किसी भी फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए केवल बुवाई या रोपाई कर देने से अच्छी उपज नहीं ली जा सकती. रोपाई के बाद खाद और उर्वरक,सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन पर भी ध्यान देने कीजरूरत होती है इसी तरह बासमती धान कब कैसै खाद और उर्वरक,सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन करे बासमती निर्यात विकास फाउंडेशन (बीईडीएफ) मेरठ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ रितेश शर्मा ने किसानों को सुझाव दिया बासमती धान की खेती में कुछ खास टिप्स अपनाकर किसान अच्छी गुणवत्ता और अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं.
डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती धान की खेती करने वाले किसानों को सुझाव है कि जिस खेत में धान की रोपाई करने जा रहे हैं, उसमें लेजर लेवलर द्वारा समतल करना चाहिए और खेत का आकार छोटा रखना चाहिए. इससे सिंचाई के लिए आवश्यक पानी की मात्रा में बचत होती है. बासमती धान की खेती के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली चिकनी मिट्टी उपयुक्त होती है. धान की रोपाई के पहले धान की खेती के लिए 2 से 3 बार जुताई करनी चाहिए. साथ ही, मजबूत मेंड़ भी बनानी चाहिए. हरी खाद की बुवाई जरूर करें, इसके लिए ढैंचा, सनई, लोबिया या मूंग की फसल की बुवाई करें. बासमती धान की रोपाई से पहले खेत में पानी भर कर हरी खाद को पडलिंग के द्वारा खेत में पलट दें. इससे जुताई की लागत भी कम की जा सकती है.
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रोपाई के लिए 20 से 25 दिन की पौध का उपयोग करें. पूसा बासमती 1509 की 18-22 दिन की पौध होने पर रोपाई कर देनी चाहिए. पौध को उपचारित करने के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम प्रति लीटर पानी की दर से घोल में कम से कम एक घंटे के लिए डुबो कर रखें. रोपाई से पहले पौध का ऊपरी भाग 3 से 4 सेंटीमीटर तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए. पौध की रोपाई हमेशा पंक्तियों में करें. 2 से 3 मीटर रोपाई के बाद 40 सेंटीमीटर के रास्ते छोड़ दें. इससे हवा और सूर्य का प्रकाश मिलने के कारण कीटों और बीमारियों का प्रकोप कम होता है और उपज में वृद्धि होती है. रोपाई करते समय पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें. पौध की रोपाई 2 से 3 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरी नहीं करनी चाहिए. नाली, मेंड़ों, खेतों और उनके आसपास के क्षेत्र को सदा साफ रखें.
बासमती धान की परंपरागत प्रजातियों में अपेक्षाकृत कम नाइट्रोजन की जरूरत होती है. उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण और फसल की मांग के आधार पर करें. पूरी फसल के दौरान ऊंची बढ़ने वाली प्रजातियों के लिए प्रति हेक्टेयर 100 कि.ग्रा. डी.ए.पी., 70 कि.ग्रा. पोटाश और 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट पर्याप्त होते हैं. बौनी किस्मों के लिए यूरिया 140 कि.ग्रा. उपयोग करें. डी.ए.पी., पोटाश और जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा अंतिम पडलिंग के समय प्रयोग करें. रोपाई के समय 2-3 सेंटीमीटर जल पर्याप्त होता है. खेतों में रोपाई के बाद दरार बनने से पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए. बाद में जल स्तर धीरे-धीरे बढ़ा कर 3-5 सेंटीमीटर तक कर दें और इसे पहले 30 दिन तक बनाए रखें. इससे खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलेगी. बाली निकलने और दाने में दूध बनने की दशा में पानी खेत में भरा रखें.
बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित पाटा तकनीक का प्रयोग करें. इससे धान में अधिक फुटाव होता है. भूमि में वायु संचार बढ़ता है, जड़ों का विकास अच्छा होता है, पानी की बचत होती है और कीटों से बचाव होता है. खेत में हल्का पाटा या लकड़ी का लट्ठा जिसका वजन 12-18 किलोग्राम हो, को पानी भरकर चलाएं. खरपतवारों के नियंत्रण के लिए मजदूर उपलब्ध होने पर धान की दो बार क्रमशः 20 और 40 दिन पर निराई करें. रासायनिक नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर 06 कि.ग्रा. सक्रिय पदार्थ अथवा प्रीटिलाक्लोर 50 ई.सी. 500 मि.ली. अथवा आक्सादाजिल 80% WP 40 ग्राम सक्रिय पदार्थ का प्रयोग प्रति एकड़ रोपाई के 1-3 दिन के अंदर करें.
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