इस साल देश के अधिकांश राज्यों में सामान्य से अधिक बरसात हुई है. अधिक बारिश के कारण कई नदी-नाले उफान में देखने को मिले हैं जिसे काफी नुकसान भी देखने को मिला है. संसाधनों के नुकसान के साथ ही किसानों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है. कश्मी, हिमाचल और पंजाब सहित देश के कई राज्यों में बाढ़ के हालात बने जिससे किसानों की फसलें डूब गई हैं. हालांकि बाढ़ के बाद भी किसानों की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं. बाढ़ के बाद फसलों में कीट और कई तरह के रोग का खतरा देखने को मिल रहा है. आइए बचाव के उपाय जान लेते हैं.
बाढ़ आने के साथ ही कई तरह की समस्याएं भी लेकर आती है. ये फसलों को पूरी तरह नुकसान पहुंचाने के बाद आने वाली फसलों के लिए भी मुश्किल पैदा करती है. बाढ़ का असर इतना होता है कि अगली फसलों में भी कीट और रोग का खतरा बना रहता है. साथ ही बाढ़ के साथ मिट्टी, रेत और अन्य खनिज बहकर आने से मिट्टी में गाद जम जाती है जिससे मिट्टी की गुणवत्ता कम हो जाती है. बाढ़ के बाद खेतों में पानी भरने या नमी अधिक रहने से कीट और रोगों का खतरा बढ़ने के साथ ही पौधों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं और फसलों की प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है.
बाढ़ के बाद फसलों में गाद और खरपतवार का भी खतरा बढ़ जाता है. खरपतवार मिट्टी में जहर की तरह काम करते हैं जिससे उनकी उपजाऊ क्षमता प्रभावित होती है और फसलों के पौधों को दबाने का काम करते हैं. आपको बता देते हैं कि अधिक नमी के चलते तना छेदक, तना मक्खी, पत्ती लपेटक, सफेद मक्खी और माहू जैसे कीट अधिक तेजी से पनपते हैं.
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बाढ़ के बाद फसल में कई तरह के रोग और कीटों का खतरा बढ़ जाता है. आइए जान लेते हैं कि कि फसलों को बचाने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.