फसलों के बीज कोटिंग में मदद करेगी ये बायोपॉलीमर तकनीक, IIOR ने किया लॉन्च

फसलों के बीज कोटिंग में मदद करेगी ये बायोपॉलीमर तकनीक, IIOR ने किया लॉन्च

बीज कोटिंग एक टाइम-रिलीज़ कैप्सूल की तरह काम करती है, जो बीज के अंकुरित होने और बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे सक्रिय तत्वों को रिलीज करती है. साथ ही ये भी आश्वस्त करता है कि पौधे को सही समय पर आवश्यक पोषक तत्व और सुरक्षा मिले.

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क‍िसान तक
  • Noida,
  • Nov 30, 2024,
  • Updated Nov 30, 2024, 12:15 PM IST

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक शाखा, भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान (IIOR) ने निजी कंपनियों को एक पेटेंट बायोपॉलीमर तकनीक जारी की है. इस तकनीक में फसलों के बीज संरक्षण में क्रांति लाने और फसल की पैदावार में बहुत अधिक बढ़ोतरी करने की क्षमता है. केएसवीपी चंद्रिका और आर डी प्रसाद द्वारा विकसित यह तकनीक, बीजों को कोट करने के लिए एक विशेष बायोपॉलीमर का उपयोग करती है, जो लाभकारी सूक्ष्मजीवों, पोषक तत्वों और सुरक्षित रसायनों को सीधे पौधे तक पहुंचाती है.

बीज कोटिंग कैप्सूल की तरह काम

यह बीज कोटिंग एक टाइम-रिलीज कैप्सूल की तरह काम करती है, जो बीज के अंकुरित होने और बढ़ने के साथ-साथ धीरे-धीरे सक्रिय तत्वों को रिलीज करती है. साथ ही ये भी आश्वस्त करता है कि पौधे को सही समय पर आवश्यक पोषक तत्व और सुरक्षा मिले, जिससे इसकी वृद्धि क्षमता के प्रति लचीलापन अधिक हो.

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फसम के पैदावार में होगी बढ़ोतरी

इस बायोपॉलीमर तकनीक से आवश्यक पोषक तत्व ले करके और कीटों और बीमारियों से सुरक्षा करके फसल की पैदावार में 25-30 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है. यह तकनीक जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करने की पौधे की क्षमता को भी बढ़ाती है, जिससे किसानों को बढ़ती पर्यावरण की चुनौतियों का सामना करने के लिए एक स्थायी समाधान मिलेगा.

बीज कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन

IIOR के प्रवक्ता ने कहा कि एक ही कोटिंग में कई इनपुट को मिलाकर, किसान संभावित रूप से आवश्यक चीजों की संख्या को कम कर सकते हैं, जिससे किसानों के लागत में कमी आएगी. IIOR ने दो निजी बीज कंपनियों के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो पेटेंट बायोपॉलीमर तकनीक को व्यापक प्रसार और व्यवसायीकरण के लिए उद्योग को प्रभावी रूप से हस्तांतरित करता है. इस साझेदारी का उद्देश्य देश भर के किसानों के लिए तकनीक को सुलभ बनाना है, जिससे कृषि क्षेत्र के विकास में योगदान मिलेगा. संस्थान ने एक विविध जर्मप्लाज्म संग्रह बनाया, जिसमें अरंडी के लिए 3,289, सूरजमुखी के लिए 3,624, कुसुम के लिए 7,027, तिल के लिए 1,700, अलसी के लिए 2,885 और नाइजर के लिए 3,524 शामिल हैं.

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