क्या आपने एफ्लाटॉक्सिन का नाम सुना है? दरअसल, यह मक्के, अनाज और मेवों और मूंगफली में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला विष है, जो फफूंदों द्वारा बनता होता है. अच्छे दाम एवं औद्योगिक उपयोग के लिए मक्के में एफ्लाटॉक्सिन की मात्रा नगण्य या 20 पीपीबी (Parts Per Billion) से कम होना चाहिए, भंडारण के दौरान इसकी मात्रा बढ़ जाती है. मक्का में एफ्लाटॉक्सिन संदूषण (Contamination) को नियंत्रित करने के लिए खेत में सुखाना और यांत्रिक रूप से सुखाना सबसे प्रभावी पाया गया है. एफ्लाटॉक्सिन के स्तर का अनुमान लगाने के लिए एक रैपिड बीजीवाईएफ (BGYF) परीक्षण विकसित किया गया है और इसका उपयोग कई मक्का खरीदारों द्वारा किया जा रहा है.
यह विष एस्परगिलस फ्लेवस नामक फफूंद द्वारा बनता है. इस कवक को खेत में या भंडारण में मकई के दानों पर उगने वाले भूरे-हरे या पीले-हरे रंग के फफूंद से पहचाना जा सकता है. फफूंद के विकास के दौरान सूखे, गर्मी या कीटों के कारण पौधों पर तनाव आमतौर पर एफ्लाटॉक्सिन के स्तर को बढ़ाता है. एफ्लाटॉक्सिन संदूषण ज्यादा होने से मक्का का दाम कम हो जाएगा और बिक्री में बाधा आएगी. इससे किसानों को नुकसान होता है.
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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेज रिसर्च के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट का कहना है कि एफ्लाटॉक्सिन फंगल अवशेष है, जो नंगी आंखों से दिखाई नहीं देता है. केवल टेस्ट द्वारा पहचाना जा सकता है. एफ्लाटॉक्सिन को हटाया नहीं जा सकता. उदाहरण के लिए, अगर मवेशियों के चारे में 100 पीपीबी है, तो दूध में 25 पीपीबी होगा. इसलिए यह मक्का में 20 पीपीबी से कम होना चाहिए. एफ्लाटॉक्सिन विषाक्तता के कारण मतली, उल्टी, पेट में दर्द, ऐंठन और लीवर में दिक्कत हो सकती है.
भारत में धान और गेहूं के बाद मक्का तीसरी सबसे महत्वपूर्ण अनाज की फसल है. दुनिया के करीब 175 मुल्कों में मक्का की खेती होती है. अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है. कुल उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी लगभग 35 फीसदी है, जबकि भारत की भागीदारी महज 2 फीसदी है. हालांकि कम उत्पादन के बावजूद भारत मक्का का एक्सपोर्टर है. एक्सपोर्ट के लिए किसानों को एफ्लाटॉक्सिन फ्री मक्का की जरूरत है.
भारत में यह मुख्य तौर पर खरीफ फसल है. साल 2023-24 के लिए 376.65 लाख टन मक्का उत्पादन का अनुमान है. दुनिया में सबसे ज्यादा लगभग 60 प्रतिशत मक्का चारे के तौर पर इस्तेमाल होता है. औद्योगिक तौर पर 22 प्रतिशत और सिर्फ 17 फीसदी खाद्य सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. भारत में इथेनॉल उत्पादन के लिए इसकी खेती को बढ़ाने का प्रयास जारी है.
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