भारतीय इतिहास के मुगलकाल में प्रशासनिक, कला, संस्कृति के क्षेत्र में काफी परिवर्तन देखने को मिलते हैं. विशेषकर बादशाह अकबर के समय राजस्व के फील्ड में भी काफी सुधार दिखाई देते हैं. अकबर ने ना केवल विशाल साम्राज्य बनाया, बल्कि उसे सुचारू रूप से चलाने के लिए कई नवीन प्रणालियों को भी लागू किया. इनमें से एक थी जमीन नापने की प्रणाली. इस प्रणाली को राजा टोडरमल के दिमाग की उपज माना जाता है. यह प्रणाली न केवल उस समय के लिए क्रांतिकारी साबित हुई, बल्कि आज भी इसका प्रयोग गांवों में दिखाई देता है.
टोडरमल अकबर के नवरत्नों में से एक थे. वे न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि वित्त और राजस्व के मामलों में भी उनकी गहरी पकड़ थी. अकबर के शासनकाल में उन्हें वित्त मंत्री का पद सौंपा गया था. टोडरमल ने अपनी दूरदर्शिता से राजस्व प्रणाली को सुधारा. जमीन नापने की एक नई प्रणाली भी विकसित की, जिसे जरीब प्रणाली के नाम से जाना जाता है. उनके इसी योगदान की वजह से अकबर के नवरत्नों में उनको स्थान दिया गया. गौरतलब है कि अकबर के दरबार में कला-संस्कृति-कौशल में विशेषज्ञता रखना वाले 9 सबसे गुणी लोगों को नवरत्न का दर्जा दिया गया था. राजकाज में इनकी सलाह सबसे ज्यादा महत्व रखती थी. इनमें अबुल फजल, फैजी, मुल्ला दो प्याजा, अब्दुर्रहीम खानेखाना, हकीम हुमाम, तानसेन, बीरबल, राजा टोडरमल, मानसिंह शामिल थे.
हालांकि जरीब प्रणाली का आविष्कार मुगलकाल से पहले ही हो चुका था. इसे व्यवस्थित रूप से लागू करने का पूरा श्रेय टोडरमल को जाता है. अकबर के पूर्ववर्ती शेरशाह सूरी के समय में जमीन नापने के लिए रस्सी का उपयोग किया जाता था. इससे माप में त्रुटियां आती थीं. टोडरमल ने अकबर के समय 1556 से 1605 के बीच इसकी जगह लोहे की कड़ियों से बनी जरीब का उपयोग शुरू किया. यह प्रणाली ज्यादा सटीक और विश्वसनीय निकली. जरीब लोहे की कड़ियों से बनी एक जंजीर होती थी, जिसके दोनों सिरों पर पीतल के हैंडल लगे होते हैं.
इसकी लंबाई 60 इलाही गज (लगभग 66 फीट) होती थी, और इसे 100 कड़ियों में विभाजित किया गया था. प्रत्येक कड़ी की लंबाई 0.6 फीट या 7.92 इंच होती थी. इस प्रणाली का उपयोग करके पूरे राज्य की जमीन का सटीक मापन किया गया और राजस्व अभिलेख तैयार किए गए. एक जरीब की मानक लम्बाई 66 फीट अथवा 22 गज अथवा 10 लट्ठे होती है. जरीब में कुल 100 कड़ियां होती हैं. प्रत्येक कड़ी की लम्बाई 0.6 फ़ुट या 7.92 इंच होती है. 10 जरीब की दूरी 1 फर्लांग के बराबर और 80 जरीब की दूरी 1 मील के बराबर होती है. 1 मील में 1.609 किलोमीटर होता है.
मध्यकाल में दक्षिण भारत में शिवाजी ने रस्सी के माप की जगह, काठी (डंडा या लट्ठा) द्वारा माप की पद्धति अपनाया था. जबकि दक्किनी राज्यों में मलिक अम्बर नाम के वित्त मंत्री ने इस प्रणाली के उपयोग को बढ़ावा दिया. बादशाह अकबर का समय में एक ऐसा समय माना जाता है जिसमें ने पहली बार जरीब (बांस वाली जंजीर) का प्रयोग शुरू करवाया. यूरोप की बात करें तो इंग्लैण्ड में जरीब (चेन) का निर्माण सर्वेक्षक और खगोलशास्त्री एडमंड गुंटर ने 1620 में किया था.
जरीब प्रणाली ने न केवल जमीन के मापन को सटीक बनाया, बल्कि इससे राजस्व वसूली में भी पारदर्शिता आई. इससे पहले, जमीन के मापन में त्रुटियों के कारण किसानों को अधिक कर देना पड़ता था. इस प्रणाली से उनकी स्थिति दयनीय हो जाती थी. टोडरमल की इस प्रणाली ने किसानों को न्यायपूर्ण कर व्यवस्था प्रदान की और उन्हें शोषण से मुक्त किया. इस प्रणाली का उपयोग करके, पूरे राज्य की जमीन को बीघा, बिस्सा और विश्वांशि जैसी इकाइयों में विभाजित किया गया. इससे राजस्व अभिलेख तैयार करने में आसानी हुई और प्रशासनिक कार्यों में दक्षता आई.
जरीब प्रणाली की शुरुआत फतेहपुर सीकरी से हुई थी. यह शहर अकबर की राजधानी था और यहां से ही इस प्रणाली को पूरे राज्य में लागू किया गया. मुगलों के समय आगरा के बाद अकबर के समय राजधानी फतेहपुर सीकरी थी. बाद में राजधानी को दिल्ली लाया गया था. टोडरमल ने सीकरी से ही जर-जरीब प्रणाली को विकसित किया और इसे व्यवस्थित रूप से लागू किया. इस प्रणाली ने न केवल राजस्व वसूली को सुगम बनाया, बल्कि इससे किसानों और सरकार के बीच आपसी भरोसे को बढ़ाने में भी बढ़ा.
आज भी भारत के कई गांवों में जरीब प्रणाली का उपयोग किया जाता है. खेतों और रास्तों को नापने के लिए लेखपाल द्वारा जरीब का उपयोग किया जाता है. आज भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है. जरीब तकनीक ने न केवल जमीन के मापन को सरल बनाया, बल्कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि विवादों को सुलझाने में भी मदद मिली.
वर्तमान में जमीन नापने के लिए कड़ी, जरीब, डिसमिल, कट्ठा, गज, हाथ, एकड़ और बीघा जैसे मापकों का उपयोग किया जाता है. इन गणितीय मापों के अलावा, इंच, यार्ड, फुट, गुनिया स्केल और टेप जैसे उपकरणों की भी आवश्यकता होती है. इनकी मदद से किसी ज़मीन या खेत को कम समय में नापकर यह बताया जा सकता है किसी आदमी की जमीन कहां से कहां तक की है.
राजा टोडरमल के योगदान को सम्मान देने के लिए, अकबर ने उनके लिए फतेहपुर सीकरी में एक भव्य बारहदरी का निर्माण कराया. यह अष्टकोणीय स्मारक न केवल टोडरमल की यादगार था, बल्कि यह मुगल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना भी था.
आम तौर पर जमीन को वर्ग फुट, एकड़ या हेक्टेयर जैसी स्टैंडर्ड इकाइयों का उपयोग करके मापा जाता है. जबकि जमीन के छोटे हिस्से या रेसीडेंशियल प्लॉट्स को आमतौर पर वर्ग फुट या वर्ग मीटर में मापा जाता है. जमीन के बड़े हिस्से, जैसे इंडस्ट्रियल या कृषि भूमि को एकड़ या हेक्टेयर में मापा जाता है.
इस तरह 800 साल पहले टोडरमल ने जो आविष्कार किया था. उसने मुगलकाल में न केवल प्रशासनिक सुधारों को गति दी, बल्कि इससे किसानों को भी न्याय दिलवाने में मदद की. इसी पद्धति पर देश की आधुनिक भूमि नापने की पद्धति भी आधारित है. टोडरमल के इस योगदान ने उन्हें राजस्व सुधारों के इतिहास में अमर कर दिया है.
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