 2014 में घटाकर 30 रुपये किया गया.
हरियाणा राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन का कहना है कि 24 जून 2025 को हुई BEDF बोर्ड बैठक में इस बढ़ोतरी पर चर्चा या मंजूरी नहीं हुई थी, फिर भी इसे लागू कर दिया गया. एपीडा ने 6 अगस्त को जारी सर्कुलर में कहा था कि वाणिज्य मंत्रालय ने योगदान राशि 70 रुपये प्रति टन करने की मंजूरी दे दी है और अब सभी अनुबंध इसी आधार पर पंजीकृत होंगे.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने 2024-25 में करीब 60.7 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया, जिसकी कीमत 5.94 अरब डॉलर रही. मौजूदा वित्त वर्ष के अप्रैल-अगस्त के बीच 27.3 लाख टन चावल 2.38 अरब डॉलर के मूल्य का निर्यात हुआ. अनुमान है कि अप्रैल-अगस्त में ₹30 प्रति टन की दर से एपीडा को ₹8 करोड़ से ज्यादा मिले हैं. वहीं, सितंबर से मार्च के बीच अगर 30 लाख टन और निर्यात होता है तो 70 रुपये प्रति टन की नई दर से 23 करोड़ रुपये तक जुट सकते हैं.
पंजाब राइस मिलर्स एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने इसे “मनमाना फैसला” बताते हुए तुरंत वापस लेने की मांग की है. हरियाणा एसोसिएशन ने भी कहा कि मौजूदा हालात में यह अचानक बढ़ोतरी व्यापार और किसानों दोनों पर बोझ है और इसे पुराने स्तर यानी 30 रुपये प्रति टन पर बहाल किया जाना चाहिए. दिलचस्प यह है कि राष्ट्रीय संगठन ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (AIREA) ने इस पर चुप्पी साध ली है, जिससे कई निर्यातक इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं.
उनका कहना है कि अगर पंजाब और हरियाणा की एसोसिएशन किसी मुद्दे पर एकमत हैं तो सरकार को उसे ज्यादा महत्व देना चाहिए. मालूम हो कि इसी साल मई में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने निर्यातकों से बातचीत में रजिस्ट्रेशन शुल्क 100 रुपये प्रति टन करने का सुझाव दिया था, लेकिन उस समय भी कई बड़े निर्यातकों ने आपत्ति जताई थी.