स्मार्ट फार्मिंग की जब बात होती है तो उसमें एग्रीकल्चरल ड्रोन के बढ़ते इस्तेमाल और फायदों के बारे में भी चर्चा जरूरी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि साल 2030 तक विश्व में इंडिया ड्रोन इंडस्ट्री का हब बन जाएगा. साल 2024-25 में एग्रीकल्चरल ड्रोन की इंडस्ट्री करीब 60 अरब रुपये की होगी जो आने वाले टाइम में बहुत तेजी से बढेगी. आंकड़ों के मुताबिक हर राज्य में ( नॉर्थ ईस्ट के राज्यों को छोड़कर) करीब 50 हजार से 100000 एकड़ एरिया स्प्रे ड्रोन के लिए तय किया गया है. इस काम के लिए करीब 1 लाख ड्रोन की और 2 लाख ड्रोन पायलट की जरूरत होगी. हालांकि फिलहाल करीब सिर्फ 10 हजार सर्टिफाइड एग्रीकल्चरल ड्रोन बन रहे हैं ऐसे में आने वाले टाइम में इस इंडस्ट्री में ग्रोथ की बहुत संभावनाएं हैं.
एग्रीकल्चरल ड्रोन कौन से होते हैं, ये देश की खेती के लिए कितने उपयुक्त हैं और इनके प्रयोग में क्या मुश्किलें आती हैं इस बारे में किसान तक ने Marut Drone के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर संजीव कश्यप से बात की. उन्होंने बताया कि एग्रीकल्चरल ड्रोन में भी दो तरह के ड्रोन हैं, एक जो DGCA से अप्रूव्ड हैं और दूसरा जो अप्रूव्ड नहीं है. DGCA से अप्रूव्ड एग्रीकल्चरल ड्रोन लीगल केटेगरी में आते हैं क्योंकि ये सर्टिफाइड होते हैं. ड्रोन की कीमत उसकी तकनीक और बैटरी पर निर्भर करती है, जैसे किसी ड्रोन में रडार फीचर है तो उसकी कीमत ज्यादा होगी, या किसी ड्रोन के पास सेटेलाइट लाइसेंस हो उसकी कीमत ज्यादा हो सकती है. इनकी कीमत 4.5 लाख रुपये से लेकर 12 लाख रुपये तक हो सकती है. इसमें भी एक छोटे ड्रोन की केटेगरी होती है जो वजन के मुताबिक 4 से 25 किलोग्राम तक के हो सकते हैं. इसमें ड्रोन के साथ बैटरी, लोड सबका वजन शामिल है. दूसरी केटेगरी मीडियम एग्रीकल्चरल ड्रोन है जिसमें 25 किलोग्राम से ज्यादा और 150 किलोग्राम से कम तक के ड्रोन शामिल हैं.
ड्रोन का सबसे बड़ा फायदा यही है कि जहां किसान काम नहीं कर सकता, वहां ड्रोन की मदद से खेती के काम हो सकते हैं. खेतों में कीटनाशकों और दूसरे केमिकल का छिड़काव किसी इंसान के लिए स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां पैदा कर सकता है. जबकि स्प्रेयिंग ड्रोन की मदद से कम समय में छिड़काव किया जा सकता है.खेती में बढ़ती लेबर कॉस्ट को कम करने में भी ड्रोन मददगार हैं और ये ऑटोमेशन को बढ़ावा दे रहे हैं.
ड्रोन कंपनी Bharatrohan के फाउंडर अमनदीप का कहना है कि ज्यादातर किसानों को शुरूआत में फसल में लगने वाली बीमारी का पता नहीं चल पाता और जब तक पता चलता है वो रोग फसल में फैल चुका होता है. लेकिन ड्रोन की मदद से ये संभव है शुरूआत में ही फसल में लगने वाले रोगों की पहचान की जा सकती है और उसे रोका जा सकता है. इस तकनीक में सेटेलाइट इमेज का भी इस्तेमाल किया जा सकता है और उससे एक बड़ा एरिया एक साथ कवर किया जा सकता है. लेकिन अगर रिजॉल्यूशन की बात करें तो एक पौधे या सिर्फ खेत के लेवल पर डेटा नहीं मिलेगा क्योंकि सेटेलाइट का एल्टीट्यूड बहुत होता है. यहां ड्रोन तकनीक और ज्यादा स्पेसिफिक है और फ्लेक्सिबल है क्योंकि ड्रोन 40-50 मीटर की ऊंचाई पर उड़ते हैं जिससे ज्यादा साफ पिक्चर पता चलती है और फसल की पूरी डिटेल पता चल जाती है कि किस प्लांट में किस तरह का बैक्टीरियल या फंगल इंफेक्शन हो रहा है.
इसका दूसरा फायदा ये है कि क्योंकि फसल को खराब होने से पहले ही रोक दिया तो एग्री इनपुट यानी पेस्टीसाइड की जरूरत किसान को कम होती है. कम पेस्टीसाइड खरीदने पर लागत कम होगी और मुनाफा बढ़ेगा, इसके बाद जब फसल कटकर आएगी तो उसमें केमिकल भी कम होंगे जिससे फसल की क्वालिटी भी बेहतर होगी और कीमत भी अच्छी मिलेगी. इसका एक और फायदा पर्यावरण के लिए भी है, कम केमिकल के इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत खराब नहीं होगी.
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प्रिसिजन एग्रीकल्चर में फसल को ड्रोन और सेटेलाइट की मदद से देखा और अवलोकन किया जाता है, उसकी हेल्थ, ग्रोथ और बीमारी के बारे में सही डेटा इकठ्ठा किया जाता है और जिस फसल को या खेत के जिस हिस्से को जितनी दवा, खाद या कीटनाशक, पानी की जरूरत है और उसी हिसाब से दिया जाता है ताकि संसाधनों का कम दुरुपयोग हो, खर्च कम हो और फसल भी बढ़िया हो और इस तरह की खेती में भी ड्रोन उपयोगी हैं.
किसान से ज्यादा ये समझना जरूरी है कि किस तरह की फसलों के लिए ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है. हॉर्टीकल्चर या जो युवा किसान कैश क्रॉप उगाना चाहते हैं वो ड्रोन का इस्तेमाल करने में रुचि ले रहे हैं चाहे वो छोटे किसान ही क्यों ना हों. दरअसल जो हाई वैल्यू क्रॉप हैं उनकी क्वालिटी और पैदावार अगर बढ़ रही है तो किसान ड्रोन का इस्तेमाल करेंगे. Bharatrohan के फाउंडर अमनदीप ने खुद 42 किसानों के साथ काम करना शुरू किया था और अब ये नंबर 19 हजार किसानों से ऊपर पहुंच गया है. जानिए ड्रोन खरीदने पर कितनी सब्सिडी मिलती है.