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सरसों से भी ज्यादा तेल देता है तारामीरा, बंजर जमीन में भी कर सकते हैं खेती

सरसों से भी ज्यादा तेल देता है तारामीरा, बंजर जमीन में भी कर सकते हैं खेती

तारामीरा की बड़ी खासियत है कि इसे बंजर जैसी जमीन में भी उगा सकते हैं. जिस जमीन पर कोई फसल नहीं होती, उसमें तारामीरा के बीज छिड़क कर उपज ली जा सकती है. इसे सभी क्षेत्रों में पैदा किया जा सकता है. इसको उपजाऊ और अनुपयोगी जमीन पर भी बोया जा सकता है. इसमें तेल की मात्रा लगभग 35 प्रतिशत पाई जाती है.

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तारामीरा का खाद्य तेल में करें इस्तेमाल तारामीरा का खाद्य तेल में करें इस्तेमाल

सरसों तेल की बढ़ती महंगाई को देखते हुए ऐसी तिलहन फसलों की खेती पर जोर दिया जा रहा है जो इसकी कमी को दूर कर सकें. इसी में एक फसल है तारामीरा जो सरसों की तरह होती है और पेराई के बाद तेल देती है. अच्छी बात ये है कि इसकी वैरायटी अधिक तेल भी देती है. इसलिए, किसान इस किस्म की खेती करें तो उन्हें कमाई मिलने के साथ तिलहन की समस्या भी दूर होगी. साथ ही महंगे तेल से भी छुटकारा मिल जाएगा. आइए सरसों फैमिली की इस खास फसल के बारे में जान लेते हैं.

तारामीरा की एक और बड़ी खासियत है कि इसे बंजर जैसी जमीन में भी उगा सकते हैं. जिस जमीन पर कोई फसल नहीं होती, उसमें तारामीरा के बीज छिड़क कर उपज ली जा सकती है. इसे सभी क्षेत्रों में पैदा किया जा सकता है. इसको उपजाऊ और अनुपयोगी जमीन पर भी बोया जा सकता है. इसमें तेल की मात्रा लगभग 35 प्रतिशत पाई जाती है.

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इसकी खास किस्मों की बात करें तो एईएस-1, एईएस-2, एईएस-3, एईएस-4 और आरएमटी-314 हैं. इसमें आरएमटी-314 को सबसे उपयुक्त किस्म माना जाता है. यह बारानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. इसकी औसत उपज 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और पकने की अवधि 130-140 दिन है. इसमें 36.9 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है. इसके हजार दानों का वजन 3-5 ग्राम और इसकी शाखाएं फैली हुई होती हैं.

कैसे करें इसकी खेती

तारामीरा के लिए हल्की दोमट मिट्टी अधिक अच्छी होती है. अम्लीय और ज्यादा क्षारीय जमीन इसके लिए बिल्कुल भी उपयोगी नहीं है. तारामीरा की खेती अधिकांशतः बारानी क्षेत्रों में जहां अन्य फसल सफलतापूर्वक पैदा नहीं की जा सकती हो, वहां की जा सकती है. खरीफ की चारे, उड़द, मूंग, चंवला, मक्का, ज्वार आदि की फसल लेने के बाद यदि नमी हो तो एक हल्की जुताई करके सफलतापूर्वक इसे बोया जा सकता है. जहां तक संभव हो बारिश के दिनों में तारामीरा की बुवाई के लिए खेत खाली नहीं छोड़ना चाहिए.

दीमक से बचाव जरूरी

तारामीरा फसल में दीमक का अटैक अधिक होता है जिसके लिए समय रहते बचाव जरूरी है. दीमक और जमीन के अन्य कीड़ों की रोकथाम के लिए बुवाई से पहले जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खेत में बिखेर कर जुताई करनी चाहिए.

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बुवाई में इन बातों पर करें गौर

बुवाई में कुछ खास बातों पर ध्यान देना जरूरी होता है. बारानी क्षेत्र में तारामीरा की बुवाई का समय मिट्टी की नमी और तापमान पर निर्भर करता है. फसल में 30 किलो नाइट्रोजन और 15 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. उर्वरकों को बुवाई के समय ही देना चाहिए. अंतिम जुताई के समय 250 किलो जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिलाएं. जहां सिंचाई के साधन उपलब्ध हों, वहां पहली सिंचाई 40 से 50 दिन में, फूल आने से पहले करें. उसके बाद जरूरत पड़ने पर दूसरी सिंचाई दाना बनते समय करें.

इन कीट-रोगों से सावधान

तारामीरा पर मोयला कीट का हमला होता है. इस कीट के लगते ही मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत या कार्बेरिल 5 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर भुरकाव करें. या मैलाथियान 50 ईसी या मिथाइल डिमेटोन 25 ईसी सवा लीटर या डायमिथोएट 30 ईसी 875 मिली या कार्बोरिल 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण ढाई किलोग्राम का पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

सफेद रोली, झुलसा और तुलासिता जेसै रोगों के लक्षण दिखाई देने पर डेढ़ किलो मैन्कोजेब या जाईनेब का पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. यदि प्रकोप ज्यादा हो तो यह छिड़काव 20 दिन के अंतर पर दोहराएं. फसल में जब पत्ते झड़ जाएं और फलियां पीली पड़ने लगें तो फसल काट लेना चाहिए वर्ना कटाई में देरी होने पर दाने खेत में झड़ जाने की आशंका रहती है.