
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने गन्ना किसानों के लिए एक नई तकनीक विकसित की है जो खेती को कम मेहनत और ज्यादा उत्पादन वाला बना देगी. ICAR-सुगरकेन ब्रीडिंग इंस्टिट्यूट, कोयंबटूर और ICAR-सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग, रीजनल सेंटर, कोयंबटूर ने मिलकर एक “मिनी ट्रैक्टर ऑपरेटेड शुगरकेन सेटलिंग ट्रांसप्लांटर” तैयार किया है.
यह मशीन छोटे और मध्यम आकार के खेतों के लिए डिजाइन की गई है और इसका उद्देश्य है — रोपाई प्रक्रिया को ऑटोमेटिक और कुशल बनाना. इस मशीन की कई खासियत है जो खेती के काम को आसान और कम खर्च वाला बनाएगी.
मिनी ट्रैक्टर से जुड़ने वाली यह मशीन खेत में एक समान दूरी पर गन्ने के सेटल्स (क्लोनिंग पौधों) को लगाती है. इससे मजदूरों पर निर्भरता घटती है और उपज बढ़ाने में मदद मिलती है. मशीन के काम करने की क्षमता छोटे किसानों के लिए एक बड़ी राहत मानी जा रही है, जो मजदूरों की कमी और बढ़ती मजदूरी लागत से जूझ रहे हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक से गन्ने की पैदावार और क्वालिटी दोनों में सुधार होगा. जहां पहले गन्ने की रोपाई में कई मजदूर और लंबा समय लगता था, वहीं अब किसान कम लागत और समय में अधिक क्षेत्र में रोपाई कर सकेंगे. यह मशीन खास तौर पर उन राज्यों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है जहां गन्ना एक प्रमुख नकदी फसल है — जैसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक.
ICAR की यह नई तकनीक भारतीय गन्ना किसानों के लिए खेती का तरीका बदल सकती है. कम मेहनत, कम पानी, कम लागत और अधिक उत्पादन — यही इस मिनी ट्रैक्टर आधारित शुगरकेन ट्रांसप्लांटर की असली खासियत बताई जा रही है. यह मशीन गन्ना के ऐसे बीजों की बुवाई करती है जो गन्ने के बड चिप्स और सिंगल बड सेट से तैयार किए जाते हैं. गन्ना की खेती का यह नया तरीका है.
बाजार में गन्ना बोने की परंपरागत मशीनें भी आती हैं, मगर उनसे ये ट्रांसप्लांटर कई मायनों में अलग और खास है. पुरानी मशीनों से प्रति हेक्टेयर 8-10 टन बीज और उससे जुड़े सामानों की खपत होती है. पुरानी मशीनों से खेत में गन्ने के अधिक बीज लगते हैं और उसमें लगने वाले बीजों की कीमत भी अधिक होती है. इन दोनों को जोड़ दें तो किसान का गन्ना की खेती में 20 परसेंट तक खर्च इसी पर आ जाता है जबकि नई ट्रांसप्लांटर मशीन से किसानों का खर्च बहुत बचता है.