
भारत में इस साल सरसों और रेपसीड की खेती 87 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है, लेकिन बढ़ते रकबे के साथ सरसों की फसल पर माहू यानी एफिड नाम के कीट का खतरा भी बढ़ गया है. दिसंबर के आखिरी हफ्ते से जनवरी के दौरान, जब आसमान में बादल छाए रहते हैं या कोहरा और नमी अधिक होती है, तब ये छोटे हरे रंग के कीट सरसों के फूलों और नई फलियों का रस चूसकर फसल को आधा कर देते हैं. आमतौर पर किसान इनसे बचने के लिए महंगे और जहरीले रसायनों का छिड़काव करते हैं. इससे न केवल खेती की लागत बढ़ती है, बल्कि रसायनों के अवशेष हमारे खाने के जरिए शरीर में पहुंचकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं.
रसायनों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए 'स्टिकी ट्रैप' एक बिना केमिकल वाली आधुनिक तकनीक है. स्टिकी ट्रैप दरअसल एक रंगीन प्लास्टिक या कार्डबोर्ड की शीट होती है, जिस पर एक खास चिपचिपा पदार्थ लगा होता है. कीट विज्ञान के अनुसार, हर कीट किसी विशेष रंग की ओर आकर्षित होता है. सरसों का माहू कीट पीले रंग की ओर खिंचा चला आता है. जब किसान अपने खेत में सरसों की फसल से 1-2 फीट की ऊंचाई पर ये पीले स्टिकी ट्रैप लगाते हैं, तो माहू कीट पीले रंग को देखकर उसकी ओर भागते हैं और उस पर लगे गोंद से चिपक कर मर जाते हैं. इस विधि से बिना किसी कीटनाशक के कीटों पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है.
बाजार में तो स्टिकी ट्रैप मिलते ही हैं, लेकिन किसान इसे बहुत कम खर्च में घर पर भी तैयार कर सकते हैं. इसे बनाने के लिए किसी पीली पॉलीथीन या टीन की शीट पर अरंडी (रेड़ी) का तेल या पुराना मोबिल ऑयल लगा दें. एक ट्रैप बनाने में मात्र 15 से 20 रुपये का खर्च आता है. एक एकड़ सरसों की फसल के लिए 10 से 15 स्टिकी ट्रैप काफी होते हैं. ध्यान रहे कि माहू और सफेद मक्खी के लिए पीला ट्रैप इस्तेमाल होता है, जबकि थ्रिप्स जैसे कीटों के लिए नीले रंग का ट्रैप असरदार होता है. इस तकनीक को अपनाकर किसान कीटनाशकों पर होने वाले अपने खर्च को 70 फीसदी तक कम कर सकते हैं.
स्टिकी ट्रैप का इस्तेमाल करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. ट्रैप को हमेशा फसल की ऊपरी सतह से एक-दो फीट ऊपर बांधना चाहिए और हर 20-25 दिन में जब शीट कीटों से भर जाए, तो इसे बदल देना चाहिए. वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि भारत में खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों के अवशेष दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बहुत ज्यादा हैं. हमारे यहां 51% खाद्य सामग्री में रसायनों की मिलावट पाई जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है. इसलिए, स्टिकी ट्रैप जैसी 'इको-फ्रेंडली' तकनीक न केवल पर्यावरण और मिट्टी को बचाती है, बल्कि उपभोक्ताओं को जहरमुक्त शुद्ध भोजन भी उपलब्ध कराती है.