कृषि क्षेत्र में मौसम सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. मौसम अनुकूल है तो किसानों की किस्मत चमक उठती है. वहीं प्रतिकूल रहने पर भारी नुकसान भी होता है, लेकिन क्लाइमेंट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों ने खेती के सामने कई मुश्किलें खड़ी की हैं. पिछले कुछ सालों से बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि फसलाें को बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचा रही हैं. ऐसा ही कुछ बीते खरीफ सीजन में भी हुआ था, जिसमें बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने फसलों को बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचाया था. इस चुनौती से निपटने के लिए यूपी के कृषि विज्ञान केंद्राें में इस रबी सीजन एक ट्रायल किया गया था, जिसमें क्लाइमेंट चेंज की इन चुनौतियों को प्राकृतिक खेती ने मात दी है.
2022 में खरीफ फसल जब तैयार हुई तो बारिश और ओलावृष्टि से किसानों को उत्तर प्रदेश में बड़ा नुकसान हुआ. इस नुकसान की भरपाई के लिए फसल बीमा के लाभार्थी को तो फायदा मिला, लेकिन सामान्य किसान को कोई मुआवजा नहीं मिला. ऐसे में रबी सीजन की फसलों को मौसम की मार से बचाने के लिए एक नया प्रयोग शुरू किया गया, जिसके तहत यूपी के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों पर इस रबी सीजन प्राकृतिक, ऑर्गेनिक और रासायनिक उर्वरक से गेहूं की खेती की गई. जिसमें प्राकृतिक तरीके से उगाई गई गेहूं की फसल बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि पर भारी पड़ी है.
प्रयोग के तौर पर यूपी के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों में तीन तरह से गेहूं की खेती की गई थी. जिसमें प्राकृतिक तरीके के साथ ही जैविक विधि और रासायनिक उर्वरक के माध्यम से गेहूं बोया गया था. बीते दिनों हुई बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से जहां रासायनिक खाद से बोई गई फसल को 20 से 25 फ़ीसदी तक नुकसान पहुंचा है, जबकि प्राकृतिक और ऑर्गेनिक विधि से बोई गई फसलों को सबसे कम नुकसान हुआ है.
इस संबंध में लखनऊ कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अखिलेश दुबे ने बताया की इन फसलों पर मौसम का सबसे कम प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. वहीं लखनऊ मंडल के संयुक्त कृषि निदेशक डीपी सिंह ने बताया की प्राकृतिक, ऑर्गेनिक के साथ-साथ सीड ड्रिल से बोई गई फसलें बारिश और ओलावृष्टि से खेत में नहीं गिरी है. इसलिए इन फसलों पर मौसम का कोई खास प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है.
यूपी के विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों पर प्राकृतिक खेती को लेकर भले ही इस साल ट्रायल किया गया हो, लेकिन रायबरेली के किसान प्राकृतिक खेती के सहारे बीते 5 सालों से मौसम की चुनौतियों को मात दे रहे हैं. प्राकृतिक विधि से खेती करने वाले रायबरेली के किसान जेपी सिंह ने बताया क्योंकि बीते 5 सालों से प्राकृतिक विधि से खेती कर रहे हैं. वहीं बारिश और ओलावृष्टि से उनकी फसलों को बिल्कुल भी नुकसान नहीं हुआ है. फसल पूरी मजबूती से खेतों में अभी खड़ी है.
ये भी पढ़ें-कागजों में मृत घोषित, अब खुद को जिंदा साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा किसान
उत्तर प्रदेश के कृषि विज्ञान केंद्र में हर वर्ष रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से गेहूं की फसल पैदा होती थी, लेकिन इस बार प्राकृतिक और ऑर्गेनिक विधि से भी फसल बोई गई हैं. अब समान क्षेत्रफल में बोई गई फसलों से उत्पादन लागत और फसल की गुणवत्ता को मापने का काम किया जाएगा. वहीं किसानों के सामने एक तस्वीर भी प्रस्तुत की जाएगी. प्रदेश की सरकार के द्वारा प्राकृतिक विधि से खेती करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. वहीं अगर सब कुछ अच्छा रहा तो किसानों को यह यकीन हो जाएगा कि प्राकृतिक विधि से बोई गई फसलें मौसम के प्रतिकूल प्रभाव के बावजूद भी कम लागत में अच्छा उत्पादन दे सकती हैं.
प्राकृतिक खेती को रासायनमुक्त खेती कहा जा सकता है. प्राकृतिक खेती में फसलों को उपजाने के लिए किसी भी तरह के रासायनों का प्रयोग वर्जित है. खेती में पूरी तरह से प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं का ही प्रयाेग किया जाता है. इसमें उर्वरक के तौर पर गाय के गाेबर से बनी खाद का प्रयोग किया जाता है.