लोगों को अभी महंगे रेट पर खाने के तेल (edible oil) खरीदने पड़ रहे हैं. पिछले कई महीने से इसकी महंगाई बनी हुई है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल महंगे हैं. भारत अपनी खपत का 60 पससेंट हिस्सा आयात करता है. इसलिए, विदेशी बाजारों में जब तेल महंगे (edible oil price hike) होते हैं, तो घरेलू बाजार में भी महंगाई दिखने लगती है. अभी यही हो रहा है. सोयाबीन तेल, पाम तेल और सरसों तेल की महंगाई को देखते हुए किसान इसकी खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. किसानों को लग रहा है कि इस महंगाई का वे लाभ उठा सकते हैं. सरकार भी तिलहन की खेती (oilseed farming) के लिए बढ़ावा दे रही है ताकि आयात की निर्भरता कम हो. इसी कड़ी में एक ऐसी किस्म है जो किसानों को बंपर सरसों की पैदावार दे रही है.
तिलहन से होने वाले फायदे को देखते हुए देश के कई हिस्सों के किसान सोयाबीन, पाम और सरसों उगाने पर ध्यान दे रहे हैं. त्रिपुरा भी इसमें एक है. वैसे तो यहां सरसों की खेती (mustard farming) अधिक होने का रिवाज नहीं. पर किसानों को सरसों में बेहतर संभावनाएं दिख रही हैं. त्रिपुरा में मध्य अक्टूबर से सरसों की खेती शुरू हुई है. इसके बाद सेपहीजाला जिले के बिशालगढ़ क्षेत्र में अब तक किसानों ने 30 एकड़ क्षेत्र में सरसों की खेती की है.
कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, हाल के दशक में त्रिपुरा में इस बार सबसे अधिक सरसों की खेती देखी जा रही है. एक किसान अशीत भट्टाचार्य ने 'नॉर्थ ईस्ट टुडे' से कहा, बाजार में खाद्य तेलों के दाम (edible oil price hike) जिस तरह से बढ़े हैं, उसे देखते हुए लाभ कमाने के लिए कई किसानों ने अपने अधिक से अधिक खेतों में सरसों की खेती (oilseed farming) की है. लोगों को आने वाले समय में सरसों में बेहतर संभावनाएं दिख रही हैं.
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अशीत भट्टाचार्य कहते हैं, सोयाबीन तेल के दाम अभी कम है. इसलिए, किसान सोयाबीन की तुलना में सरसों की खेती को महत्व दे रहे हैं. त्रिपुरा का हिसाब लगाएं तो यहां खाए जाने वाले कुल तेल का 90 फीसद हिस्सा आयात से पूरा होता है. यही वजह है कि खाद्य तेलों के दाम हमेशा बढ़े रहते हैं. किसान इस समस्या के समाधान के लिए तिलहन की खेती (oilseed farming) पर जोर दे रहे हैं. उन्हें लगता है कि सरसों को महंगे रेट पर बेचकर वे अच्छी कमाई कर सकते हैं. साथ ही, उनकी जरूरतें भी पूरी होंगी.
कृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा, त्रिपुरा में स्थानीय स्तर पर तिलहन, खासकर सरसों की खेती (mustard farming) बढ़ी है. हालांकि इसमें बहुत तेजी नहीं है. मौजूदा सीजन में सरसों की बुआई अगर बढ़ी है तो उसकी कई वजहें हैं. एक तो सरसों पहले से महंगी हुई है. दूसरी बात कि खाद अब आसानी से उपलब्ध होती है. तीसरी खास बात सरसों की उन्नत किस्में आने से किसानों को फायदा हुआ है. इन उन्नत किस्मों में एमपी 27 और एमपी 25 वेरायटी हैं. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से तिलहन खेती के लिए मिल रही सहायता राशि ने भी किसानों को बड़ी मदद दी है.
कृषि मंत्रालय ने तिलहन के लिए एक रोडमैप बनाया है जिसमें 2024-25 तक तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाना है और खाद्य तेलों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाना है. कृषि मंत्रालय इसके लिए एनएफएसएम सरसों और आरजीपी प्रोजेक्ट चला रहा है. इस स्कीम के अंतर्गत किसानों को सरसों के बीज और खाद दिए जा रहे हैं. इच्छुक किसान सरसों के बीज और खाद लेकर फसल उगा सकते हैं जिससे सरसों का रकबा बढ़ रहा है. मौजूदा समय में किसानों को सरसों से फायदा हो रहा है.
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कृषि मंत्रालय के जॉइंट डायरेक्टर स्तर के एक अधिकारी कहते हैं, किसानों को लंबी अवधि वाली, लेकिन अधिक उपज देने वाली सरसों की किस्म उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसमें त्रिपुरा में एमपी 27 किस्म बहुत मददगार है. किसान एक एकड़ खेत में सरसों की एमपी 27 किस्म उगाकर 62,000 रुपये तक की कमाई कर सकते हैं. खेती का खर्च लगभग 25,000 रुपये आएगा. इस तरह एक एकड़ में सरसों की खेती से किसान को 37,000 रुपये का मुनाफा होगा. वहीं, किसान एक कानी में 7,000 रुपये का लाभ पा सकते हैं.