जौ शीतोष्ण (ठंडा और गरम) जलवायु की फसल है, लेकिन समशीतोष्ण (जहां सर्दी और गर्मी की मात्रा बराबर हो) जलवायु में भी इसकी खेती सफलतापू्र्वक की जा सकती है. भारत के कई राज्यों में जौ की खेती (cultivation of barley) अक्टूबर और नवंबर माह में की जाती है. वहीं, जौ का दाना लावा, सत्तू, आटा, माल्ट और शराब बनाने के लिए किया जाता है.
अगर बात खेती की करें, तो जौ में पहली सिंचाई बुवाई के तीन-चार सप्ताह बाद और दूसरी जब फसल दूधिया अवस्था में हो, तब की जाती है. पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. वहीं, कटाई मार्च-अप्रैल माह में जब पौधों का डंठल बिलकुल सूख जाए और झुकाने पर आसानी से टूट जाए, तब करनी चाहिए. ऐसे में आइए जौ की उन्नत किस्मों (improved varieties of barley) के बारे में जानते हैं-
करण-201, 231 और 264: जौ की उन्नत किस्म करण 201, 231 और 264 अच्छी उपज देनी वाली किस्में हैं. रोटी बनाने के लिए ये किस्में अच्छी मानी जाती हैं. जौ की यह किस्म मध्य प्रदेश के पूर्वी और बुंदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान और हरियाणा के गुड़गांव और मोहिंदरगढ़ जिले में खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. करण 201, 231 और 264 की औसत उपज क्रमशः 38, 42.5 और 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
नीलम: नीलम किस्म के जौ की खेती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के सिंचित और बारानी दोनों क्षेत्रों में की जाती है. जौ के इस किस्म से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल जाती है. इस किस्म में प्रोटीन और लाइसिन की मात्रा अधिक पायी जाती है.
डी डब्ल्यू आर बी 160: डी डब्ल्यू आर बी 160, जौ की यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान (कोटा व उदयपुर डिविजन को छोड़कर) और दिल्ली में की जाती है. यह उन्नत जौ के उन्नत किस्मों में से एक है. इस किस्म को आईसीएआर करनाल द्वारा विकसित किया गया है. इस किस्म की औसत उपज 53.72 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
रत्ना: जौ की रत्ना किस्म की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के वर्षा आधारित क्षेत्रों में की जा सकती है. जौ के इस खास किस्म में बुवाई के 65 दिनों के बाद बालियां आनी शुरू हो जाती है. लगभग 125-130 दिनों के यह फसल पककर तैयार हो जाती है.