Urea Use: खेतों में यूरिया का हो रहा अधिक इस्तेमाल, मिट्टी, फसल और इंसान की सेहत पर बड़ा खतरा

Urea Use: खेतों में यूरिया का हो रहा अधिक इस्तेमाल, मिट्टी, फसल और इंसान की सेहत पर बड़ा खतरा

Urea Use: अब समय आ गया है कि हम यूरिया के बेहिसाब इस्तेमाल से पीछे हटें और मिट्टी की सेहत को प्राथमिकता दें. क्योंकि अगर मिट्टी स्वस्थ होगी, तो फसल भी पोषक होगी और देश का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा.

Excessive Use of UreaExcessive Use of Urea
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Jun 02, 2025,
  • Updated Jun 02, 2025, 5:10 PM IST

Urea Use: हाल ही में इंडिया हैबिटेट सेंटर के कैसुरिना हॉल में देशभर के विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और कृषि उद्योग के विशेषज्ञों ने मिट्टी की सेहत और मानव पोषण के आपसी संबंध पर चर्चा की. इस बैठक का आयोजन इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) द्वारा किया गया. चर्चा का मुख्य विषय था, बेहतर फसल और मानव पोषण के लिए मिट्टी की सेहत को सुधारना.

विशेषज्ञों ने बताया कि आज भारत में यूरिया जैसे नाइट्रोजन उर्वरकों का अत्यधिक और अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है, जिससे मिट्टी की उर्वरता लगातार घटती जा रही है. इससे खेती की स्थिरता पर तो असर पड़ ही रहा है, साथ ही पानी भी प्रदूषित हो रहे हैं और इंसानों के स्वास्थ्य पर भी खतरा मंडरा रहा है.

यूरिया की सब्सिडी से उपज रहा नुकसान

भारत सरकार हर साल उर्वरकों पर करीब 22 अरब डॉलर से ज्यादा की सब्सिडी देती है, लेकिन इसके बावजूद केवल 35-40% नाइट्रोजन ही फसलों द्वारा उपयोग किया जाता है. बाकी नाइट्रोजन वायुमंडल या पानी में मिलकर प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का कारण बनती है. इससे मिट्टी की उर्वरता घट रही है और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है.

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फसलों की पोषण गुणवत्ता भी हो रही कमजोर

बैठक में विशेषज्ञों ने बताया कि मिट्टी में जिंक की कमी सीधे तौर पर बच्चों में विकास की कमी (स्टंटिंग) का कारण बन रही है. इससे सिर्फ वर्तमान पीढ़ी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की स्वास्थ्य, बुद्धि और आर्थिक विकास भी प्रभावित हो सकता है. इसलिए मिट्टी की सेहत को सुधारना सिर्फ फसल की पैदावार बढ़ाने का मुद्दा नहीं, बल्कि देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा का सवाल भी है.

अंधाधुंध खेती से पर्यावरण को नुकसान

विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि 1960 के दशक में भारत जब ‘शिप-टू-माउथ’ स्थिति से निकलकर दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक बना, तब उस बदलाव का एक पर्यावरणीय मूल्य भी चुकाना पड़ा. लगातार रासायनिक उर्वरकों और पानी की अधिक खपत ने मिट्टी को थका दिया है और उसकी प्राकृतिक संरचना को नुकसान पहुंचाया है.

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समाधान क्या हो सकता है?

बैठक में यह सहमति बनी कि अब समय आ गया है जब सभी हितधारकों सरकार, किसान, उद्योग और शोध संस्थान को मिलकर काम करना होगा. प्राकृतिक और जैविक खेती को बढ़ावा देना, मिट्टी परीक्षण को अनिवार्य बनाना और उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल जैसे कदम इस दिशा में कारगर हो सकते हैं.

मिट्टी को चाहिए ICU जैसी देखभाल

एक विशेषज्ञ ने बैठक के अंत में कहा, “भारत की मिट्टी को अब ICU जैसी देखभाल की जरूरत है.” यह बयान इस बात को साफ़ तौर पर बताता है कि मिट्टी की खराब होती हालत अब सिर्फ कृषि का मामला नहीं, बल्कि राष्ट्र की सेहत और समृद्धि से जुड़ा हुआ मुद्दा बन चुका है.

ICRIER इस दिशा में एक अहम संस्था

आईसीआरआईईआर (ICRIER) एक स्वतंत्र और विश्वसनीय नीति अनुसंधान संस्था है, जिसकी स्थापना 1981 में की गई थी. यह कृषि, आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल अर्थव्यवस्था और व्यापार जैसे विषयों पर सरकार और अन्य संस्थाओं को नीतिगत सलाह देती है. इसका उद्देश्य नीति और शोध के बीच पुल बनाना है, ताकि देश के विकास में योगदान दिया जा सके.

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