हरियाणा में गिरते भूजल को लेकर खतरे की घंटी! 88 ब्लॉक में ग्राउंड वाटर लेवल की हालत बहुत खराब

हरियाणा में गिरते भूजल को लेकर खतरे की घंटी! 88 ब्लॉक में ग्राउंड वाटर लेवल की हालत बहुत खराब

भूजल प्रकोष्ठ के सहायक जल वैज्ञानिक डॉ. महावीर सिंह ने कहा कि सबमर्सिबल पंपों ने भूजल स्तर को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. भूजल संसाधनों का अत्यधिक दोहन भविष्य के लिए भी गंभीर चुनौती है. किसानों को बाढ़ सिंचाई के बजाय ड्रिप सिंचाई अपनानी चाहिए.

भूजल स्तर में भारी गिरावट से बढ़ी चिंता. (सांकेतिक फोटो)भूजल स्तर में भारी गिरावट से बढ़ी चिंता. (सांकेतिक फोटो)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jun 15, 2024,
  • Updated Jun 15, 2024, 5:09 PM IST

हरियाणा में भूजल की स्थिति गंभीर स्तर पर पहुंच गई है. 143 में से 88 ब्लॉक के अंदर सबसे अधिक भूजल का दोहन किया गया है. इससे सरकार की चिंता बढ़ गई है. भूजल प्रकोष्ठ के आंकड़ों के अनुसार, शेष में से 11 ब्लॉक गंभीर श्रेणी में, 9 ब्लॉक अर्ध-गंभीर और केवल 35 सुरक्षित श्रेणी में हैं. यह प्रकोष्ठ पहले कृषि विभाग का हिस्सा था और अब सिंचाई विभाग से संबद्ध है. अधिकारियों के अनुसार, यदि भूजल का दोहन 70 प्रतिशत तक है, तो इसे सुरक्षित माना जाता है, जबकि 70 प्रतिशत से 90 प्रतिशत के बीच का दोहन अर्ध-गंभीर, 90 प्रतिशत से 100 प्रतिशत के बीच का दोहन गंभीर और 100 प्रतिशत से अधिक का दोहन अतिदोहित माना जाता है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, इन ब्लॉकों में से करनाल जिले के आठ में से सात ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आ गए हैं. आंकड़ों के अनुसार, इंद्री ब्लॉक को छोड़कर शेष सात ब्लॉक- असंध, करनाल, घरौंडा, मुनक, निसिंग, नीलोखेड़ी और कुंजपुरा अतिदोहित हैं. इसके अलावा अंबाला के तीन, भिवानी और फरीदाबाद के चार-चार, चरखी दादरी के दो, फतेहाबाद, जींद, यमुनानगर, सोनीपत और गुरुग्राम के पांच-पांच, हिसार का एक, कैथल और कुरुक्षेत्र के सात-सात, महेंद्रगढ़ के छह, मेवात और पलवल के दो-दो, पानीपत, रेवाड़ी और सिरसा के छह-छह ब्लॉकों में अत्यधिक दोहन हो रहा है.

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भूजल स्तर में गिरावट की क्या है वजह

अधिकारियों ने बताया कि भूजल संसाधन आकलन, जो अब सालाना किया जाता है, सिंचाई, वर्षा, पुनर्भरण संरचनाओं, तालाबों और खपत के आधार पर निकासी को मापता है. जबकि पहले यह हर पांच साल बाद किया जाता था. भूजल प्रकोष्ठ जल स्तर की निगरानी के लिए सेंसर आधारित पीजोमीटर, खोदे गए कुओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य ट्यूबवेल का उपयोग करता है, जो क्रमशः जून और अक्टूबर में मानसून से पहले और बाद के स्तरों को मापता है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि कृषि में सबमर्सिबल पंपों की मदद से बाढ़ वाली सिंचाई के उपयोग के कारण भूजल स्तर में भारी गिरावट आई है, जो 1999-2000 के आसपास शुरू हुई थी.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

भूजल प्रकोष्ठ के सहायक जल वैज्ञानिक डॉ. महावीर सिंह ने कहा कि सबमर्सिबल पंपों ने भूजल स्तर को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. भूजल संसाधनों का अत्यधिक दोहन भविष्य के लिए भी गंभीर चुनौती है. किसानों को बाढ़ सिंचाई के बजाय ड्रिप सिंचाई अपनानी चाहिए. उन्होंने जल उपयोग पर सख्त नियम लागू करने, जल-कुशल कृषि तकनीकों को बढ़ावा देने और वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण प्रणालियों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

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इतनी सारी हैं योजनाएं

सिंचाई विभाग और भूजल प्रकोष्ठ न केवल किसानों के साथ-साथ लोगों को भूजल संरक्षण के लिए शिक्षित करने का काम कर रहे हैं, बल्कि अटल भूजल योजना, राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना, जल शक्ति अभियान और अन्य सहित विभिन्न योजनाओं को भी लागू कर रहे हैं. सिंह ने किसानों से जल संरक्षण के लिए धान के अलावा अन्य फसलों की खेती करने की भी अपील की. ​​विशेषज्ञ भूजल स्तर में भारी गिरावट का कारण कृषि में सबमर्सिबल पंपों की मदद से बाढ़ सिंचाई का उपयोग है, जिसकी शुरुआत 1999-2000 के आसपास हुई थी, साथ ही अपर्याप्त जल प्रबंधन प्रथाओं का संयोजन भी है.

 

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