केन्द्र सरकार यूं ही नहीं इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) द्वारा तैयार किए गए नैनो यूरिया और नैनो डीएपी को प्रमोट करने में लगी हुई है. दरअसल, इसका किसानों को तो डायरेक्ट फायदा दिख ही रहा है लेकिन जो फायदा आम लोगों को नहीं दिखाई दे रहा है वो किसानों को होने वाले लाभ से कहीं बहुत बड़ा है. यह फायदा सरकार को होने वाला है. उस पर बढ़ रहे फर्टिलाइजर सब्सिडी का बोझ काफी कम हो जाएगा और वह पैसा किसी और कल्याणकारी योजना में लग सकेगा. क्योंकि नैनो फर्टिलाइजर पर सब्सिडी नहीं है. इसके बावजूद वो पारंपरिक रासायनिक खाद के मुकाबले किसानों के लिए सस्ती है. कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा यूरिया की मांग होती है. उसके बाद डीएपी और एनपीके की. इफको ने यूरिया और डीएपी दोनों को नैनो फर्टिलाइजर में कन्वर्ट कर लिया है. फिलहाल, हम यह समझते हैं कि यूरिया और डीएपी को नैनो उर्वरक में बदलने से किसानों और सरकार को कितना फायदा होने वाला है.
इस समय सामान्य यूरिया का एक बैग 45 किलो का आ रहा है. इसकी कीमत 267 रुपये है. केंद्र सरकार इस पर इतनी भारी सब्सिडी देती है कि आम किसानों को उसका अंदाजा भी नहीं होगा. तब जाकर इतना सस्ता यूरिया मिलता है. बिना सब्सिडी के एक बैग यूरिया की असली कीमत लगभग 4,000 रुपये पड़ती है. इस तरह सरकार यूरिया के हर बैग पर 3700 रुपए से अधिक की सब्सिडी दे रही है. जबकि 500 एमएल के नैनो यूरिया बोतल का दाम इस समय सिर्फ 225 रुपये है. इफको का दावा है कि जितना काम एक बैग सामान्य यूरिया करेगा उतना ही काम 500 एमएल की नैनो यूरिया लिक्विड से भी होगा. दावा है कि नैनो यूरिया के 500 मिली की एक बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है, जिससे सामान्य यूरिया के एक बैग के बराबर नाइट्रोजन मिलता है.
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अब डीएपी यानी डाई अमोनियम फास्फेट के दाम का गणित समझते हैं. डीएपी के 50 किलो के एक बैग की कीमत 3851 रुपये होती है. जबकि किसानों को यह सिर्फ 1350 रुपये में मिलता है. ऐसा केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी से संभव होता है. इसका मतलब यह है कि सरकार डीएपी के हर सामान्य बैग पर करीब 2500 रुपये की सब्सिडी देती है. चूंकि नैनो फर्टिलाइजर के किसी भी प्रोडक्ट पर सब्सिडी वैलिड ही नहीं है, इसलिए नैनो यूरिया और डीएपी की जितनी बिक्री होगी सरकार को फायदा ही फायदा है. इफको लगभग तीन साल में अधिकांश पारंपरिक फर्टिलाजर को नैनो यूरिया और डीएपी से रिप्लेस करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है. हालांकि, ऐसा हो ही जाएगा इसे कहना मुश्किल है.
देश में 14.5 करोड़ किसान परिवार हैं. हर परिवार में अगर चार सदस्य भी माने जाएं तो करीब 58 करोड़ लोग. ये बहुत बड़ा वोटबैंक है. जिसे सरकार नजरंदाज नहीं कर सकती. इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरकों के रॉ मैटीरियल का दाम कितना भी बढ़ा लेकिन, उसका बोझ किसानों पर नहीं डाला गया. सरकार सब्सिडी बढ़ाती रही ताकि किसानों पर बोझ न पड़े.
लेकिन, 31 मई 2021 को जब इफको ने किसानों के लिए विश्व के पहले नैनो यूरिया लिक्विड की शुरुआत की तब सरकार को भी एक नई उम्मीद जगी. यह उम्मीद थी सब्सिडी कम होने की. इफको को नैनो यूरिया और डीएपी का पेटेंट मिला. लेकिन, ग्राउंड पर नैनो फर्टिलाइजर को लेकर किसानों का माइंडसेट बदलना आसान नहीं है. राजस्थान से इसके विरोध में कई बार आवाज उठी है. किसान महापंचायत लगातार इसकी गुणवत्ता पर सवाल उठा रही है. यही नहीं, लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में कई बार नैनो फर्टिलाइजर को लेकर सरकार से सवाल किए गए हैं.
लेकिन, यह भी सच है कि काफी किसान इसे अपना रहे हैं. इफको ने 31 मई 2021 से अब तक नैनो यूरिया की 6 करोड़ बोतल बेच दी है. अधिकांश किसानों की चिंता बस इसके स्प्रे को लेकर है. क्योंकि ड्रोन की पहुंच अभी सभी गांवों तक नहीं हो सकी है. नैनो फर्टिलाइजर के साथ-साथ ड्रोन का बाजार भी खड़ा हो रहा है. पेस्टीसाइड के साथ-साथ अब यूरिया-डीएपी का भी छिड़काव करना पड़ेगा क्योंकि यह लिक्विड में बदल रहा है.
इफको के एमडी डॉ. यूएस अवस्थी का कहना है कि नैनो यूरिया और डीएपी दुनिया के उर्वरक उद्योग में गेम चेंजर साबित होने वाले हैं. नैनो जिंक और नैनो कॉपर भी विकसित करने पर काम चल रहा है.
सहकारिता क्षेत्र से केंद्र सरकार की एमएसपी कमेटी के सदस्य बनाए गए बिनोद आनंद का कहना है कि नैनो यूरिया और डीएपी कृषि क्षेत्र में किसी बड़ी क्रांति से कम नहीं हैं. इसके प्रयोग से लाखों किसानों की खेती की लागत तो कम होगी ही, इसका भंडारण और ट्रांसपोर्टेशन काफी आसान हो जाएगा. कोई भी किसान क्यों उठाएगा 50 किलो का बैग. वो तो अब नैनो यूरिया और डीएपी को अपने कुर्ते की पॉकेट में रखकर बाजार से घर और घर से खेत में जाएगा.
जिसका सामान्य यूरिया या डीएपी बच जाता था उसे हवा से बहुत बचाव करके रखना होता था. लेकिन अब ऐसी कोई दिक्कत नहीं है. बोतल की ढक्कन बंद है तो खाद सुरक्षित है. सब्सिडी का बोझ कम होगा तो उसका पैसा सरकार किसी और कल्याणकारी योजना में लगाएगी. अगर दो साल में 25 फीसदी किसान भी नैनो फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करना शुरू कर देंगे तो कम से कम सालाना 50000 करोड़ रुपये की सब्सिडी बचेगी. साथ ही स्वायल हेल्थ भी ठीक रहेगी. उपज बढ़ेगी. किसानों की आय में भी वृद्धि होगी क्योंकि खर्च कम हो जाएगा.
इस समय इफको के पास पांच पारंपरिक प्लांट हैं. जिसमें कलोल, कांदला, फूलपुर, आंवला और पारादीप शामिल हैं. जबकि तीन प्लांट ऐसे हैं जिनमें नैनो फर्टिलाइजर का काम हो रहा है. इनमें कलोल, फूलपुर और आंवला शामिल हैं. इसके तीन प्लांट दूसरे देशों में हैं. जिनमें ओमान, जॉर्डन और सेनेगल शामिल हैं, हालांकि, दूसरे देशों में नैनो फर्टिलाइजर का अभी उत्पादन नहीं हो रहा है. लेकिन 12 देशों में एक्सपोर्ट हुआ है.
गुजरात स्थित इफको की कलोल विस्तार यूनिट, कांदला यूनिट और ओडिशा स्थित पारादीप यूनिट में नैनो डीएपी का प्रोडक्शन होगा. तीनों यूनिटों में रोजाना 500 एमएल नैनो डीएपी की 2-2 लाख बोतलें तैयार होंगी. इफको की कलोल विस्तार यूनिट में जल्द ही उत्पादन शुरू होगा. पारादीप, ओडिशा में जुलाई 2023 तक उत्पादन शुरू हो जाएगा, जबकि कांदला, गुजरात में अगस्त 2023 तक उत्पादन शुरू हो जाएगा. देखना यह है कि इफको और केंद्र सरकार मिलकर इस नई खोज को कितना लोकप्रिय बना पाते हैं.
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