दो राष्ट्रविरोधी खालिस्तानी विचारधारा वाले नेताओं - खडूर साहिब से अमृतपाल सिंह और फरीदकोट लोकसभा सीट से सरबजीत सिंह की जीत पंजाब ही नहीं बल्कि देश-विदेश में चर्चा का विषय बन गई है. शिरोमणि अकाली दल सहित मुख्यधारा के राजनीतिक दलों को बड़ा झटका देते हुए जिसने खडूर साहिब से पूर्व खालिस्तानी विचारधारा वाले विरसा सिंह वल्टोहा को मैदान में उतारा था, अमृतपाल को 4,04,430 वोट मिले और वह 1,97,120 वोटों के अंतर से जीते, जो राज्य में सबसे अधिक है. दिलचस्प बात यह है कि जहां अमृतपाल और सरबजीत सिंह खालसा चुनाव जीतने में सफल रहे, वहीं एक अन्य खालिस्तानी नेता सिमरनजीत सिंह मान को आप उम्मीदवार गुरमीत सिंह मीत हेयर ने 1.73 लाख वोटों के अंतर से हरा दिया.
दूसरी ओर शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के टिकट पर चुनाव लड़े नौ अन्य कट्टरपंथियों की जमानत जब्त हो गई है. उनका अनुमानित वोट शेयर 1.95% से 7.36% के बीच है, जिसका अर्थ है कि दर्जन भर खालिस्तानियों में से केवल दो ही चुनाव जीतने में सक्षम रहे और अन्य को वोटर्स ने खारिज कर दिया.
पंजाब में लोकसभा चुनाव कट्टरपंथियों की बढ़ती पैठ की ओर इशारा करते हैं. अमृतपाल ने जेल में रहने के बावजूद स्थानीय लोगों के समर्थन और विदेश में खालिस्तानियों द्वारा कथित फंडिंग के दम पर चुनाव जीता. रासुका के तहत असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल अक्सर कहते थे कि उनकी लड़ाई भारत सरकार से है, किसी समुदाय से नहीं. उनके विवादित बयान जो नफरत से भरे थे, लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उनके समर्थकों द्वारा खुलेआम प्रचारित किए गए.
सोशल मीडिया पर वायरल अमृतपाल के विवादित चुनावी घोषणापत्र में कहा गया है कि वह मीट की दुकानों, शराब की दुकानों, तंबाकू और बीड़ी की दुकानों पर प्रतिबंध लगाने के अलावा सभी नाई की दुकानें और ब्यूटी पार्लर बंद करेंगे.
कथित चुनावी घोषणापत्र में आगे कहा गया है कि डेरे, राधा स्वामी सत्संग, निरंकारी मिशन जैसे संप्रदाय, चर्च और मस्जिदों को भी काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. इसमें आगे कहा गया है कि सिख युवकों को नए हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाएगा. हालांकि, अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह ने अमृतपाल द्वारा ऐसा कोई घोषणापत्र जारी करने से इनकार किया है. इस बीच, गुरुवार को कट्टरपंथियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की 40वीं वर्षगांठ मनाई. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में दर्जनों कट्टरपंथी एकजुट हुए. अमृतपाल के परिवार ने कहा है कि वे 6 जून तक उनकी जीत का जश्न नहीं मनाएंगे. लोकसभा चुनाव में उनकी सफलता को खालिस्तानी आतंकवादियों को समर्पित किया गया है, जो कार्रवाई में मारे गए.
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जेल में बंद वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह अपने समर्थकों द्वारा बनाए गए इस नैरेटिव के आधार पर चुनाव जीतने में सफल रहे कि वे लोगों को नशे से छुटकारा दिलाने के अलावा 'सिख धर्म और सिख पहचान को बढ़ावा दे रहे हैं.' चारों ओर चर्चा थी कि उन पर एनएसए के तहत मामला दर्ज करना गलत था. चुनाव विश्लेषकों का यह भी कहना है कि अगर उन पर आईपीसी के तहत मामला दर्ज होता तो उन्हें जमानत मिल जाती और शायद उन्हें वह समर्थन और सहानुभूति नहीं मिलती जिसके कारण उनकी जीत हुई.
दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे के बेटे सरबजीत सिंह खालसा ने भी फरीदकोट चुनाव में पूर्व खालिस्तानी आतंकवादियों की रिहाई और बेअदबी के मामलों के अलावा बहिबल कलां फायरिंग मामले के मुद्दे पर जीत हासिल की. दिलचस्प बात यह है कि पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद भगवंत सरकार के खिलाफ लहर को भुनाकर सिमरनजीत सिंह मान भी 2022 के उपचुनाव में जीत हासिल करने में सफल रहे थे. लेकिन इस बार मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया.
यह स्पष्ट है कि खडूर साहिब और फरीदकोट में चुनाव जीतने वाले खालिस्तानी, ड्रग्स के व्यापार, नशे की लत, अनसुलझे बेअदबी मामलों के अलावा सिख धर्म के खतरे में होने की झूठी कहानी जैसे मुद्दों के नाम पर वोटर्स को लुभाने में सफल रहे. कट्टरपंथियों की जीत ने जहां एक ओर कट्टरपंथियों के बढ़ते कदमों को साबित किया है, वहीं दूसरी ओर उनके दोहरे मापदंड को भी उजागर किया है.
2024 और इससे पहले चुनाव जीतने वाले कट्टरपंथी अक्सर कहते हैं कि उन्हें भारतीय संविधान पर भरोसा नहीं है. विडंबना यह है कि अब उन्हें शपथ लेनी होगी कि वे भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखेंगे. अब सबकी निगाहें अमृतपाल पर टिकी हैं कि उन्हें शपथ लेने के लिए जेल से रिहा किया जाता है या नहीं, क्योंकि जेल में शपथ दिलाने का कोई प्रावधान नहीं है. कांग्रेस नेता सुखपाल सिंह खैरा समेत कट्टरपंथी मांग कर रहे हैं कि अमृतपाल को जेल से रिहा किया जाए. खैरा को खालिस्तानियों ने सोशल मीडिया पर ट्रोल किया है क्योंकि उन्होंने सिमरनजीत मान की हार के लिए जिम्मेदार मुद्दों को उठाया था.