मॉनसूनी बारिश देश के लगभग हर हिस्से में शुरू हो गई है. ऐसे में खरीफ सीजन के लिए मूंग दाल की बुवाई भी शुरू हो गई है. इस बार अनुमान है कि बीते साल की तुलना में मूंग का उत्पादन बढ़ेगा. मूंग दाल की बुवाई कर रहे किसानों को खेत तैयार करने से लेकर बीज की मात्रा, उर्वरक समेत कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. क्योंकि, लापरवाही उत्पादन पर असर डाल सकती है.
किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग मध्य प्रदेश एक्सपर्ट के अनुसार खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह में रहता है. बुवाई में देरी होने पर फूल आते समय तापमान में बढ़ोत्तरी उत्पादन को प्रभावित कर देती है, क्योंकि पौधे में फलियां कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है.
खरीफ की फसल के लिए एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. बारिश शुरू होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से खेत की जुताई करनी चाहिए. इससे खरपतवार खत्म हो जाता है. इसके बाद खेत में पाटा चलाकर मिट्टी को समतल करना भी जरूरी होता है. इसके अलावा पौधे को दीमक से बचाव के लिये क्लोरपायरीफॉस 1.5 फीसदी पाउडर 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए.
खरीफ सीजन में मूंग दाल की बुवाई कतार विधि से करनी चाहिए. खरीफ सीजन के लिए 20 किलोग्राम मूंग बीज पर्याप्त है. बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम + केप्टान (1+2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से ट्रीटमेंट करना चाहिए. इसके अलावा बीज को राईजोबियम कल्चर की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से बुवाई करनी चाहिए.
बारिश के मौसम में मूंग फसल से अच्छी उपज पाने के लिए हल के पीछे बनने वाली पंक्तियों या कतारों में बीज की बुआई करना सही रहता है. खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 सेंटीमीटर होनी चाहिए.