Quail Farming: पिंजड़ा पद्धति से करें बटेर पालन, कम खर्च में होगा ज्यादा मुनाफा

Quail Farming: पिंजड़ा पद्धति से करें बटेर पालन, कम खर्च में होगा ज्यादा मुनाफा

किसान कम जगह में पिंजरा पालन पद्धति की मदद से बटेर पालन कर सकते हैं. इसके साथ ही कम खर्च में किसान छोटे से स्थान में हैचरी का भी बिजनेस आसानी से कर सकते हैं.

पिंजड़ा पद्धति से बटेर पालनपिंजड़ा पद्धति से बटेर पालन
अंक‍ित कुमार स‍िंह
  • Vaishali,
  • Feb 16, 2023,
  • Updated Feb 16, 2023, 6:35 PM IST

समय के साथ खेती, पोल्ट्री फार्म,पशुपालन व मत्स्य पालन में आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है. इन तकनीकों की मदद से किसान कम जगह में अधिक उत्पादन कर बेहतर कमाई कर रहे हैं. वहीं किसान अगर बटेर पालन के साथ चूजे का बिजनेस करना चाहते हैं. तो वह भी अपने घर के एक कमरे में अंडा से चूजा तैयार कर सकते हैं. इसके साथ ही घर की छत पर या दीवार की मदद से बटेर पालन आसानी से कर सकते हैं. इस माध्यम से पालन करने के लिए उन्हें पिंजरा पद्धति का उपयोग करने की जरूरत है. वैशाली जिले के कृषि विज्ञान केंद्र हरीहरपुर में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ अनूप कुमार सिंह के अनुसार पिंजड़ा पालन पद्दति से किसान बटेर पालन कर सकते हैं, जिनकी खुद की जमीन नहीं है. वह भी अपने घरों के दीवाल या एक कमरे में छत पर आसानी से पालन कर सकते हैं.

इसके साथ ही छोटे स्तर पर लोग बटेर का चूजा तैयार करने वाली मशीन की मदद से बिजनेस भी कर सकते हैं.बटेर या वर्तक (quail) भूमि पर रहने वाले जंगली पक्षी हैं. इसका पालन मुर्गी पालन से मिलता जुलता व्यवसाय है. वहीं इसके पालन में खर्च कम और मुनाफा ज्यादा है. इसके साथ ही यह अपने स्वादिष्ट मांस और पौष्टिकता के लिए  जानी जाती है. यह मांसाहारी लोगों की पहली पसंद है.

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पिंजड़ा पद्धति से कैसे करें बटेर पालन

वैज्ञानिक डॉ अनूप कुमार सिंह बताते हैं कि पिंजड़ा पद्दति से बटेर पालन करने में जगह एवं मेहनत दोनों में ही कमी आती है. इसके साथ ही पक्षियों का देखरेख आसानी से होती है. आगे वह बताते हैं कि किसान अपनी खाली जमीन के सुविधा अनुसार पिंजरा बना सकते हैं. अगर कोई किसान 6 फीट लंबा, दो फीट चौड़ा एवं ऊंचाई ढाई फीट का पिंजरा बनाते है. उसमें दो लेयर बना बनाते है. तो वह एक लेयर में करीब 50 बटेर आसानी से पाल सकते हैं. इसके साथ ही दोनों लेयर मिलाकर करीब 100 बटेर पाल सकते हैं. किसान महीने का 5 हजार रुपए की कमाई की जा सकती है. वहीं एक बटेर पर खर्च 40 रुपये के आसपास आता है. वह 45 दिनों में तैयार हो जाते हैं. इसके साथ ही किसान अपनी जमीन एवं दीवार के अनुसार पिंजड़े की लंबाई,चौड़ाई एवं ऊंचाई घटा बढ़ा सकते हैं. करीब 45 दिनों में एक बटेर एक किलो से डेढ़ किलो तक दाना खाते हैं. अगर कोई किसान छोटे स्तर पर अजोला घास लगाए हुए हैं. तो वह एक समय का दाना भी बचा सकते हैं.

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हैचरी और बटेर पालन एक साथ कैसे करें 

डॉ अनूप कुमार कहते हैं कि बटेर पालन के साथ किसान हैचरी का बिजनेस करना चाहते हैं. यानी वह अंडा से बटेर का चूजा तैयार करना चाहते है. तो वह आसानी से कर सकते है. इसके लिए उन्हें एक इनक्यूबेटर हैचरी मशीन की जरूरत होगी. इस मशीन में अंडा से चूजा तैयार किया जाता है. आगे वह कहते हैं कि इसमें करीब 17 दिन के बाद अंडे से चूजे निकल जाते हैं. इस मशीन से मुर्गी के बच्चों का चूजा तैयार कर सकते हैं. बस उसके लिए करीब 37.5 डिग्री तापमान रखना होता है. इसके साथ ही अधिक जानकारी के लिए किसान को प्रशिक्षण लेना जरूरी है. वहीं बाजार में 20 हजार से लेकर लाख रुपए तक या उससे भी ज्यादा के मशीन मौजूद हैं. किसान अपनी जरूरत के अनुसार मशीन खरीद सकते हैं.

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