उत्तर प्रदेश में किसानों को हरी खाद मुहैया कराने के लिए कृषि विभाग ने बड़ी पहल की है. यहां पर इस साल हरी खाद के तौर पर किसानों को ढैंचा के बीज दिए जाएंगे. बताया जा रहा है कि सीतापुर जिले को विभाग की तरफ से 300 क्विंटल बीज आवंटित किए जा चुके हैं. बीज विकास निगम की तरफ से कृषि विभाग को बीज उपलब्ध कराए जाएंगे. इसके बाद ब्लॉक स्तर पर कृषि बीज भंडारों के माध्यम से इनका वितरण किसानों को किया जाएगा.
विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए हरी खाद के तौर पर ढैंचा की बहुत मांग है, खास तौर पर धान की खेती के लिए. हालांकि, उच्च मांग के बावजूद बीजों की उपलब्धता अक्सर सीमित रही है. जिले में किसान करीब 5.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती करते हैं. इसमें से 1.5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन पर धान की खेती होती है. धान के लिए उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है. इस वजह से कई किसान धान की रोपाई से 30 से 45 दिन पहले ढैंचा बोते हैं.
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पिछले साल कृषि विभाग ने बीज विकास निगम से 400 क्विंटल ढैंचा के बीज मांगे थे. लेकिन सप्लाई पूरी नहीं थी. इसके कारण कुछ किसानों को प्राइवेट वेंडर्स से ऊंचे दामों पर बीज खरीदना पड़ा. सीमित या कम उपलब्धता के बावजूद, ढैंचा मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और रासायनिक उर्वरकों की जरूरतों को कम करने के लिए जरूरी है. बताया जा रहा है कि ये बीज अप्रैल के महीने में उपलब्ध हो जाएंगे.
ढैंचा, सेस्बेनिया प्रजाति का पौधा है और आमतौर पर भारत में हरी खाद वाली फसल के तौर पर किसान उगाते हैं. इसकी शाखाएं लंबी होती हैं और यह गीले क्षेत्रों और भारी मिट्टी के लिए अनुकूल मानी जाती है. इस प्रजाति का प्रयोग भारत में पशुओं को खिलाने और मिट्टी में सुधार के लिए काफी लंबे समय से किया जाता रहा है. सेस्बेनिया प्रजाति के बीजों में कच्चे प्रोटीन की मात्रा 33 फीसदी और कच्चे फाइबर की मात्रा 10.9 फीसदी होती है. इसे कमी के समय चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
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हरी खाद, मिट्टी की हेल्थ और फसल उत्पादन के लिए कई तरह से फायदेमंद है. यह मिट्टी में पीएच लेवल को सुधारती है और उसकी पानी सोखने की क्षमता को भी बढ़ाती है. साथ ही पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है और इसकी वजह से खरपतवार भी फसलों से दूर रहती हैं.