
देश में सर्दी के मौसम की शुरुआत होते ही रबी सीजन का आगाज हो चुका है. इस समय देश के हर क्षेत्र में किसान रबी फसलों की बुवाई की तैयारी में लगे हुए हैं. ऐसे में रबी सीजन में इस बार जौ की खेती से बंपर उत्पादन लेने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूसा ने किसानों को उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी दी है. साथ ही एडवाइजरी में जौ की खेती से जुड़ी सभी जानकारी दी गई है. बता दें कि जौ ठंडे और गरम दोनों जलवायु की फसल है. वहीं, नवंबर का महीना जौ की खेती के लिए बेस्ट है.
जौ रबी सीजन की प्रमुख फसल है, आमतौर पर इसकी बुआई नवंबर से दिसंबर तक की जाती है. असिंचित क्षेत्रों में 20 अक्टूबर से 10 नवंबर तक जौ की बुआई करनी चाहिए, जबकि सिंचित क्षेत्रों में 25 नवंबर तक बुवाई कर देनी चाहिए. वहीं, किसान पछेती जौ की बुआई 15 दिसंबर तक कर सकते हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान ने किसानों को अलग-अलग परिस्थितियों के आधार पर बेस्ट किस्मों की जानकारी दी है. सिंचित क्षेत्र में बुवाई करने के लिए किसान डीडब्ल्यूआरबी 182, डीडब्ल्यूआरबी 160, डीएल 83, आरडी 2503, आरडी 2552 किस्मों की खेती कर सकते हैं. वहीं, सिंचित देर से बुआई के लिए किसान आरडी 2508, डीएल 88, मंजुला, एनडीबी 1173, एनडीबी 1445, नरेन्द्र जौ-1, नरेन्द्र जौ-3, आजाद, मंजुला, बीएसएस 352, जेबी 58 आदि किस्मों की बुवाई कर सकते हैं. इसके अलावा असिंचित समय से बुआई के लिए आरडी 2508, आरडी 2624, आरडी 2660, पीएल 419, के. 560, के 603, गीतांजलि किस्म बेस्ट है. साथ ही क्षारीय क्षेत्र के लिए आरडी 2552, डीएल 88, एनडीबी 1173, नरेन्द्र जौ-1 आदि किस्मों की खेती कर सकते हैं.
जौ की प्रति हेक्टेयर बुवाई के लिए 75 किलो बीज का प्रयोग करें, जौ की बुआई हल के पीछे कूड़ों में और सीड ड्रिल से 20 सें.मी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर 5-6 सें.मी. की गहराई में करें. यदि बीज प्रमाणित न हो, तो बुवाई से पहले 1.0 किलो बीज को 2 ग्राम थीरम या 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से उपचारित करें.
जौ की खेती में पोषक तत्वों के लिए किसान नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम उर्वरक की लगभग 60:30:15 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय मूल रूप में डालें, जबकि नाइट्रोजन की आधी-आधी मात्रा बुवाई और सिंचाई से पहले डालें. इसके अलावा खरपतवार से निजात के लिए शाकनाशी रसायनों का प्रयोग सावधानी करें.
जौ की सफल खेती के लिए 2-3 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है. यदि एक ही सिंचाई उपलब्ध हो, तो उसको बुआई के 30-35 दिनों बाद करें. दो सिंचाई की सुविधा होने पर पहली सिंचाई बुवाई के 25-30 दिनों बाद और दूसरी सिंचाई बुआई के 65-70 दिनों बाद करें. खारा और क्षारीय मिट्टी में अधिक संख्या में हल्की सिंचाई करना चाहिए.