
रसायन और उर्वरक मंत्री जेपी नड्डा के संसद में खाद की बिक्री और मांग को देखते हुए पायलट परियोजना लॉन्च करने की योजना बनाई है, जिसे लेकर एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि मार्च 2026 के अंत तक कई कार्य किए जाएंगे. खाद सेक्रेटरी रजत मिश्रा ने फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI) की सालाना कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगले चार महीनों में, आप देखेंगे कि हम कई काम करने जा रहे हैं, जिससे न सिर्फ इंडस्ट्री को ज़्यादा क्रेडिबिलिटी मिलेगी, बल्कि किसानों को भी मदद मिलेगी. उन्होंने सब्सिडी वाले यूरिया को खेती के अलावा दूसरे कामों में इस्तेमाल होने से रोकने के लिए इंडस्ट्री से सुझाव मांगे है.
जेपी नड्डा ने मंगलवार को राज्यसभा में बताया था कि सरकार सब्सिडी वाले फर्टिलाइजर की मांग को खेत के साइज़ से जोड़ने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च करेगी, ताकि इस डायवर्जन को रोका जा सके. हालांकि सरकार पिछले कुछ सालों से ऐसे प्लान के बारे में बात कर रही है, लेकिन अभी तक यह पूरा नहीं हुआ है, जिसके बारे में एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह किसानों की किसी भी संभावित खराब प्रतिक्रिया के कारण हो सकता है.
नड्डा ने कहा कि हम एक पायलट प्रोजेक्ट तैयार कर रहे हैं, जिसमें हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि किसानों पास कितनी जमीन है और वो कितना खाद मांग रहे हैं, इसका ध्यान रखना होगा. उन्होंने कहा कि हम किसानों को सब्सिडी वाला फर्टिलाइजर दे रहे हैं. मान लीजिए किसान के पास 10 बैग इस्तेमाल करने की कैपेसिटी है, लेकिन वे 50 बैग ले रहे हैं. ऐसे ही चोरी को रोकने के लिए इस बात का ध्यान रखना होगा.
हालांकि, किसानों को सब्सिडी वाले फर्टिलाइजर के जितना चाहे उतने बैग खरीदने की इजाज़त है, लेकिन हाल में खाद की कमी के कारण, पिछले खरीफ सीजन में सरकार ने एक महीने में एक किसान द्वारा खरीदी जा सकने वाली मात्रा पर लिमिट लगा दी थी. हालांकि, खाद मंत्री ने कहा कि यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि फर्टिलाइजर की कमी है, जबकि सभी राज्यों भरपूर मात्रा में खाद की सप्लाई की गई है. उन्होंने कहा कि यह बात सब जानते हैं कि फर्टिलाइजर को दूसरी जगह भेजा जा रहा है और डीलर इसकी जमाखोरी कर रहे हैं.
जेपी नड्डा ने कहा कि पिछले सात महीनों में सरकार ने कालाबाजारी, जमाखोरी और घटिया गुणवत्ता की खाद का वितरण करने के मामलों में 5,371 फर्टिलाइजर कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए हैं और 649 FIR दर्ज की गई हैं.
FAI इवेंट में सेक्रेटरी रजत मिश्रा ने कहा कि सरकार इस साल के आखिर तक 30 गैस-बेस्ड यूरिया बनाने वालों को फिक्स्ड कॉस्ट पेमेंट बढ़ाने का प्लान बना रही है, क्योंकि पिछले 25 सालों में उनमें कोई बदलाव नहीं किया गया है. लेकिन अभी यह तय नहीं हुआ है कि मिनिमम फिक्स्ड कॉस्ट 1 अप्रैल, 2014 से लागू होगी या नहीं. फिक्स्ड कॉस्ट में सैलरी और प्लांट मेंटेनेंस समेत वर्किंग कैपिटल की ज़रूरतें शामिल हैं और ये सब्सिडी कैलकुलेट करने और रिटेल प्राइस तय करने में भी मददगार हैं. इंडस्ट्री लंबे समय से इसमें बदलाव की मांग कर रही है. कंपनियों को अभी रीइंबर्समेंट के तौर पर 2,800-3,000 रुपये प्रति टन मिलते हैं और मार्च 2020 में 350 रुपये प्रति टन की और बढ़ोतरी की गई.