Pigeon pea: अरहर किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी! अब 'बांझपन रोग' से नहीं होगी फसल बर्बाद, मिला अचूक समाधान

Pigeon pea: अरहर किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी! अब 'बांझपन रोग' से नहीं होगी फसल बर्बाद, मिला अचूक समाधान

भारतीय अरहर किसानों को 'बांझपन मोज़ेक रोग' (SMD) से होने वाले भारी नुकसान से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक बड़ी सफलता हासिल की है. इक्रीसैट और ICAR के शोधकर्ताओं ने इस बीमारी से लड़ने वाले एक अचूक जीन (Ccsmd04) की खोज की है. यह जीन 'आशा' नामक किस्म में पाया गया है. इस खोज से अब अरहर की रोग-प्रतिरोधी किस्में बनाना संभव होगा, जिससे किसानों की फसल सुरक्षित रहेगी और पैदावार बढ़ेगी.

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क‍िसान तक
  • New Delhi,
  • Aug 13, 2025,
  • Updated Aug 13, 2025, 4:30 PM IST

अरहर दाल लगभग हर भारतीय घर की थाली का एक अहम हिस्सा है. लेकिन इसे उगाने वाले किसानों को अक्सर बांझपन मोज़ेक रोग (SMD) नामक एक विनाशकारी बीमारी का सामना करना पड़ता है, जो उनकी 90 फीसदी तक की फसल को बर्बाद कर सकती है. यह बीमारी पौधे को बांझ बना देती है, जिससे उसमें फूल और फलियां नहीं लगतीं. लेकिन अब, दशकों के शोध के बाद, वैज्ञानिकों ने एक ऐसी खोज की है, जो किसानों के लिए एक नई सुबह लेकर आई है. इक्रीसैट (ICRISAT) और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक ऐसे 'सुरक्षा जीन' का पता लगाया है, जो अरहर के पौधे को इस बीमारी से लड़ने की अभेद्य शक्ति देता है.

जीन बनेगा किसानों का 'रक्षा कवच'

वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक जीनोमिक्स तकनीक का उपयोग करके इस जीन को अरहर की एक प्रसिद्ध और रोग-प्रतिरोधी किस्म 'आशा' (ICPL 87119) के अंदर Ccsmd04 नामक एक जीन खोजा है. यह जीन पौधे के लिए एक प्राकृतिक रक्षा कवच की तरह काम करता है, जो उसे SMD बीमारी के हमले से बचाता है. इक्रीसैट के महानिदेशक, डॉ. हिमांशु पाठक ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताते हुए कहा, "यह खोज अरहर की खेती के लिए मीलों का पत्थर है. इस जीन की मदद से हम जल्दी ही ऐसी उन्नत किस्में विकसित कर पाएंगे, जो इस गंभीर बीमारी के सामने मजबूती से टिकी रहेंगी."

वैज्ञानिक 1975 से इस बीमारी का तोड़ ढूंढने में लगे थे. हालांकि पहले भी कुछ प्रतिरोधी किस्में बनाई गईं, लेकिन वे खेतों में पूरी तरह सफल नहीं हो सकीं. इसका कारण यह था कि बीमारी फैलाने वाले वायरस और इसके वाहक (छोटे कीड़े) लगातार अपना रूप बदल लेते थे, जिससे पुरानी किस्में बेअसर हो जाती थीं. यह नई खोज सीधे उस जेनेटिक कोड को उजागर करती है जो पौधे को बीमारी से लड़ने की असली ताकत देता है. यह हमें दुश्मन (वायरस) से एक कदम आगे रहने में मदद करेगा.

यह खोज क्यों है एक 'गेम-चेंजर'?

इस जीन को खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने एक बहुत ही सरल लेकिन प्रभावी तरीका अपनाया. उन्होंने दो किस्मों (आशा और मारुति) की तुलना की जो SMD बीमारी से लड़ने में माहिर है. दोनों के जेनेटिक मैप की गहराई से जांच करने पर पता चला कि 'मारुति' किस्म में Ccsmd04 जीन की संरचना टूटी-फूटी (म्यूटेशन) थी. इस गड़बड़ी के कारण यह जीन पौधे की रक्षा करने वाला प्रोटीन नहीं बना पा रहा था, और पौधा बीमार पड़ जाता था. 'आशा' में यही जीन बिल्कुल सही सलामत था.

इस खोज का सबसे बड़ा फायदा यह है कि वैज्ञानिकों को अब "जेनेटिक मार्कर" मिल गए हैं. ये मार्कर एक तरह के 'पहचान पत्र' हैं, जिनसे पौधे की छोटी अवस्था में ही यह पता लगाया जा सकता है कि वह बड़ा होकर बीमारी से लड़ पाएगा या नहीं. प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. मनीष के. पांडेय के अनुसार, "इन मार्करों से नई और बेहतर किस्में बनाने की प्रक्रिया कई गुना तेज हो जाएगी. अब हमें सालों तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा.

इसके अलावा, जीन एडिटिंग जैसी आधुनिक तकनीक का उपयोग कर हम इस जीन को किसी भी अच्छी किस्म में डालकर उसे और शक्तिशाली बना सकते हैं. वैज्ञानिकों की टीम अब अरहर की जंगली प्रजातियों में ऐसे और भी जीन तलाश रही है. यह प्रयास न केवल किसानों की आय बढ़ाएगा, बल्कि भारत को दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के राष्ट्रीय लक्ष्य को हासिल करने में भी एक बड़ी भूमिका निभाएगा.

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