
नागालैंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अदरक की एक नई उच्च उत्पादकता वाली किस्म एसएएस-केवू (SAS-KEVÜ) बनाई है. यह किस्म बेहतर उपज, उच्च ड्राई मैटर रिकवरी और उत्कृष्ट शुद्ध क्वालिटी देती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, यह किस्म बाजार, मसाला प्रोसेसिंग उद्योग और किसानों सभी के लिए लाभकारी साबित होने वाली है. यह किस्म कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की सब-कमेटी ऑन क्रॉप स्टैंडर्ड्स, नोटिफिकेशन एंड रिलीज ऑफ वैरायटीज (हॉर्टिकल्चर क्रॉप्स) की ओर से औपचारिक रूप से अधिसूचित (Notified) की जा चुकी है. इसके अलावा भारत के राजपत्र में प्रकाशित भी हो चुकी है. साथ ही यह किस्म अब आधिकारिक रूप से बीज उत्पादन और कृषि बिक्री के लिए मान्य हो गई है.
SAS-KEVU का विकास अखिल भारतीय समन्वित मसाला अनुसंधान परियोजना (AICRP-Spices) के तहत हुआ है, जो नगालैंड यूनिवर्सिटी में संचालित होती है. करीब एक दशक चले वैज्ञानिक मूल्यांकन, बहु-स्थान परीक्षण और सात एआईसीआरपी केंद्रों में विस्तृत फील्ड ट्रायल के बाद यह किस्म राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चुनी गई.
नागालैंड यूनिवर्सिटी के कुलपति जगदीश के पटनायक ने बताया कि यह उपलब्धि नौ वर्षों की कठिन, समन्वित और देशव्यापी वैज्ञानिक मेहनत का परिणाम है. उनके अनुसार, SAS-KEVU को खासतौर पर अधिक उपज, बेहतर गुणवत्ता और अधिक सहनशीलता प्रदान करने के लिए बनाया गया है, जिससे किसानों की प्रति हेक्टेयर आय में उल्लेखनीय वृद्धि हो सके.
नगालैंड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सी एस मैती ने बताया कि इस किस्म की यात्रा 2014 में शुरू हुई, जब नागालैंड के विभिन्न अदरक उत्पादक क्षेत्रों से ‘नादिया’ किस्म के 19 क्लोन एकत्र किए गए और उनका विस्तृत मर्फोलॉजिकल और बायोकेमिकल अध्ययन किया गया. इनमें से क्लोन NDG-11 सभी परीक्षणों में सबसे मजबूत और लगातार बेहतर पाया गया, जिसे बाद में SAS-KEVU नाम दिया गया.
इस किस्म की उपज क्षमता 17.21 टन प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है, जो राष्ट्रीय चेक वैरायटी से 9 प्रतिशत अधिक है. इसका ड्राई रिकवरी रेट 21.95 प्रतिशत है, जो अदरक ड्राई प्रोसेसिंग उद्योग के लिए बेहद फायदे का सौदा है. इसके कंद नरम बनावट वाले, आकार में बड़े और अंदर से हल्के नींबू-पीले रंग के हैं, जिनमें रेशा काफी कम पाया गया है. इस वजह से यह किस्म अचार, पेय, कुकिंग, पेस्ट और अन्य वैल्यू-ऐडेड उत्पादों के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जा रही है.
उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार, मध्यम तेल मात्रा और गूदेदार ठोस कंद इस किस्म को कैंडी, जूस, पेस्ट और अन्य खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों के लिए और भी अनुकूल बनाते हैं. वहीं, किसानों के लिए इसकी उच्च उपज, बेहतर बाजार स्वीकार्यता और आकर्षक कंद गुणधर्म मिलकर प्रति हेक्टेयर आय को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह फसल नौ महीने में तैयार हो जाती है, जिससे यह पारंपरिक अदरक उत्पादक इलाकों के कृषि कैलेंडर में आसानी से फिट हो जाती है.
केंद्र सरकार द्वारा इसे बीज अधिनियम, 1966 के तहत अधिसूचित किए जाने के बाद अब यह किस्म नगालैंड, मिजोरम, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में बीज उत्पादन और बिक्री के लिए अनुमोदित है. हॉर्टिकल्चर विभाग की सहायक प्रोफेसर ग्रासेली आई येप्थोमी के अनुसार, यह पहली बार है जब उत्तर-पूर्व भारत के किसी अनुसंधान संस्थान ने अदरक की कोई उच्च-किस्म विकसित कर राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त की है. (पीटीआई)