बरसात के मौसम में किसान खरीफ मक्का की खेती करते हैं. यह किसानों के लिए फायदेमंद मानी जाती है क्योंकि इस सीजन में लगाए गए मक्के की पैदावार अच्छी होती है और इससे किसानों को अच्छी कमाई होती है. खरीफ मक्के की अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए खेत में सही तरीके से खाद देना बहुत जरूरी होता है. वहीं, बलुई मिट्टी में मक्के की बुवाई से पहले किसान ये जरूर जान लें कि खेतों में कौन सी खाद डालना जरूरी होता है. साथ ही ये भी जानें कि कब करनी चाहिए पहली निराई.
मक्का की खेती के लिए उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. सिंचित क्षेत्रों में मक्का की बुवाई मॉनसून आने के 10-15 दिनों पहले कर देनी चाहिए. वहीं, वर्षा आधारित क्षेत्रों में बारिश के आने पर ही मक्का की बुवाई की जाती है. इसके अलावा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मेड़ों के ऊपर मक्का की बुवाई करनी चाहिए और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गड्ढा बनाकर बुवाई करनी चाहिए.
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बलुई दोमट मिट्टी में मक्के की खेती करते समय पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 75×20 सेंमी या 60×25 सेंमी रखना चाहिए. यदि मक्का की बुवाई बेबीकॉर्न और पॉपकॉर्न के लिए की जा रही है, तो पौधों के बीच की दूरी 60×20 सेंमी उचित होती है. वहीं बुवाई से पहले 1 किलो बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 2.0 ग्राम कार्बण्डाजिम से बोने से पहले उपचारित कर लें. वहीं, जिन क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप होता है, वहां आखिरी जुताई पर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. की 2.5 लीटर मात्रा को 5.0 लीटर पानी में घोलकर 20 किलो बालू में मिलाकर प्रति हेक्टयेर की दर से बुवाई के पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए.
मक्का की खेती में निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार नियंत्रण के साथ ऑक्सीजन का संचार होता है. यह ऑक्सीजन दूर तक फैलकर पोषक तत्व को इकट्ठा करके पौधों को देती है. वहीं, मक्के की पहली निराई अंकुरण के 15 दिनों बाद कर देनी चाहिए और दूसरी निराई 35-40 दिनों बाद करनी चाहिए. साथ ही बुवाई के बाद 2 किलो एट्राजिन 500 लीटर प्रति हेक्टेयर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. इसके प्रयोग से एकवर्षीय घास और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नष्ट हो जाते हैं. इस रसायन द्वारा विशेष रूप से पत्थरचट्टा भी नष्ट हो जाता है. जहां पर पत्थरचट्टा की समस्या नहीं है, वहां पर एलाक्लोर 5 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के दो दिनों के अंदर प्रयोग करना जरूरी होता है.