धान की इन किस्‍मों के खिलाफ उतरा यह संगठन, ICAR-कृषि मंत्रालय पर लगाया 'गड़बड़ी' का आरोप

धान की इन किस्‍मों के खिलाफ उतरा यह संगठन, ICAR-कृषि मंत्रालय पर लगाया 'गड़बड़ी' का आरोप

जीएम-फ्री इंडिया गठबंधन ने आईसीएआर पर जीनोम-संपादित धान परीक्षणों में हेराफेरी का आरोप लगाया है. संगठन ने कहा कि रिपोर्टों के आंकड़े 'झूठे दावों' से मेल नहीं खा रहे हैें. गठबंधन ने इनकी जांच की मांग की है.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Oct 30, 2025,
  • Updated Oct 30, 2025, 4:41 PM IST

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और कृषि मंत्रालय पर धान की दो जीनोम-एडिटेड धान किस्मों के परीक्षण नतीजों में हेराफेरी कर उन्हें झूठे तरीके से “सफल” बताने का आरोप लगा है. जीएम-मुक्त भारत गठबंधन ने संस्‍थान और मंत्रालय पर यह आरोप लगाए हैं. संगठन ने दावा किया है कि यह मामला वैज्ञानिक ईमानदारी और सार्वजनिक सुरक्षा दोनों से जुड़ा है और इसमें पारदर्शिता की घोर कमी है. गठबंधन ने इस कथित वैज्ञानिक फर्जीवाड़े की स्वतंत्र जांच, जवाबदेही तय करने और जीनोम-एडिटेड फसलों की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की है. गठबंधन ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चार प्रमुख मांगें रखी हैं. 

  • पहली - जीनोम-संपादित धान को लेकर किए गए सभी प्रचारात्मक दावे तुरंत वापस लिए जाएं. 
  • दूसरी - आईसीएआर के ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन राइस (AICRPR) के ट्रायल आंकड़ों और प्रक्रियाओं की स्वतंत्र, पारदर्शी वैज्ञानिक जांच की जाए. 
  • तीसरी - आईसीएआर और कृषि मंत्रालय को देश को गुमराह करने के लिए जवाबदेह ठहराया जाए. 
  • चौथा - जब तक जीनोम एडिटिंग से जुड़ी जैव सुरक्षा और स्वतंत्र निगरानी की व्यवस्था नहीं बनती, तब तक जीनोम-एडि‍टेड फसलों की रिलीज़ पर रोक लगाई जाए. साथ ही, ऐसे सभी अनुसंधान और रिपोर्टों को सार्वजनिक किया जाए.

इन दो किस्‍मों में आंकड़ों के झोल का आरोप

गठबंधन ने आरोप लगाया है कि आईसीएआर और कृषि मंत्रालय ने दो जीनोम-एडिटेड धान की किस्मों पूसा डीएसटी-1 और डीआरआर धान 100 (कमला) के आंकड़ों में हेरफेर कर उन्हें “विश्व में पहली बार” की उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया. लेकिन, आईसीएआर की अपनी वार्षिक रिपोर्टों (2023 और 2024) में मौजूद आंकड़े इन दावों को खारिज करते हैं. गठबंधन ने कहा कि आईसीएआर की रिपोर्टों में दिए गए वास्तविक परिणाम और उनके निष्कर्षों में स्पष्ट विरोधाभास है.

पूसा डीएसटी-1 में बताई ये गड़बड़ी

संगठन ने रिपोर्टों के हवाले से बताया कि पूसा डीएसटी-1 के परीक्षण में 2023 में पर्याप्त बीज न होने के कारण सूखा और खारापन सहनशीलता का कोई आंकड़ा ही नहीं था. जहां परीक्षण हुआ, वहां इसका उत्पादन MTU-1010 किस्म के बराबर या उससे कम रहा. 20 में से 12 परीक्षण स्थलों पर यह कम उत्पादक पाई गई. 2024 में भी इसे खारी मिट्टी में कोई खास बढ़त नहीं मिली, जबकि क्षारीय मिट्टी में महज 1.6% सुधार दर्ज किया गया. इसके बावजूद रिपोर्ट के सारांश में “30% अधिक उत्पादन” का दावा किया गया.

DSR धान- 100 की परिपक्‍वता अवधि‍ पर सवाल

इसी तरह डीआरआर धान 100 ‘कमला’ को “चमत्कारी बीज” कहकर प्रचारित किया गया, लेकिन रिपोर्टों से पता चला कि 2023 में 19 में से 8 परीक्षण स्थलों पर इस किस्म का प्रदर्शन कमजोर रहा. कई जोनों में यह अपनी मूल किस्म से भी कमतर रही. 2024 में कई स्थलों के आंकड़े हटाकर केवल छह साइट्स के आधार पर “+17% उत्पादकता” का दावा किया गया, जबकि वास्तविक औसत उत्पादन 4% कम था. साथ ही इसके 20 दिन जल्दी पकने का भी कोई प्रमाण नहीं मिला.

यह वैज्ञानिक गड़बड़ी का खतरनाक पैटर्न: संगठन

जीएम-मुक्त भारत गठबंधन ने कहा कि यह कोई तकनीकी भूल नहीं, बल्कि बार-बार होने वाली वैज्ञानिक अनियमितताओं का एक खतरनाक पैटर्न है. रिपोर्टों में बुनियादी मापदंडों जैसे प्रति वर्गमीटर फूलों के गुच्छों की संख्या, फूल आने में लगने वाले दिनों और दानों की गुणवत्ता में मनमानी दर्ज की गई है. उदाहरण के तौर पर “कमला” किस्म का फूल आने का औसत समय (DFF) 101 दिन बताया गया है, जबकि इसकी मूल किस्म का 104 दिन. यानी दोनों में केवल तीन दिन का अंतर है, न कि 20 दिन जैसा दावा किया गया है.

किसानों के जीवन-आजीविका से खिलवाड़: कविता

गठबंधन की सदस्य कविता कुरुगंटी ने कहा कि सरकारी संस्थानों द्वारा इस तरह की वैज्ञानिक लापरवाही किसानों के जीवन और आजीविका के साथ खतरनाक खिलवाड़ है. उन्होंने कहा कि यह बुनियादी मानवाधिकार का मसला है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता. उन्‍होंने आगे कहा, “विज्ञान के नाम पर जुमलेबाजी को स्वीकार नहीं किया जा सकता. देश के ईमानदार वैज्ञानिकों का दायित्व है कि वे ऐसी अनैतिक प्रवृत्तियों पर सवाल उठाएं और संस्थानों की साख बचाएं.”

डेटा पब्लिक करने में हिचक क्‍यों- सौम‍िक बनर्जी

वहीं, शोधकर्ता और बायोटेक्नोलॉजिस्ट सौमिक बनर्जी ने भी सवाल उठाया कि अगर यह तकनीक इतनी सुरक्षित और प्रभावशाली है तो इसकी सभी परीक्षण रिपोर्ट और आंकड़े सार्वजनिक करने में हिचक क्यों. उन्होंने कहा कि खुलेपन से ही विज्ञान पर भरोसा बनता है, छुपाने से नहीं.

गठबंधन ने चेतावनी दी है कि नवाचार के नाम पर “घटिया विज्ञान” को बढ़ावा देना न सिर्फ किसानों की सेहत और आजीविका के लिए खतरा है, बल्कि भारतीय विज्ञान की साख और नागरिकों के भरोसे को भी कमजोर कर सकता है. संगठन ने सरकार से अपील की है कि वह विज्ञान के नाम पर कॉर्पोरेट हितों की नहीं, किसानों और जनता की सुरक्षा की रक्षा करे.

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