केमिकल फर्टिलाइजर के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में तेजी से गिरावट देखी जा रही है. इससे न केवल फसलों की पैदावार घट रही है, बल्कि क्वालिटी पर बुरा असर देखा जा रहा है. केमिकल खादों से बचने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान - पूसा ने किसानों को जैविक खाद का इस्तेमाल करने की सलाह दी है. किसानों को घर में जैविक खाद बनाने का तरीका भी कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान - पूसा की स्टडी में कहा गया है कि रासायनिक खाद फसल के लिए उपयुक्त जीवाणुओं को नष्ट कर देती है. इन सूक्ष्म जीवाणुओं के तंत्र को विकसित करने के लिए जैविक खाद का प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे फसल के लिए मित्र जीवाणुओं की संख्या, हवा का संचार, पानी को पर्याप्त मात्रा में सोखने की क्षमता में वृद्धि हो सके. भारत में शताब्दियों से गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद व जैविक खाद का प्रयोग विभिन्न फसलों की उत्त्पादकता बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है. इस समय ऐसी कृषि विधियों की आवश्यकता है जिससे अधिक से अधिक पैदावार मिले तथा मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित न हो, रासायनिक खादों के साथ-साथ जैविक खादों के उपयोग से मिट्टी की उत्पादन क्षमता को बनाए रखा जा सकता है.
स्टडी में कहा गया है कि जिन क्षेत्रों में रासायनिक खादों का ज्यादा प्रयोग हो रहा है वहां इनका प्रयोग कम करके जैविक खादों का प्रयोग बढ़ाने की आवश्यकता है. जैविक खेती के लिए जैविक खादों का प्रयोग अति आवश्यक है, क्योंकि जैविक कृषि में रासायनिक खादों का प्रयोग वर्जित है. ऐसी स्थिति में पौधों को पोषक तत्व देने कसके लिए जैविक खादों, हरी खाद व फसल चक्र में जाना अब आवश्यक हो गया है. थोड़ी सी मेहनत व तकनीक का प्रयोग करने से जैविक खाद तैयार की जा सकती है जिसमें पोषक तत्व अधिक होंगे और न्य उसे खेत में डालने से किसी प्रकार की हानि नहीं होगी और फसलों की पैदावार भी बढ़ेगी. खेती में फिर से टिकाऊपन लाने और इसे लाभकारी तथा व्यावसायिक स्तर पर लाने के लिए रासायनिक उर्वरकों बैंक की जगह जैविक खादों को प्राथमिकता देना अनिवार्य हो गया है.
खेत में खाद डालकर शीघ्र ही मिट्टी में मिला देना चाहिए. ढेरियों को खेत में काफी समय छोड़ने से नत्रजन की हानि होती है जिससे खाद की गुणवत्ता में कमी आती है. गोबर की खाद में नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है और उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अनुसंधान कार्यों से कुछ विधियां विकसित की गई हैं. जैविक खाद में फास्फोरस की मात्रा बढ़ाने के लिए रॉक फास्फेट का प्रयोग किया जा सकता है. 100 किलाग्राम गोबर में 2 किलोग्राम रॉक फास्फेट आरम्भ में अच्छी तरह मिलाकर सड़ने दिया जाता है. तीन महीने में इस खाद में फास्फोरस की मात्रा लगभग 3 प्रतिशत हो जाती है. इस विधि से फास्फोरस की घुलनशीलता बढ़ती है और विभिन्न फसलों में रासायनिक फास्फोरस युक्त खादों का प्रयोग नहीं करना पड़ता.
अगर खाद बनाते समय केंचुओं का प्रयोग कर लिया जाए तो यह जल्दी बनकर तैयार हो जाती है और इस खाद और इस खाद में नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है. खाद बनाते समय जीएबी का एक पैकेट व एजोटोबैक्टर जीवाणु खाद का एक पैकेट एक टन खाद में डाल दिया जाए तो फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणु व एजोटोबैक्टर जीवाणु पनपते हैं और खाद में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा में वृद्धि होती है. इस जीवाणुयुक्त खाद के प्रयोग से पौधों का विकास अच्छा होता है.
इस तरह वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करके अच्छी गुणवत्ता वाली जैविक खाद बनाई जा सकती है जिसमें ज्यादा लाभकारी तत्व उपस्थित होते हैं. इसके प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है. जैविक खाद किसानों के घर में उपलब्ध संसाधनों के प्रयोग से आसानी से बनाई जा सकती है. रासायनिक खादों का प्रयोग कम करके और जैविक खाद का अधिक से अधिक प्रयोग करके हम अपने संसाधनों का सही उपयोग कर कृषि उपज में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं और जमीन को खराब होने से बचाया जा सकता है. जैविक खादों के प्रयोग से निम्नलिखित लाभ मिलते हैं रासायनिक खाद के साथ-साथ जैविक खादों के उपयोग से पैदावार अधिक मिलती है तथा भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कम नहीं होती.