
देश के लगभग सभी राज्यों में सरसों की बुवाई को एक महीने से अधिक समय हो गया है. इस बीच सरसों की फसल के ऊपर कई कीट और रोग का प्रकोप और असर भी देखने को मिल रहा है. दरअसल, कई राज्यों में ठंड और कोहरे के कारण सरसों की फसल पर कीट का भयंकर प्रकोप बढ़ते जा रहा है. इससे कहीं ना कहीं सरसों की फसल की पैदावार को लेकर किसान चिंतित नजर आ रहे हैं क्योंकि इन कीटों से उपज में काफी कमी आ सकती है और किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ सकता है. इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि कीटों की पहचान करना. ऐसे में आज हम आपको बताएंगे इस महीने सरसों की फसल किन कीटों और रोगों का खतरा बढ़ रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं रोकथाम के उपाय.
दिसंबर का महीना आते ही सरसों की फसल में व्हाइट रस्ट का खतरा मंडराने लगा है. इस रोग को सफेद रतुआ भी कहते हैं. ये सरसों में फंगस के कारण होने वाली एक बीमारी है. इसके लक्षण शुरू में पत्तों पर नजर आते हैं. पत्तों के निचले भाग में सफेद धब्बे होने लगते हैं. उसके बाद सफेद पाउडर सा बन जाता है, जो फसलों के लिए काफी हानिकारक होता है. इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर समय रहते उपाय कर नुकसान से बचा जा सकता है.
तापमान में हो रहे उतार-चढ़ाव को देखते हुए किसानों को अपनी फसलों की निगरानी रखनी चाहिए. ऐसे में सरसों की फसलों में सफेद रतुआ के लक्षण दिखते ही 600 से 800 ग्राम मैंकोजेब को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. किसान ये छिड़काव 15 दिनों के अंतर पर 2 से 3 बार करें.
कई राज्यों में आजकल वातावरण में अधिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है. कभी बादल तो कभी कुहासे से सरसों की फसल में नमी का प्रतिशत बढ़ने लगा है. ऐसे बदलते जलवायु परिवर्तन की स्थिति में सरसों की फसल में माहू कीट का प्रकोप काफी देखा जा रहा है. माहू बहुत छोटा सा हरे रंग का एक कीट होता है. ये कीट सरसों के कोमल फूलों और नवीन फलियों का रस चूस कर काफी नुकसान पहुंचाता है.
किसान सरसों की फसल को माहू कीट से बचाने के लिए प्रभावित पौधों को तुरंत तोड़कर नष्ट कर दें. इसके अलावा दो प्रतिशत नीम के तेल का स्प्रे माहू कीट को नियंत्रित करने में सहायक होता है. साथ ही किसान मेटासिस्टाक्स या अन्य उपयुक्त कीटनाशकों का समय पर उपयोग करें. वहीं, कोहरे और अत्यधिक नमी के समय विशेष सतर्कता बरतें.
सरसों की फसल के लिए लाही कीट (Aphid) एक गंभीर खतरा है. ये छोटे भूरे या काले रंग के कीट पौधों का रस चूसकर उनके विकास को बाधित करते हैं, जब लाही कीट पौधों का रस चूसते हैं, तो पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे मुरझाने लगती है और सिकुड़ जाती हैं. इससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है और पौधे कमजोर हो जाते हैं. इससे फलियों में दाने नहीं बन पाते हैं, जिससे फसल का उत्पादन भारी मात्रा में कम हो जाता है.
फसलों को लाही कीट से बचाने के लिए 5-6 पीली स्टिकी ट्रैप प्रति एकड़ खेत में लगाना चाहिए. ये ट्रैप कीटों को आकर्षित करके फंसा लेते हैं, जिससे उनकी संख्या में कमी आती है. इसके अलावा खेत में खरपतवार को समय-समय पर हटाएं, ताकि लाही कीट को शरण न मिल सके और इनका प्रकोप कम हो. साथ ही जब सरसों की फसल 40-45 दिन की हो और लाही कीटों का प्रकोप दिखाई दे तो, क्लोरोपायरीफॉस 20% EC 200 मिलीलीटर दवा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे के माध्यम से छिड़काव करें.