यूरिया के अंधाधुंध इस्तेमाल से जमीन में हो रही पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए अब यूरिया का ही सहारा लिया जाएगा. सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद इसका इस्तेमाल कम नहीं हो रहा. ऐसे में अब यूरिया में ही जिंक, सल्फर और बोरोन की कोटिंग करके धरती में हो रही सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने की कोशिश की जाएगी. यूरिया में जिंक, सल्फर और बोरॉन की कोटिंग के ट्रॉयल सफल रहे हैं. अगर पोषक तत्वों की कमी हो जाती है तो पौधों में कई तरह के रोग लग जाते हैं जिससे फसल खराब हो जाती है. सूत्रों का कहना है कि सरकार सबसे पहले यूरिया में सल्फर कोटिंग को लेकर कोई अहम फैसला ले सकती है. क्योंकि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के वैज्ञानिक फरवरी में ही सरकार को इसके बारे में प्रजेंटेशन दे चुके हैं.
इस समय किसानों को नीम कोटेड यूरिया मिल रहा है. लेकिन, जल्द ही दूसरे सूक्ष्म तत्वों की कोटिंग वाला यूरिया भी बाजार में आ सकता है. यूरिया पर सल्फर कोटिंग करने के लिए पिछले डेढ़ दशक से काम चल रहा है. पूसा के वैज्ञानिक कई ट्रायल कर चुके हैं. बताया गया है कि यूरिया में 5 से 7 फीसदी सल्फर की कोटिंग होगी. किसान सामान्य तौर पर तो खेत में इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. इसलिए वैज्ञानिकों की कोशिश है कि अगर कोई किसान सौ किलो यूरिया डाल रहा है तो उसके खेत में पांच से सात किलो सल्फर चला जाए. पूसा के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. आरएस बाना का कहना है कि सल्फर की कोटिंग से ग्राउंड वाटर पाल्यूशन कम होगा और तिलहन फसलों में तेल की मात्रा बढ़ जाएगी. इस वक्त भारत की 42 फीसदी जमीन में सल्फर की कमी है.
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जिंक कोटेड यूरिया पर भी करीब एक दशक से काम चल रहा है. बताया गया है कि जिंक की कोटिंग की 5 फीसदी होगी.हालांकि, सरकार कब तक इसे बनाने की मंजूरी देगी कहा नहीं जा सकता. जिंक की कमी से पौधों की बढ़वार कम हो जाती है और दाने की गुणवत्ता पर असर पड़ता है. इसकी कमी से पौधों का विकास रुक जाता है. पत्तियां मुड़ने लगती हैं. धान की फसल में जिंक की कमी के कारण खैरा रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. नींबू, लीची और आम आदि में इसकी कमी होने पर पत्तियां छोटी रह जाती हैं. इस वक्त भारत की जमीन में जिंक की 39 फीसदी कमी है.
पूसा के कृषि वैज्ञानिक बोरॉन कोटिंग यूरिया का भी ट्रॉयल कर चुके हैं. बोरॉन पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित जल और खनिज लवणों को पौधे के सभी अंगों तक पहुंचाता है. बिना बोरॉन के पौधे अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर सकते. फसल में बोरॉन की कमी से उपज बहुत ही कम हो जाती है. पत्तियां मोटी एवं कड़ी होकर नीचे की ओर मुड़ जाती हैं. अपने देश की मिट्टी में बोरॉन की 23 फीसदी कमी बताई गई है.
प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. वाईएस शिवे का कहना है कि नीम कोटेड यूरिया 2015 में मार्केट में आई. जिससे सामान्य यूरिया के मुकाबले भूमिगत प्रदूषण कम होता है. लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि नीम कोटेड यूरिया पर पूसा का रिसर्च पेपर 1971 में ही आ चुका था. लेकिन, अब सरकार जमीन की सेहत को लेकर काफी सतर्क है. इसलिए खासतौर पर सल्फर कोटेड यूरिया पर जल्द ही कोई फैसला हो सकता है. अभी नाइट्रोजन की एफिशिएंसी 30 से 40 फीसदी के बीच है. बाकी यूरिया अमोनिया गैस बनकर उड़ जाती है और जमीन में जाकर नाइट्रेट हो जाता है. जबकि सल्फर कोटेड से इसकी एफिशिएंसी बढ़कर 48 फीसदी तक हो जाएगी और सल्फर की कमी भी पूरी होगी.
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